अपनी संस्कृति से जुड़े रहना सिखाते हैं हबीब तनवीर
मौजूदा दौर में लोग आधुनिक होने का मतलब पश्चिमी सभ्यता को अपना समझ रहे हैं. जबिक आधुनिक होने का मतलब है कि अपने अंदर की कमियों को दूर करना और खुद का बेहतर वर्जन स्थापित करना है.
संवाददाता, पटना
मौजूदा दौर में लोग आधुनिक होने का मतलब पश्चिमी सभ्यता को अपना समझ रहे हैं. जबिक आधुनिक होने का मतलब है कि अपने अंदर की कमियों को दूर करना और खुद का बेहतर वर्जन स्थापित करना है. प्रख्यात रंगकर्मी हबीब तनवीर ने अपनी जमीन और जड़ों को बारिकियों से समझते हुए अपने नाटकों और लेखनी से इसी तबके की बेहतरी के लिए कार्य करना सिखाते हैं. ये बातें रविवार को प्रख्यात रंगकर्मी हबीब तनवीर के जन्म शताब्दी वर्ष पर आयोजित व्याख्यान में प्रसिद्ध रंगकर्मी कुणाल ने कहीं. व्याख्यान का विषय हबीब तनवीर होने का मतलब रखा गया था. कुणाल ने कहा कि हबीब साहब देश के विभिन्न हिस्सों में अपने नाटकों के माध्यम से आम लोगों की बेहतरी के लिए मार्ग प्रश्स्त किया था. वहीं बिहार संगीत नाटक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष आलोक धन्वा ने कहा कि उन्हें शेर-शायरी की गहरी जानकारी थी. उन्होंने कहा कि हबीब तनवीर का नाटक”””” जिन्ने लाहौर नहीं देख्या में ऐसी जमीनी संवेदनाओं को प्रकट किया गया है जिसे देखकर हृदय पसीज जाता है. हबीब तनवीर ने नाटकों के माध्यम से उस समाज के उस तबके को मौका दिया है जिसे अक्सर दरकिनार किया जाता है. लेखक अनीश अंकुर ने कहा कि हबीब तनवीर के अभिनेता समाज के सबसे दबे- कुचले समूहों से आते थे. हबीब तनवीर का सबसे बड़ा योगदान यह है कि उन्होंने संस्कृत नाटकों को समझने की अंतर्दृष्टि दी. हबीब तनवीर ने बताया कि संस्कृत नाटक मुख्यतः रस को सबसे प्रधान माना जाता है. वहीं संस्कृतिकर्मी अनिल अंशुमन ने कहा कि पटना रंगमंच हबीब साहब की विरासत को संजोय रखने में सफल है. मौजूदा दौर में हबीब तनवीर के विचारों पर विमर्श करना तो आसान है, लेकिन उनकी तरह आम जन की बेहतरी के लिए जतन करना चुनौतीपूर्ण है. उन्होंने कहा कि हबीब तनवीर को किसी एक पंत में कभी बांधा ही नहीं जा सकता है. कार्यक्रम में वरिष्ठ रंगकर्मी रमेश सिंह, जफर, गौतम गुलाल, मनोज कुमार, राकेश कुमुद, बिट्टू भारद्वाज आदि मौजूद रहे.
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