पटना में हर पांचवां मरीज किडनी ट्रांसप्लांट के इंतजार में, डायलिसिस के सहारे जी रहा जिंदगी

लगातार बदलती जीवनशैली और खानपान के चलते साल दर साल किडनी की बीमारी से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है. इसमें केवल बड़े और बुजुर्ग ही नहीं बल्कि युवा भी इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं. एक्सपर्ट और रिसर्चरों के एक अनुमान के मुताबिक किडनी से जुड़ी समस्या 2040 तक मौत की 5वीं सबसे बड़ी वजह बन जायेगी. पटना शहर के अस्पतालों में किडनी ट्रांसप्लांट, डायलिसिस व अन्य चिकित्सकीय सुविधाएं की पड़ताल करती पेश है खास रिपोर्ट. 

By Anand Shekhar | July 16, 2024 6:45 AM

Kidney Disease: किडनी की बीमारी पटना समेत प्रदेश के लोगों के लिए आफत बनती जा रही है. शहर के आइजीआइएमएस, पीएमसीएच, एनएमसीएच और पटना एम्स के अलावा निजी अस्पतालों के किडनी रोग विभाग में मरीजों की भारी संख्या देखने को मिल रही है. खासकर आइजीआइएमएस के नेफ्रोलॉजी विभाग के आंकड़ों पर गौर करें, तो यहां महीने में आने वाले करीब 2500 से 2800 मरीजों में लगभग 550 को किडनी की दरकार है. मतलब किडनी ट्रांसप्लांट के इंतजार में करीब हर पांचवां मरीज है. साल व महीने बीतने के बाद भी इंतजार खत्म नहीं हो रहा है. शहर के सरकारी स्तर पर ट्रांसप्लांट न होना भी किडनी मरीजों का दर्द बढ़ा रहा है.

आधे से अधिक मरीज 20 से 45 साल के

किडनी फेल की तकलीफ से जूझ रहे मरीजों में से 50 प्रतिशत से अधिक मरीज 20 से 45 साल की आयु वाले हैं. जवानी में ही किडनी फेल होने के कारण डायलिसिस के सहारे अब उनकी एक-एक सांसें हैं. इनमें सबसे अधिक पुरुषों की संख्या है. अधिकांश मरीजों को हर महीने दो बार डायलिसिस करानी पड़ रही है. ये मरीज लंबे इंतजार के बाद डोनर नहीं मिलने के चलते डायलिसिस के सहारे अपना जीवन जी रहे हैं.

सिर्फ आइजीआइएमएस के बदौलत किडनी ट्रांसप्लांट

किडनी मरीजों के कष्टों का सबसे बड़ा कारण सरकारी अस्पतालों में ट्रांसप्लांट की सुविधा का न होना है. आइजीआइएमएस को छोड़ दिया जाये तो प्रदेश के किसी भी सरकारी अस्पताल में किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा उपलब्ध नहीं है. इसलिए यहां पूरे बिहार के मरीज आते हैं. वैसे मरीज सबसे अधिक आते हैं जो पहले से डायलिसिस पर हैं या फिर ट्रांसप्लांट कराने की नौबत है. हालांकि सब कुछ ठीक रहा तो दो से तीन महीने में पटना एम्स के नेफ्रोलॉजी विभाग में ट्रांसप्लांट शुरू होने की उम्मीद है. पटना एम्स इसको लेकर विशेष तैयारी में जुट गया है.

आइजीआइएमएस में 9 साल के दौरान 115 किडनी ट्रांसप्लांट, किडनी देने वालों में मां सबसे आगे

रिश्तों को निभाने में महिलाओं का कोई जवाब नहीं है. इसका सबूत शहर के आइजीआइएमएस में पिछले 14 मार्च 2016 से अब तक हुए किडनी दान के आंकड़े हैं. मां, बहन, बेटी, पत्नी ने अपनी जिंदगी की फिक्र किये बिना शरीर के सबसे अहम अंग किडनी को दान दिया है. 2016 से 15 जुलाई 2024 यानी कुल नौ साल में आइजीआइएमएस के नेफ्रोलॉजी विभाग में कुल 115 किडनी ट्रांसप्लांट हुए.

किडनी दान करने वालों में 89 महिलाएं हैं. इसमें भी सबसे ज्यादा संख्या मां की है. 50 मां ने अपने बेटों को अपनी किडनी देकर जान बचायी है. इसके बाद पत्नी का स्थान है. 34 पत्नियों ने अपने पति को किडनी दान दी है. इसके अलावा 05 बहनों ने किडनी दान देकर अपने भाई की मदद की है. 115 में सिर्फ 25 पुरुषों ने ही किडनी डोनेट किया है.

इन परिजनों ने किया किडनी डोनेट

  • मां 50
  • पत्नी 34
  • पिता 21
  • बहन 05
  • भाई 03
  • दादा 01


ये चार मुख्य बाधाएं हैं सामने

  • सरकारी स्तर पर ट्रांसप्लांट नहीं होना
  • प्राइवेट अस्पतालों में काफी महंगा होना
  • डोनर का न मिलना, अपनों से भी इनकार करना
  • खुद की सेहत खतरे में जाने का भ्रम व डर

ऐसे दान कर सकते हैं किडनी

आइजीआइएमएस के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ मनीष मंडल ने बताया कि आइजीआइएमएस में किडनी दान करने में महिलाओं की संख्या काफी अधिक है. उन्होंने बताया कि नजदीकी रिश्तेदार को किडनी देने के लिए हॉस्पिटल ट्रांसप्लांट कमेटी से अनुमति लेनी होती है. अन्य रिश्तेदारों के संबंध में संचालक चिकित्सा शिक्षा (एप्रोप्रियेट अथॉरिटी) से अनुमति लेनी होती है. नये नियमों के तहत अब दादा-दादी व कुछ अन्य रिश्तों को भी नजदीकी रिश्तों में मान लिया गया है.

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क्या कहते हैं विशेषज्ञ

बिगड़ती लाइफ स्टाइल व अपने स्वास्थ्य के प्रति अलर्ट नहीं होने का नतीजा है कि लोगों की किडनी तेजी से खराब हो रही है. इनमें युवाओं की संख्या भी सर्वाधिक है. चोरी चुपके यह बीमारी अपनी चपेट में लेती है. वहीं नेफ्रोलॉजी विभाग की ओपीडी में रोजाना 200 व महीने में 2500 से 2800 से अधिक किडनी रोगी इलाज को आते हैं. इनमें करीब 20 प्रतिशत मरीजों को किडनी की जरूरत होती है. 50 प्रतिशत तो 20 से 45 साल के मरीज होते हैं. लंबे इंतजार के बाद भी कुछ ऐसे मरीज होते हैं जिनको डोनर नहीं मिल पाता है, ऐसे में इस तरह के मरीज डायलिसिस के सहारे जीवन जी रहे हैं.

डॉ ओम कुमार, विभागाध्यक्ष, नेफ्रोलॉजी विभाग आइजीआइएमएस.

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