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मोकामा में दो युवकों ने मंदिर में रचाई शादी, कहा- कोई कितनी भी कोशिश कर ले हम अलग नहीं होंगे

समलैंगिक विवाह वैसे तो आज के वक्त में बड़े शहरों में दिख जाता है. बिहार के एक छोटे शहर से दो युवकों की शादी करने की खबर सामने आई है. इस शादी से आसपास के लोग काफी हैरान हैं.

बिहार में समलैंगिक विवाह का एक ताजा मामला सामने आया है. यहां मोकामा में दो युवकों ने भगवान को साक्षी मानकर मंदिर में एक दूसरे से शादी रचा ली है. इस शादी की खबर लगने के बाद स्थानीय लोग स्तब्ध हो गए हैं. वहीं आस पास के कई लोग इस शादी का विरोध कर इसे समाज पर बुरा असर डालने वाली शादी बता रहे हैं.

मंदिर में की शादी 

प्राप्त जानकारी के अनुसार मोकामा नगर परिषद क्षेत्र के मैनक टोला निवासी 22 वर्षीय राजा कुमार ने चार दिनों पहले अपने 18 वर्षीय मित्र से मंदिर में चोरी छिपे भगवान को साक्षी मानते हुए शादी कर ली थी. दोनों ने कई दिनों तक लोगों को अपनी शादी की भयानक तक नहीं लगने दी. लेकिन शादी के दो दिनों के बाद दोनों की गतिविधियों से लोगों को शक होने लगा और फिर क्या था. यह बात हर तरफ आग की तरह फैल गई.

किराया पर कमरा लेकर साथ रह रहें है 

22 वर्षीय राजा कुमार ने 18 वर्षीय सुमित कुमार नाम के युवक से मंदिर में शादी की है. सुमित मोकामा के ही गुरुदेव टोला का रहने वाला है. मंदिर में शादी करने के बाद दोनों युवक शहर के ही लोहारिया टोला में एक किराया का कमरा लेकर दोनों एक साथ रह रहे हैं.

परिजनों को भी नहीं दी शादी की जानकारी 

प्राप्त जानकारी के अनुसार दोनों युवकों ने अपने विवाह की जानकारी अपने परिजनों तक को नहीं दी थी. दोनों युवकों का कहना था की अगर परिवार के लोगों को शादी की खबर लग जाएगी तो वह उसका विरोध करेंगे. इसी कारण से हमने लोगों से शादी की बात छुपा कर रखी थी.

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एक दूसरे से अलग नहीं होंगे.

दोनों युवकों ने कहा कि हम जल्द ही अपनी शादी को सार्वजनिक करेंगे. यदि परिवार वाले विरोध भी करते हैं तो भी हम लोग साथ रहेंगे और एक-दूसरे का हाथ कभी नहीं छोड़ेंगे. दोनों ने कहा कि चाहे कोई कितनी भी कोशिश कर लें हम एक दूसरे से अलग नहीं होंगे.

समलैंगिक विवाह की भारत में वैधता 

  • समलैंगिक विवाह के अधिकार को भारतीय संविधान के अंतर्गत मौलिक या संवैधानिक अधिकार के रूप में स्पष्ट रूप से मान्यता प्राप्त नहीं है.

  • विवाह को विभिन्न वैधानिक अधिनियमों के माध्यम से विनियमित किया जाता है लेकिन मौलिक अधिकार के रूप में इसकी मान्यता केवल भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है

  • संविधान के अनुच्छेद 141 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय का निर्णय पूरे भारत में सभी अदालतों के लिये बाध्यकारी है

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