Loading election data...

गलवान का एक साल: बिहार रेजिमेंट के जवानों की शहादत आज भी याद करता है देश, जानिए अपने वीरों को…

Galwan valley clash leh dispute completed a year | Indian army bihar regiment in china border : लद्दाख के गलवान घाटी में आज के दिन ही पिछले साल भारतीय सेना के जवानों की झड़प चीन के सैनिकों से हो गई थी. इस हिंसक झड़प में भारत के 20 जवानों ने अपनी शहादत दी थी. जिसमें बिहार रेजिमेंट के सबसे अधिक जवान शामिल थे.16 बिहार यूनिट और 12 बिहार यूनिट के जवानों ने देश के लिए अपने जान की कुर्बानी इस झड़प में दी थी.

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 15, 2021 9:52 AM

लद्दाख के गलवान घाटी में आज के दिन ही पिछले साल भारतीय सेना के जवानों की झड़प चीन के सैनिकों से हो गई थी. इस हिंसक झड़प में भारत के 20 जवानों ने अपनी शहादत दी थी. जिसमें बिहार रेजिमेंट के सबसे अधिक जवान शामिल थे.16 बिहार यूनिट और 12 बिहार यूनिट के जवानों ने देश के लिए अपने जान की कुर्बानी इस झड़प में दी थी.

15 जून 2020 को पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में सीमा विवाद को लेकर भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हो गयी थी. पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में हुए इस झड़प में जिन जवानों ने शहादत दी थी उनमें 16 बिहार रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल संतोष बाबू भी शामिल थे. वो ’16 बिहार यूनिट’ में तैनात थे. वहीं उनके साथ इस युनिट के 11 और सैनिकों की शहादत इस झड़प में हुई थी. इसके अलावा ’12 बिहार यूनिट’ के भी एक जवान इस झड़प के दौरान शहीद हुए थे.

बिहार रेजिमेंट के इन जवानों का पार्थिव शरीर जब उनके घर लाया गया था तो पूरा प्रदेश शोक में डूबा था. लेकिन अपने लाल के शौर्य और साहस ने उनका सीना चौड़ा रखा था. बिहार रेजिमेंट के कई जवानों की कहानी बेहद भावुक करने वाली थी. भारत-चीन सीमा पर शहीद हुए भोजपुर के जवान चंदन की शादी तय हो चुकी थी. कोरोना संक्रमण का पहला लहर देश में दस्तक दे चुका था. जिसके कारण लॉकडाउन लागू हुआ और शादी की तिथि आगे बढ़ गई. चंदन महीने भर की छुट्टी मनाकर गांव से लौटे ही थे. लेकिन उनके नसीब में सर्वोच्च बलिदान देना लिखा था. शादी की तैयारियां धरी रह गई थी और चंदन का पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटकर घर आया था.

Also Read: Sputnik v Vaccine: बिहार में रुसी वैक्सीन स्पूतनिक का इंतजार खत्म, आज प्रदेश में आएंगी 50 हजार डोज, जानिए कैसे ले सकेंगे टीका

बिहटा के हवलदार सुनील कुमार भी इस झड़प में शहीद हुए थे. वो अपने पीछे 85 वर्षीय पिता एवं 75 वर्षीया मां को भी छोड़ गए. शहादत के कुछ ही दिनों पहले उन्होंने अपनी पत्नी को फोन किया था. पत्नी को यह मालूम नहीं था कि अब इस साथ की आखिरी बेला आ चुकी है. अब पति को तिरंगे में लिपटा ही देखना पड़ेगा. एक फौजी के लिए यह गर्व भरा अंत होता है लेकिन परिवार के आंसू सुखने में काफी समय लग जाते हैं.

ऐसी ही कहानी शहीद जवान अमन कुमार की थी. जिनके पिता अपने कलेजे के टुकड़े को विदा करते समय फफक कर रो रहे थे लेकिन सीना गर्व से चौड़ा था. अमन की शहादत के बाद उनके गांव में अधिकतर घरों में चूल्हे नहीं जले थे. शहीद हुए जवान के करीबी बताते कि अमन में शुरू से ही देशप्रेम का जज्बा था. उन्होंने गांव के नौजवानों को देशहित के लिए बार-बार प्रेरित किया. लोग बताते हैं कि मां से उन्हें काफी अधिक लगाव था. वह मां से ही मांग कर खाना खाते थे. वहीं पत्नी भी उनकी आजतक अपने पति की यादों को लेकर ही जीवन आगे बढ़ा रही है.

ऐसी ही कहानी सभी शहीद जवानों की है. आज शहादत के एक साल पूरे हो गए हैं. भारत आज भी चीन की आंखों में आंखें डालकर ही विवादित सीमा क्षेत्र पर खड़ा है. पिछले गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान दिल्ली के राजपथ पर एलएसी पर चीन से लोहा ले रहे सैनिकों के पराक्रम और गलवान घाटी में वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि दी गई थी. शहादत देने वाले कर्नल संतोष बाबू को मरणोपरांत दूसरे सबसे बड़े सैन्य सम्मान महावीर चक्र से नवाजा गया था. वहीं झड़प में शहीद हुए चार अन्य सैनिकों को वीर चक्र से सम्मानित किया गया था.

लद्दाख में हुइ इस झड़प में भारतीय सेना ने ‘गलवां के वीरों’ के लिए एक स्मारक भी तैयार किया है. जिसपर भारत के उन पराक्रमी योद्धाओं का जिक्र है जिन्होंने चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिकों को पीछे हटने पर मजबूर किया.

POSTED BY: Thakur Shaktilocha

Next Article

Exit mobile version