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JDU 13 अक्टूबर को करेगी ‘आरक्षण विरोधी भाजपा का पोल खोल’ कार्यक्रम, बोले उमेश कुशवाहा

जदयू प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने कहा कि 2007 से ही हमारी सरकार ने नगर निकायों में अति पिछड़ा वर्ग के लिए विशेष आरक्षण का प्रावधान सुनिश्चित किया. उसे सुप्रीम कोर्ट से भी हरी झंडी प्राप्त हुई.

जदयू प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने कहा है कि जदयू 13 अक्तूबर को हर जिला मुख्यालय पर ‘आरक्षण विरोधी भाजपा का पोल खोल’ कार्यक्रम करेगी. उस दिन पार्टी के सभी नेता, पदाधिकारी और कार्यकर्ता अपने-अपने जिला मुख्यालय में धरने का आयोजन कर भाजपा के दोहरे चरित्र को उजागर करेंगे. भाजपा अति पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिये जाने की विरोधी है, इस कारण भाजपा वालों ने ही उच्च न्यायालय में याचिका दायर की. हद यह है कि अब उलटा हम पर ही अति पिछड़ा की हक मारी का अनर्गल आरोप लगा रही है.

2007 से ही विशेष आरक्षण का प्रावधान सुनिश्चित

उमेश सिंह कुशवाहा ने कहा कि 2007 से ही हमारी सरकार ने नगर निकायों में अति पिछड़ा वर्ग के लिए विशेष आरक्षण का प्रावधान सुनिश्चित किया. उसे सुप्रीम कोर्ट से भी हरी झंडी प्राप्त हुई. अब उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध हम लोग अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करेंगे. हमें पूर्ण विश्वास है कि अति पिछड़ा वर्ग को न्याय दिलाने में सफल होंगे.

भाजपा नेता गलत बोल रहे – सीएम 

वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नगर निकाय चुनाव को लेकर हाइकोर्ट के आदेश पर कहा है कि बिहार सरकार एक बार कोर्ट से अनुरोध करेगी कि इसे देख लीजिए, बिहार में काफी पहले से यह लागू है. इस कानून को पहले हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट एप्रूवल दे चुका है तो फिर नयी बात कैसे की जा रही है. मुख्यमंत्री ने कहा कि भाजपा के नेता गलत बोल रहे हैं. हमलोगों ने सभी पार्टियों से विचार विमर्श कर वर्ष 2006 में इसको लेकर कानून बनाया था.

इस कानून के आधार पर कई बार हो चुका है चुनाव – सीएम 

मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष 2000 में जब राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं तो उन्होंने ओबीसी को आरक्षण दिया था. उस कानून को कोर्ट में चैलेंज किया गया था, जिस पर कोर्ट ने रोक लगा दी थी. हम लोग जब वर्ष 2005 में सत्ता में आये तो हमने भाजपा सहित सब की राय से ईबीसी को आरक्षण दिया. वर्ष 2006 के पंचायत चुनाव के बाद वर्ष 2007 में नगर निकायों में इसे लागू किया गया. इस कानून के खिलाफ कई लोग हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट गये लेकिन दोनों कोर्ट ने उनकी याचिका को रिजेक्ट कर दिया. इस कानून के आधार पर चार बार पंचायत का और तीन बार नगर निकायों का चुनाव कराया जा चुका है.

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