पटना : हाई कोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए यह स्पष्ट किया है कि राज्य में प्राथमिक शिक्षक नियोजन में केवल दो वर्षीय डीएलएड पास प्रशिक्षित अभ्यार्थियों पर ही विचार करने का राज्य सरकार का आदेश भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक है. कोर्ट ने राज्य सरकार के द्वारा जारी किये गये विभागीय आदेश को प्रथम दृष्टया भेदभावपूर्ण करार देते हुए उसे संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन मानते हुए प्राथमिक शिक्षक नियोजन में केवल दो वर्षीय डीएलएड अभ्यार्थियों के नियोजन करने संबंधी राज्य सरकार के विभागीय आदेश पर लगा दिया है. राज्य सरकार ने यह विभागीय आदेश 17 दिसंबर, 2019 को जारी किया था.
न्यायमूर्ति डॉ अनिल कुमार उपाध्याय की एकलपीठ ने हेमंत कुमार और अन्य उम्मीदवारों की तरफ से दायर रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया. साथ ही राज्य सरकार को इस मामले में सात सितंबर तक जवाब देने का भी निर्देश भी दिया है.
याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरीय अधिवक्ता यदुवंश गिरी ने कोर्ट को बताया कि राज्य के प्राथमिक स्कूलों में क्लास एक से पांचवीं तक के शिक्षकों के नियोजन के लिए संबंधित नियमावली में स्नातक अभ्यार्थियों को अहरताधारी बताया गया हैं. लेकिन, उन अभ्यार्थियों को अनिवार्यतः छह महीने का सेतु पाठ्यक्रम से प्रशिक्षित होना जरूरी है.
वहीं, गैर स्नातकों के बारे में कहा गया है कि उन्हें एनसीटीइ से मान्यता प्राप्त संस्थानों से दो वर्षीय डीएलएड पास कर प्रशिक्षित होना जरूरी है. लेकिन, नियोजन नियमावली यह कहीं नहीं कहती है कि नियोजन सिर्फ और सिर्फ दो वर्षीय डीएलएड पास अभ्यार्थियों के लिए ही विचारणीय होगा.
विदित हो कि राज्य सरकार के शिक्षा विभाग से 17 दिसंबर, 2019 को जारी किये गये एक सरकारी आदेश से यह निर्णय किया गया था कि सूबे के प्राथमिक स्कूलों (क्लास एक से पांच तक) के शिक्षक नियोजन में केवल दो वर्षीय डीएलएड पास प्रशिक्षित शिक्षकों की ही नियुक्ति की जायेगी. डीएलएड पास अभ्यार्थियों के अनुपलब्धता में ही स्नातक अभ्यार्थियों के नियोजन पर विचार किया जायेगा.
Posted By : Kaushal Kishor