26.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

आजादी की जंग: शाहाबाद की धरती पर विद्रोह की तपिश से परेशान थे अंग्रेज,भाला,तलवार व बंदूक विहीन करने पर तुले थे

घटना 1857 के प्रथम विद्रोह की समाप्ति के कुछ महीनों बाद की है. देश में विद्रोह तो दबा दिया गया था और बाबू कुंवर सिंह अप्रैल 1858 में ही वीरगति को प्राप्त कर चुके थे, पर शाहाबाद की धरती पर विद्रोह की तपिश इतनी अधिक थी कि उसकी गर्मी से अंग्रेज अधिकारी बेचैन थे.

शशिभूषण कुंवर,पटना: घटना 1857 के प्रथम विद्रोह की समाप्ति के कुछ महीनों बाद की है. देश में विद्रोह तो दबा दिया गया था और बाबू कुंवर सिंह अप्रैल 1858 में ही वीरगति को प्राप्त कर चुके थे, पर शाहाबाद की धरती पर विद्रोह की तपिश इतनी अधिक थी कि उसकी गर्मी से अंग्रेज अधिकारी बेचैन थे.

शाहाबाद में विद्रोह फिर से सर नहीं उठा सके , इसके लिए पटना डिविजन के तत्कालीन कमिश्नर इरोम इए सैमुएल्स ने बंगाल सरकार के सचिव को 17 फरवरी, 1859 को पत्र लिखा. इसमें सैमुएल्स ने लिखा है कि पूरे शाहाबाद इलाके में राजपूतों के पास हथियार हैं और वह बिना कठोर उपाय अपनाये हथियार नहीं छोड़ेंगे.

सैमुएल्स ने लिखा कि शाहाबाद के ग्रामीण अब भी नेपाल की ओर से हथियार प्राप्त करने की उम्मीद करते हैं और आने वाली गर्मी में हथियारों का इस्तेमाल करेंगे. 17 फरवरी, 1859 को पटना डिविजन के कमिश्नर ने बंगाल सरकार के सचिव को इस प्रकार का पत्र लिखा, जिसमें पटना के मजिस्ट्रेट और कलेक्टर ए मनी द्वारा भेजी गयी रिपोर्ट का हवाला दिया गया है.

Also Read: RJD प्रदेश अध्यक्ष के बदले तेजस्वी ने फहराया तिरंगा, जगदानंद सिंह नहीं पहुंचे राजद कार्यालय

पटना डिविजन के कमिश्नर द्वारा बंगाल के सचिव को भेजे गये मूल दस्तावेज बिहार राज्य अभिलेखागार में इसकी गवाही दे रहे हैं. कमिश्नर ने लिखा कि शाहाबाद में बड़ी संख्या में सरकारी बंदूक छुपाये गये हैं. अब तक पड़ताल के बाद भी उसकी खोज नहीं हो सकी है. इन हथियारों को तेल और कपड़ों में लपेट कर खेतों और जंगलों में गाड़ दिया गया है. इसको लेकर ब्रिगेडियर डगलस ने शाहाबाद के गांवों में कार्रवाई की, पर उसकी कार्रवाई में गांवों में रहने वाले सिपाहियों को कम सजा दी गयी है.

इसके पहले पटना के कलेक्टर मनी ने पटना डिविजन के कमिश्नर को लिखा कि हथियारों खत्म करने के लिए उन्होंने खुद गांवों में जाकर कैंप किया. इसमें उन्होंने मसाढ़, नवादा और कारीसात गांवों में कैंप का विशेष हवाला दिया है.

कलेक्टर ने कमिश्नर को लिखित जानकारी दी कि मसाढ़ व नवादा दोनों गांव के मालिकों को पहले संदेश दिया गया. उनसे हथियार मांगे गये ,पर उन्होंने कोई हथियार होने की बात ही नहीं कबूल की. मसाढ़ गांव में कैंप करने के तीन दिनों के बाद बड़ी मुश्किल से गांव के लोगों ने सिर्फ 78 हथियार जमा कराये. इसमें पुराने तलवार और गड़ासे थे.

गांव वालों द्वारा हथियार नहीं जमा कराये जाने के बाद मसाढ़ पर छह हजार का जुर्माना और नवादा गांव पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाया गया क्योंकि अनुमान था कि इन दोनों गांवों में करीब एक हजार हथियार हैं, जिसमें सरकारी बंदूक भी शामिल थे.

इसके बाद उनको एक नोटिस दिया गया कि तीन दिनों के अंदर एक बंदूक जमा कराने पर दंड राशि में से 10 रुपये और एक तलवार जमा कराने पर तीन रुपये की दंड राशि में से कटौती कर दी जायेगी. उनको उम्मीद थी कि इस लालच में गांव वाले बंदूक और तलवार जमा करा कर जुर्माना की राशि से राहत पा सकते हैं.

मसाढ़ और नवादा गांव ने भारी दबाव के बाद भी सिर्फ 96 हथियार और जमा कराये. उसने आगे लिखा कि शाहाबाद को हथियार से मुक्त कराने में दो साल लग जायेंगे. साथ ही उसने जिन गांवों से हथियारों की बरामदगी की उसकी सूची भी पटना कि डिविजनल कमिश्नर को सौंपी.

POSTED BY: Thakur Shaktilochan

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें