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बिहार में सूखती नदियों ने बढ़ायी ठनका की विभीषिका

सूखती नदियां और खाली जलाशय न केवल भू जल संकट बढ़ा रहे हैं, बल्कि ‘आसमानी आफत’वज्रपात (ठनका) को न्योता भी दे रहे हैं. इस संदर्भ में कुछ विशेष वैज्ञानिक अध्ययन सामने आये हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | May 21, 2024 1:14 AM

अध्ययन. जल स्रोतों के सूखने से हाइ वोल्ट ठनका को निष्क्रिय होने नहीं मिल रही अर्थिंग – नदियां सूखने से वाष्पीकरण में हुई वृद्धि होने से कम ऊंचाई के बादल बेहद कम समय में बरसा रहे ठनका राजदेव पांडेय ,पटना सूखती नदियां और खाली जलाशय न केवल भू जल संकट बढ़ा रहे हैं, बल्कि ‘आसमानी आफत’वज्रपात (ठनका) को न्योता भी दे रहे हैं. इस संदर्भ में कुछ विशेष वैज्ञानिक अध्ययन सामने आये हैं. एक वैज्ञानिक अध्ययन के मुताबिक नदियों और ताल-तलैया के सूखने से ठनका को निष्क्रिय होने के सटीक अर्थिंग नहीं मिल रही. इसकी वजह से बिहार में ठनका अब भयावह आपदा में तब्दील हो चुका है. इसके घातक परिणाम अधिक से अधिक मौत के रूप में सामने आ रहे हैं. प्रतिष्ठित विज्ञानी और मुंगेर विश्वविद्यालय के संस्थापक पूर्व कुलपति प्रो आरके वर्मा के आकलन के मुताबिक बिहार में पानी की जमीन विशेषकर नदियों/ जलाशयों के सूखने और बगीचों के खत्म होने से बिहार में आकाशीय बिजली गिरने की घटनाओं में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई है. आधिकारिक आकलन के मुताबिक पांच साल में करीब दो गुना मौत बढ़ी है. प्रो वर्मा बताते हैं कि जल संरचनाओं के सूखने से बादलों में विद्युत आवेश सामान्य से अधिक इकट्ठा हो रहा है. तुलनात्मक रूप में ये आवेश रिलीज नहीं हो पा रहा, क्योंकि नदियों के सूखने से समुचित अर्थिंग नहीं मिल पा रही है. कभी-कभार जैसे ही उसे थोड़ी -बहुत नमीयुक्त वातावरण (जिसमें नदी और अन्य जल स्रोत ) मिलता है ,तो बादलों में इकट्ठा कई गुना आवेश ठनका के रूप में गिर जाता है. हमारी नदियां या जल स्रोत सूखे न होते तो आसमान में उड़ रहे बादलों में अधिक विद्युत आवेश इकट्ठा नहीं हो पाता. इससे घातक रूप में बिजली गिरने की संभावना भी नहीं रहती, क्योंकि बादलों के घर्षण से बन रहा विद्युत् आवेश जल स्रोतों और बड़े पेड़ों के झुरमुट अर्थिंग पाकर कम खतरनाक रूप में धरती पर गिर जाता है. नदियों के सूखने से बढ़ा वाष्पीकरण बना रहा बेहद नजदीकी बादल: कर्नल संजय राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त आपदा प्रबंधन(आकाशीय बिजली विशेष) विशेषज्ञ कर्नल संजय श्रीवास्तव के अनुसार बिहार एक दशक पहले तक लगातार इतनी गर्मी नहीं झेलता था. दरअसल जैसे ही उसकी नदियां व जल स्रोत तेजी से सूखने लगे, वैसे-वैसे पर्यावरण में गर्मी अधिक बढ़ने लगी. दरअसल वातावरण की 60 % गर्मी अकेले नदियां एवं अन्य जल स्रोत सोखते हैं. वह काम अब रुक- सा गया है. ऐसे में वातावरण में गर्मी बढ़ने से वाष्पीकरण भी कई गुना बढ़ गया है. इस वाष्पीकरण के चलते बिहार में बेहद कम ऊंचाई पर ही बादल बन रहे हैं, जो थोड़ी -सी नमी पाकर वज्रपात करा देते हैं. कर्नल श्रीवास्तव के मुताबिक सामान्य ठनके का पूर्वानुमान एक घंटे पहले तक मिल जाता था ,लेकिन बिहार में इन दिनों ठनका गिरने का पूर्वानुमान भी 15 से 20 मिनट पहले मिल रहा है. इसलिए हमें नदियों और तालाबों को बचाने की जरूरत है. विशेष तथ्य—- बिहार में प्रति लाख आबादी पर ठनका से होने वाली मौत की सालाना दर 2.65 है, जो राष्ट्रीय औसत 2.55 से अधिक है. राज्य में औसतन हर साल 271 लोग मरते हैं, जो अन्य आपदाओं से होने वाली मृत्यु से कई गुना अधिक है.

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