संवाददाता, पटना
शहर के गांधी मैदान स्थित बापू सभागार में रविवार को वक्फ संरक्षण एवं राष्ट्रीय एकता सम्मेलन का आयोजन किया गया. वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ आयोजित सम्मेलन में जमीयत उलेमा हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि वक्फ को जिंदा रखना हमारा धार्मिक कर्तव्य है. संविधान में भी अल्पसंख्यकों को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की गयी है. उन्होंने कहा कि बंदोबस्ती कोई नई प्रथा नहीं है बल्कि यह इस्लाम की शुरुआत से चली आ रही प्रथा है. लोग मदद के लिए अपनी संपत्ति ईश्वर की राह में जरूरतमंद लोगों और अन्य अच्छे उद्देश्यों के लिये करते हैं. सम्मेलन में मौलाना मदनी ने वक्फ को लेकर केंद्र सरकार के हालिया बयान पर हैरानी जताते हुये कहा कि संविधान के अनुच्छेद में 25-26 के तहत देश के सभी अल्पसंख्यकों को धार्मिक स्वतंत्रता दी गई है और यह इस धार्मिक स्वतंत्रता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. वक्फ संशोधन बिल एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. हम इस बिल को पूरी तरह से खारिज करते हैं क्योंकि इसमें एक भी संशोधन नहीं है जिस पर चर्चा की जा सके. उन्होंने जमीयत उलेमा हिंद के इतिहास पर चर्चा करते हुए कहा कि जब 1857 में हमारे बुजुर्गों ने देश को गुलामी की अभिशाप से मुक्त कराने के लिए आंदोलन शुरू किया था. 1857 में 33 हजार से अधिक विद्वानों को फांसी पर लटका दिया गया था. जमीयत उलेमा हिंद की स्थापना आजादी के लिए संघर्ष करने वालों को एक मंच प्रदान करने के उद्देश्य से की गयी थी. उन्होंने कहा कि हमारे बुजुर्गों की सोच थी कि हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाइयों को एक साथ लाए बिना देश की आजादी नहीं मिल सकती है इसलिए उन्होंने आजादी की लड़ाई में सभी को शामिल किया और उसी रास्ते पर चलकर सफल हासिल की. सम्मेलन में जमीअत उलेमा के मुफ्ती नसीम, मुफ्ती मो. खालिद, मौलाना मो. अब्बास, मौलाना अब्दुल बासित पदाधिकारी समेत वर्किंग कमेटी के सदस्य बड़ी संख्या में मौजूद रहे.
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