पटना : चिलचिलाती धूप थी. अधिकांश जवान भूखे खड़े थे. सभी कोरोना टेस्ट के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे. स्वास्थ्य विभाग की टीम को महुआ के पेड़ के नीचे कुर्सी-टेबुल पर बैठा दिया गया था. कोरोना संक्रमित साथियों के संपर्क में आये इन जवानों के पास सेफ्टी के नाम पर काला, आसमानी रंग का मास्क था. किसी के पास तो यह भी नहीं था. वह गमछा लपेटे ही खड़ा था. यह दृश्य उस बीएमपी का था, जिसकी बैरक में छह लोग कोरोना संक्रमित पाये गये हैं. डीजीपी निरीक्षण कर सेफ्टी का फुल प्रोटोकॉल फालो करने का आदेश दे चुके हैं.
बीएमपी-14 में कोरोना को चेन पाये जाने के बाद भी सेफ्टी प्रोटोकॉल पूरा नहीं हो रहा. मुख्य द्वार पर प्रवेश तो रजिस्टर पर इंट्री करने के बाद दिया जा रहा था. लेकिन, आदेश के बाद भी किसी को सैनिटाइज नहीं किया जा रहा था. हाल यह था कि आगुुंतक को रोकने वाले जवानों के हाथों में ग्लब्स नहीं थे. सैनिटाइजर नहीं था. बीएमपी के पूरे परिसर में सोशल डिस्टेंसिंग के अलावा कुछ सेफ्टी नहीं थी. कोराना संदिग्ध से प्रभात खबर संवाददाता ने हालात की जानकारी लेनी चाही, तो कहा-सर, मैं कुछ नहीं बता सकता. प्लीज यहां से चले जाइएं. ये प्रतिबंधित एरिया है. आपके लिए यहां इंट्री नहीं है. यह कहते हुए कतार में शामिल हो जाता है. करीब 80 लोगों की यह कतार कोरोना संदिग्धों की थी. सभी के चेहरों पर दहशत थी. एक जवान कतार से बाहर चला जाता है, उसकी पुकार होती. सैंपल देने के बाद भी पैरों का कंपन रुका नहीं था. बीएमपी पांच, दस व 14 के इस मैदान पर कल तक जो जवान जोश के साथ पीटी करते थे, रविवार को सभी डरे-सहमे खड़े थे.
मास्क व ग्लब्स भी वह अपने पैसों से खरीद कर लाये थे : बीएमपी पांच के जवानों को तो ग्लब्स आदि मिले. लेकिन, अन्य बटालियन के जवान खरीद कर लाये थे. एक जवान का कहना था कि वह 27 तारीख से सेफ्टी उपकरण मांग रहा है. लेकिन, मिले नहीं. सार्वजनिक जगहों पर सैनिटाइजर भी नहीं रखा गया है. इस आपदा की घड़ी में भी डीएसपी से बड़ा कोई अफसर मौजूद नहीं था.बीएमपी में 300 कोरोना संदिग्धों के सैंपल लिये जाने हैं. रविवार को 82 जवानों के सैंपल लेकर आरएमआरआइ भेजे गये. स्वास्थ्य विभाग की टीम में अनुबंधित पारा मेडिकल संघ के प्रदेश सचिव शंभु प्रसाद, रणजीत, उमेश कुमार, अरुण जय, अजीत कुमार शर्मा थे. सभी करीब सात बजे बीएमपी परिसर पहुंच गये थे. इन लोगों का कहना था कि सरकार इतना जोखिम भरा काम ले रही है, दस साल हो गये. अब तो परमानेंट कर दे. रणजीत का कहना था कि वेतन विसंगति दूर की जाएं.