लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने देश में आपातकाल के खिलाफ अपने आंदोलन के माध्यम से देश की अहंकारी शक्ति को उखाड़ फेंका था. इस आंदोलन ने बिहार की राजनीति को एक नई स्थिति और दिशा देने के साथ-साथ बिहार को कई दिग्गज नेता भी दिए. जेपी के इस आंदोलन से निकले लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और सुशील मोदी जैसे नेताओं का देश और प्रदेश की राजनीति पर गहरा प्रभाव रहा है. इन नेताओं ने जेपी के आंदोलन में छात्र नेता के रूप में अहम भूमिका निभाई थी.
लालू यादव 1970 में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के महासचिव और 1973 में छात्र संघ के अध्यक्ष बने. लालू यादव 1974 के जेपी आंदोलन में सबसे अहम युवा नेताओं में से एक थे. इसके बाद जब 1977 में आपातकाल समाप्त हुआ तो लालू यादव 29 साल की उम्र में छपरा से जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीत कर सांसद बनें. 1980 में वो लोकसभा चुनाव हार गए लेकिन विधानसभा के चुनाव में इनकी जीत हुई. 1989 में लालू यादव विधानसभा में विपक्ष के नेता बने और उसी वर्ष लोकसभा में भी वो विजयी हुए. 1990 में लालू यादव मुख्यमंत्री बने थे. इसी वर्ष उन्होंने लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा भी रोकी थी. 1997 में लालू यादव को चारा घोटाला की वजह से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा, इसी वर्ष उन्होंने जनता पार्टी से अलग राष्ट्रीय जनता दल पार्टी की स्थापना की. इसके बाद लालू 2004 में यूपीए सरकार में रेल मंत्री बनें. 2013 में चारा घोटाला में दोषी पाए जाने के बाद लालू को जेल जाना पड़ा और लोकसभा की सीट छोड़नी पड़ी.
नीतीश कुमार का सियासी सफर भी लालू यादव की तरह ही जेपी आंदोलन से शुरू होता है. नीतीश कुमार भी जेपी आंदोलन के एक सक्रिय युवा नेता थे. नीतीश कुमार 1977 में जनता पार्टी में शामिल हुए और 1985 में अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता. नीतीश कुमार वर्ष 2004 तक कई बार केंद्र में कृषि, रेल और ट्रांसपोर्ट मंत्री के पदों पर रहे. साल 2000 में नीतीश कुमार पहली बार मुख्यमंत्री बने थे पर उनकी यह सरकार महज सात दिन ही चल पाई थी. 2005 में नीतीश कुमार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनें और उनके नेतृत्व में बिहार आर्थिक रूप से आगे बढ़ा इसी कारण एक बार फिर से 2010 के चुनाव में उन्हें जीत मिली और वो तीसरी बार मुख्यमंत्री बनें. लेकिन जब 2014 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा तो उन्होंने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और जितन राम मांझी को सीएम बना दिया. लेकिन कुछ समय बाद ही नीतीश कुमार ने सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ले ली और मांझी पार्टी से निकाले गए. इसके बाद वो 2015 में एक और बार मुख्यमंत्री बनें लेकिन 2017 में उन्होंने एक बार फिर से सीएम पद से इस्तीफा दिया. हालांकि वो कुछ वक्त में ही भाजपा के समर्थन से एक बार फिर से सीएम बन गए थे. 2020 के चुनाव में भाजपा के साथ मिलकर नीतीश कुमार ने एक और बार सरकार बनाई और सीएम बनें. 2022 में नीतीश कुमार ने एक बार फिर से भाजपा का साथ छोरा और राजद के साथ सरकार बनाया, इस बार भी सीएम की कुर्सी पर नीतीश कुमार ही बैठे.
जेपी आंदोलन से लालू और नीतीश की तरह ही एक और नेता सुशील मोदी निकलें. भाजपा नेता सुशील मोदी उस वक्त पटना विश्वविद्यालय में महासचिव थे जब लालू यादव अध्यक्ष थे. सुशील मोदी ने आपातकाल के दौरान 19 महीने जेल में भी बिताए थे. 1986 में सुशील मोदी पहली बार अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के महासचिव बनें. 1990 में पहली बार उन्होंने बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीता. इसी वर्ष उन्हें भाजपा बिहार विधायक दल का मुख्य सचेतक बनाया गया. सुशील मोदी 1996 से 2004 तक विधानसभा में विपक्ष के नेता बने रहें. वो पहली बार 2004 में लोकसभा का चुनाव भागलपुर सीट से जीतें. 2005 में जब बिहार में एनडीए की सरकार बनी और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनें तो सुशील मोदी उप मुख्यमंत्री बनें. इसी तरह 2010 में भी उन्होंने उप मुख्यमंत्री का पद संभाला.