पटना हाइकोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया ( बीसीआइ ) से 28 फरवरी तक यह बताने को कहा है कि राज्य में स्थित लॉ कॉलेजों में नेट की परीक्षा पास किए छात्रों को यूजीसी के गाइड लाइन के अनुरूप प्रोफेसर के पद पर नियुक्त क्यों नहीं किया जा सकता है. कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश चक्रधारी शरण सिंह और न्यायाधीश जितेन्द्र कुमार की अध्यक्षा वाली खंडपीठ ने राज्य में स्थित लॉ कॉलेजों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव समेत योग्य प्रोफेसरों की कमी को लेकर दायर लोकहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया.
कोर्ट को अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया कि राज्य के सरकारी और निजी लॉ कालेजों की स्थिति बहुत दयनीय है. वहां बुनियादी सुविधाओं का काफी अभाव है. बीसीआइ के निर्देश और जारी किये गये गाइड लाइन के बाद भी बहुत सुधार नहीं हुआ है. बीसीआइ के निरीक्षण के बाद भी बहुत सारे कालेज निर्धारित मानकों को नहीं पूरा कर रहे है. इससे पूर्व कोर्ट ने बीसीआइ के अनुमति, अनापत्ति प्रमाण मिलने के बाद ही सत्र 2021- 22 के लिए राज्य के 17 लॉ कालेजों को अपने यहां दाखिला लेने के लिए अनुमति दी थी.
हाइकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए बिहार के सभी 27 सरकारी व निजी लॉ कॉलेजों में नए दाखिले पर रोक लगा दी थी. बाद में इस आदेश में आंशिक संशोधन करते हुए 17 कॉलेजों में सशर्त दाखिले की मंजूरी दे दी. उस समय हाइकोर्ट ने साफ किया था कि दाखिला सिर्फ 2021-22 सत्र के लिए ही होगा. कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि अगले साल के सत्र के लिए बीसीआई से फिर मंजूरी लेनी होगी.
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उस समय कोर्ट ने इन कालेजों का निरीक्षण कर बार काउंसिल ऑफ इंडिया को तीन सप्ताह में रिपोर्ट देने का आदेश देते हुए कहा था कि जिन लॉ कालेजों को पढ़ाई जारी करने की अनुमति दी गई है वहां की व्यवस्था और उपलब्ध सुविधाओं को भी देखा जायेगा . सुनवाई के समय समय याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता दीनू कुमार बीसीआई की ओर से अधिवक्ता विश्वजीत कुमार मिश्रा कोर्ट में उपस्थित थे. इस मामले पर अगली सुनवाई 28 फ़रवरी को फिर की जायेगी.