बिहारी खान-पान का इतिहास समाज की बुनावट के बारे में बताता है, पटना पुस्तक मेला में हरिवंश सिंह ने कहा

पुस्तक मेले में नुक्कड़ नाटक लवर्स रिटर्न को पेश कर कलाकारों ने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया. हरिशंकर परसाई के लिखी इस नाटक में प्रेमियों की कहानी दिखायी गयी. क्रिएशन संस्था की ओर से हुए इस नाटक की कहानी ऐसे दो प्रेमियों के इर्दगिर्द घूमती है जो समाज के बंधनों से मुक्त होकर प्रेम करते हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 3, 2022 11:35 PM

बिहारी खान-पान का इतिहास समाज की बुनावट के बारे में बताता है. बिहार न सिर्फ इतिहास में काफी समृद्ध है बल्कि इसके खान-पान का भी रोचक इतिहास है. रवि शंकर उपाध्याय की किताब बिहार के व्यंजन : संस्कृति व इतिहास” को पढ़ कर यहां के सिलाव का खाजा, खुरचन, उड़वंतनगर का खुरमा, थावे की खुरचन आदि के इतिहास की जानकारी मिलती है. पांचवी शताब्दी में फाहयान व सातवीं शताब्दी के ह्वेन्तसांग के यात्रा वृतांत से बिहार के खान पान के बारे में पता चलता है. ये बातें शनिवार को पटना पुस्तक मेले में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने कही. वह रविशंकर उपाध्याय की पुस्तक ” बिहार के व्यंजन : संस्कृति व इतिहास” का लोकार्पण समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे.

इसमें उन्होंने कहा कि इस किताब में 65 प्रकार के व्यंजनों की चर्चा की है. लेखक ने बहुत परिश्रम से लिखा है. सिर्फ मिथिला में 150 प्रकार के किस्मे हैं. बिहार में पेड़े की चालीस किस्म है. इस किताब से लाखों बिहारियों के मन में गौरव का भाव बढ़ेगा. सांस्कृतिक पहचान सिर्फ कला -साहित्य से ही नहीं बल्कि खान पान से भी बनती है. पहले हमारे समाज विलक्षणता थीं कि बड़ी वाली पूरी बगैर फ्रिज के इककीस दिनों तक रह सकती थीं.

इस अवसर पर खुदा बक्श लाइब्रेरी के पूर्व निदेशक इम्तेयाज अहमद ने कहा कि हम लोग इतिहास में राजा रानी के बारे में पढ़ते रहे हैं. लेकिन रविशंकर उपाध्याय की किताब नए ढंग की किताब है. किताब बिहार के इतिहास के अनदेखे गोशे, कोने को सामने लाती है. आइपीएस अधिकारी सुशील कुमार ने कहा कि किताब पढ़ते हुए लेखक हर इलाके के व्यंजन से, खानपान, लोक जीवन से परिचित कराते हैं. जैसे पिट्ठा कब खाया जाता है, यह नई फ़सल का पकवान है. व्यंजन के धार्मिक प्रयोजन क्या है इन सब चीजों के बारे में किताब बताती है.

पुस्तक का प्रकाशन ”इस्माद प्रकाशन” की ओर से किया गया है. लोकार्पण समारोह में बड़ी संख्या में साहित्य, संस्कृति की दुनिया से जुड़े व्यक्तित्व, साहित्यकार, रंगकर्मी तथा समाज के विभिन्न क्षेत्रों के लोग मौजूद थे.

लवर्स रिटर्न में दिखी प्रेमियों की कहानी

पुस्तक मेले में नुक्कड़ नाटक लवर्स रिटर्न को पेश कर कलाकारों ने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया. हरिशंकर परसाई के लिखी इस नाटक में प्रेमियों की कहानी दिखायी गयी. क्रिएशन संस्था की ओर से हुए इस नाटक की कहानी ऐसे दो प्रेमियों के इर्दगिर्द घूमती है जो समाज के बंधनों से मुक्त होकर प्रेम करते हैं. लेकिन यहां समाज द्वारा लगाए जा रहे तमाम बन्धनों के कारण वह सोचते हैं कि मरने के बाद स्वर्ग में मुक्त रूप से प्यार कर सकेंगे. वहां उन्हें कोई नहीं रोकेगा और आत्महत्या कर लेते हैं. इस नाटक में लेखक ने व्यंग्यात्मक रूप से प्रेमी-प्रेमिका की उस मनोदशा को दर्शाया है जिसके दौरान उन्हें प्रेम के अलावा कुछ नहीं दिखता. समाज द्वारा लगाए जा रहे तरह-तरह के बंधन के कारण वह उस समाज को ठुकरा स्वर्ग में प्यार करने की सोचते हैं.

साहित्य से लेकर फिल्मों तक पर हुई बातचीत

पुस्तक मेले में शनिवार को शब्द साक्षी कार्यक्रम के अंतर्गत संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित ऋषीकेश सुलभ से युवा कवि अंचित ने बातचीत की. कार्यक्रम में मुख्य रूप से उनके उपन्यास दाता पीर पर चर्चा हुई. उनके उपन्यास अग्निलीक का भी जिक्र हुआ. उन्होंने अपने 30-35 वर्ष के तजुर्बे को साझा किया.

गुफ्तगू कार्यक्रम के अंतर्गत सिनेमा पर नेशनल अवार्ड से सम्मानित कला समीक्षक विनोद अनुपम और गिरिधर झा ने बातें साझा की. उन्होंने सिनेमा में बदलाव, सिनेमा का असर और सिनेमा के प्रभाव पर चर्चा की. सिनेमा किस तरह विकसित हुआ और आज के दौर में सिनेमा कैसा चल रहा रहा है इस पर टिपण्णी की. सिंगल स्क्रीन थिएटर को बढ़ावा देने की बात कही, स्क्रिप्ट और सिनेमा का कॉन्टेंट कितना मजबूत है और कोरोना के बाद किस तरह से स्क्रिप्ट के आधार पर ज़मीन से जुड़े कलाकारों को बढ़ावा मिला.

लेखक रत्नेश्वर की पुस्तक 32000 साल पहले पर पत्रकार शांभवी सिंह ने बातचीत की. यह किताब हमारे प्रजातियों के सर्वाइवल पर निर्धारित है. इस किताब को लिखने में उन्हें करीब 8 साल लगे है और उनमें से 6 साल उन्होंने इसके लिए किए गए रिसर्च को दिया.

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