IPTA@78: ”यह कैसा देश है, जहां अपने ही नागरिकों को दर-दर भटकना पड़ रहा”
पटना : कोरोना संक्रमण की चुनौतियों को मुस्तैदी से झेलते हुए इप्टा अपने 78वें वर्ष में प्रवेश कर गया है. फेसबुक के जरिये आयोजित विशेष कार्यक्रम 'आज के नाम, आज के गम' में वरीय शिक्षाविद् और बिहार इप्टा की प्रो डेजी नारायण ने कहा कि ''यह कैसा देश है, जो अपने ही नागरिकों को भूख से मरने, सड़क पर खुद को घसीटने और दर-ब-दर भटकने के लिए छोड़ दिया है? राज सत्ता धर्म की नफरत फैलाने में लगी है और झूठे दंभ में देश के उस मेहनतकश को भूख-प्यास से मरने के लिए सड़क पर छोड़ चुकी है."
पटना : कोरोना संक्रमण की चुनौतियों को मुस्तैदी से झेलते हुए इप्टा अपने 78वें वर्ष में प्रवेश कर गया है. फेसबुक के जरिये आयोजित विशेष कार्यक्रम ‘आज के नाम, आज के गम’ में वरीय शिक्षाविद् और बिहार इप्टा की प्रो डेजी नारायण ने कहा कि ”यह कैसा देश है, जो अपने ही नागरिकों को भूख से मरने, सड़क पर खुद को घसीटने और दर-ब-दर भटकने के लिए छोड़ दिया है? राज सत्ता धर्म की नफरत फैलाने में लगी है और झूठे दंभ में देश के उस मेहनतकश को भूख-प्यास से मरने के लिए सड़क पर छोड़ चुकी है.”
इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश ने कहा है कि यह ”इप्टा के इतिहास में पहली बार हो रहा है, जब हम बिना सोशल गैदरिंग के स्थापना दिवस मना रहे हैं. यह कोई जश्न नहीं, बल्कि आज सबसे विपरीत समय में दुःख झेल रहे मजदूरों, किसानों और लाखों नागरिकों के समर्थन में इप्टा का प्रतिरोध है. उन्होंने हरियाणा से पिता को साइकिल पर बिठा कर बिहार आनेवाली ज्योति को लेकर कहा है कि एक युवती अपने पिता की जान बचाती है और उसके प्राण बचने की विवशता को देश के मीडिया और राजनेता के फन के रूप में लेते हैं और सेलेब्रिटी, मनोरंजक इवेंट के रूप में प्रस्तुत करते हैं.
आंबेडकर विश्वविद्यालय की प्राध्यापक प्रो सुमंगला दामोदरन ने ऑनलाइन कार्यक्रम में कहा कि 2014 से शुरू हुआ दौर देश का सबसे खतरनाक और संगीन है. सिर्फ कोरोना और स्वास्थ्य का खतरा ही नहीं है, मजदूरों के पलायन का नहीं, यह एक बेहतर दुनिया का सपना देखनेवालों के लिए भी संकट का समय है. 40-50 के दशक में गाये गये जन गीतों की प्रासंगिकता पर उन्होंने कहा कि इसका तेवर आज के संदर्भ के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए. ये गीत ऐतिहासिक होने से ज्यादा आज के गीत के रूप में प्रस्तुत हो. बंगाल अकाल के दौरान लिखे गये गीतों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि आज कोविड के दौर में भी बंगाल अकाल के गीत प्रासंगिक हैं और खुल के गाने चाहिए.
बिहार इप्टा ने अपने फेसबुक पेज पर प्रवासी मजदूरों और किसानों के जीवन संघर्ष को समर्पित जन संस्कृति दिवस 25 मई, 2020 को इप्टा के 78वां स्थापना दिवस पर विशेष कार्यक्रम ‘आज के नाम, आज के गम के नाम’ की टैगलाईन के साथ मॉर्निंग, मैटिनी और इवनिंग शो में बांट कर किया गया. कार्यक्रम का आगाज फैज अहमद फैज की नज्म आज के नाम, आज के गम के नाम से सीताराम सिंह ने किया. इप्टा का झंडा गीत तू जिंदा है, तो जिंदगी की जीत में यकीन कर, अगर कहीं है, स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर सुबह के गर्म होते माहौल में सर्द हवा के झोंके की तरह आयी.
जन संस्कृति दिवस के संदेश के बाद कबीर के बेखौफ और बेबाक संघर्ष को रेखांकित करते नाटक कबीरा खड़ा बाजार में का प्रसारण किया किया गया. भीष्म साहनी लिखित और तनवीर अख्तर निर्देशित यह नाटक ‘अपने विद्रोही तेवर’ और ‘धूप-छांव’ की कबीर के जीवन को रखा. आर्या कुमारी द्वारा जन गीतों की प्रस्तुति की गयी. आर्या ने दुष्यंत कुमार की नज्म ‘हो गयी है, पीर पर्वत-सी…’ और शंकर शैलेंद्र के गीत ‘यह वक्त की आवाज है, मिल के चलो…’ का गायन किया. इसके बाद कल्पना के गीत ‘मजदूर भईया…’ और चंदन तिवारी के गीत ‘माई ए माई, बिहान होई कहिया…’ के प्रसारण ने लोगों को भावुक कर दिया.
बिहार इप्टा के उपाध्यक्ष डॉ सत्यजीत ने कहा कि कोविड 19 का संकट उतना खतरनाक नहीं जितना सरकार की नाकामियों के कारण हमें देखना पड़ रहा है. अलका और दीपक ने फैज अहमद फैज और जांनिसार अख्तर के नज्म की प्रस्तुति की. इप्टा के जन गीतों का सफ़रनामा आगाज पटना इप्टा बैंड ने पेश किया. इसके अलावा छपरा इप्टा की प्रस्तुति लोक गीत में संगीत शिक्षिका और लोकगीतों की शोधार्थी रहीं कंचन बाला ने भोजपुरी अंचल में लोक परंपरा में प्रचलित ‘पिया और पुत्र के वियोग’, सामंती शोषण के प्रति आम जनता के आक्रोश को अभिव्यक्त करने की कोशिश की.
भारत सरकार में अधिकारी शरद आनंद ने भोजपुरी अंचल में व्याप्त पलायन के दर्द को उकेरा. भागलपुर इप्टा ने लोकनृत्य शैलियों ‘गोदना’, ‘झिझिया’, ‘डोमकच’, ‘जट-जटिन’ की शानदार बानगियां प्रस्तुत कीं. पटना सिटी इप्टा द्वारा आम जनता की ज्वलंत समस्याओं पर केंद्रित जन गीतों की यादगार प्रस्तुति की गयी. भागलपुर इप्टा द्वारा रितेश रंजन निर्देशित नाट्य प्रस्तुति मुखौटा में सिस्टम के दोगलेपन को उजागर किया गया.
पटना इप्टा द्वारा भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर के दो नाटकों बिदेसिया और गबरघिचोर पर आधारित तनवीर अख्तर निर्देशित तथा देश भर में कई कीर्तिमान स्थापित करनेवाली नाट्य प्रस्तुति गबरघिचोरन के ‘माई की यादगार’ प्रस्तुति की गयी. पटना इप्टा की वरिष्ठ रंगकर्मी नूतन, श्वेता, सिम्मी और रश्मि द्वारा जन गीतों की प्रस्तुति की गयी.
परिवर्तन सिवान द्वारा सूफी संगीत की प्रस्तुति की गयी. अंत में पटना इप्टा द्वारा प्रख्यात रंग परिकल्पक, महासचिव बिहार इप्टा द्वारा नाट्य प्रस्तुति सुपनवां का सपना प्रस्तुत किया गया. डिजिटल प्लेटफार्म पर 12 घंटों का लाइव प्रसारण कर बिहार इप्टा ने 78 वर्षों के इतिहास में एक नया स्वर्णिम अध्याय जोड़ा. इस परिकल्पना को मूर्त रूप बिहार इप्टा के दो युवाओं कबीर और आमिर ने दिया.
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