प्रभात खबर करगिल युद्ध में ‘चार्ली कंपनी’ की अगुवाई करने वाले नायक गणेश यादव के गांव पहुंची
करगिल विजय दिवस हर साल 26 जुलाई को पाकिस्तान के खिलाफ करगिल युद्ध में भारतीय सशस्त्र बलों की जीत का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है.
हिमांशु देव@ पटना
करगिल युद्ध ‘मौत तो एक दिन सभी को आनी है, लेकिन शहादत हर किसी को नसीब नहीं होती…’. भगत सिंह के ये अल्फ़ाज़ आज भी बिहटा के पाण्डेयचक गांव में गूंजती है. इस गांव के हर घर के युवा आज फौजी बनने के लिए उसी मैदान पर प्रैक्टिस करता है, जिसपर कभी शहीद गणेश प्रसाद यादव फौज में भर्ती होने के लिए तैयारी करते थे. उन्होंने करगिल में तिरंगा लहराने के लिए 29 मई 1999 को अपनी जान देश के नाम कर दिया था. आज करगिल विजय दिवस के 25 साल पूरे हो रहे हैं. वर्ष 1999 की इसी तारीख को भारत और पाकिस्तान के बीच तीन माह तक चले युद्ध का अंत हुआ था.
साथ ही, भारत उन वीर योद्धाओं के कारण गगन चूमती चोटियों पर तिरंगा फहराया था. बता दें कि तीन मई 1999 को पाकिस्तान ने कारगिल की पहाड़ियों पर करीब पांच हजार से ज्यादा सैनिकों के साथ घुसपैठ कर कब्जा जमा लिया था. इसके बाद पाकिस्तानी घुसपैठियों को कारगिल से खदेड़ने के लिए ‘ऑपरेशन विजय’ चलाया गया. इस युद्ध में करीब दो लाख भारतीय सैनिकों ने हिस्सा लिया था और यह युद्ध 60 दिनों तक चला था. इसमें भारत के करीब 448 जवानों ने अपनी बलिदानी दी थी. जिसमें संयुक्त बिहार के 18 नायक शामिल थे. उसी में से एक थे, पटना जिले के गणेश प्रसाद यादव. जिन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया.
शहीद गणेश प्रसाद यादव के परिजनों ने कहा-
शहादत के नाम पर सिर्फ मिला आश्वासन
शहीद गणेश यादव के भाई दिनेश्वर प्रसाद यादव से जब प्रभात खबर ने बातचीत करनी शुरू की तो उन्होंने कहा, कारगिल युद्ध में गणेश के वीरगति को प्राप्त करने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की ओर से कई आश्वासन दिये गये थे, लेकिन, मिला कुछ नहीं. पत्नी पुष्पा राय को सरकारी शिक्षिका व गैस एजेंसी देने की बात कही गयी थी. इसमें एजेंसी का उन्होंने चयन किया. इसके अलावा स्कूल और सामुदायिक भवन बनाने का काम आज भी अधूरा है. हालांकि स्कूल भवन तो बनकर तैयार है, लेकिन अभी तक शिक्षक बहाल नहीं किये गये हैं. स्कूल में जानवर बांधे जाते हैं. जबकि, गांव के बच्चों को पढ़ाई के लिए 1.5-2 किलोमीटर दूरी जाना पड़ता है. गांव की सड़कों ही स्थिति भी बदहाल है. गांव के हर घर को पक्का मकान देने की बात कही गयी थी, जिसे पिछले 25 वर्षों में भी पूरा नहीं किया जा सका.
फौज में भर्ती होना चाहता है गांव का हर युवा
पाण्डेयचक करीब 500 परिवारों का एक गांव है, जिनमें करीब छह हजार लोग रहते हैं. यह गांव बिहटा के लई बाजार से करीब तीन किलोमीटर पर मौजूद है. प्रभात खबर से बातचीत करते हुए उनके भतीजा रविशंकर कुमार, आलोक राय व मनीष राय ने बताया कि आज का दिन हमारे लिए काफी खास है. खास इसलिए भी कि देश की सेवा में व करगिल युद्ध जीतने में हमारे चाचा ने अपना बलिदान दिया था. उन्हें अपने सीने पर गोलियां तो मंजूर थी, लेकिन अपने वतन की जमीन पर दुश्मनों के कदम मंजूर नहीं थे. जब-जब उनकी याद आती है, गांव के युवाओं का सीना चौड़ा हो जाता है. सभी उन्हें अपना प्रेरक मानते हुए सेना में भर्ती होने का सपना देखते हैं. यही वजह है कि हर घर का लड़का फौज में भर्ती होने के लिए तैयारी करता है. अब तक गांव के सात युवा फौज में भर्ती हो चुके हैं.
भाइयों को भी फौज में भर्ती करना चाहते थे गणेश
गणेश यादव के चाचा श्याम देव यादव कहते हैं, गणेश जब भी घर आता, अपने सभी भाइयों को फौज में भर्ती होने के लिए प्रेरित करता था. करगिल जाने से पहले वह बांग्लादेश से गांव आया था और कहा था कि भाईयों को भी फौज में भर्ती करायेंगे. इसके बाद वह करगिल के लिए घर से निकला गया. लेकिन, ऑपरेशन विजय के दौरान 28 मई को बटालिक सब-सेक्टर में 14 हजार फुट की ऊंचाई पर शत्रु की मजबूत किला बंद चौकी प्वाइंट 4268 पर जिस चार्ली कंपनी को सौंपा गया था, उसमें गणेश भी था. वह आक्रमण दलों में सबसे आगे था. इसी बीच दुश्मन के तोपखाने व लघु शस्त्रों की भारी गोलीबारी की चपेट में आ गया. पर गोलीबारी की परवाह किए बिना वे दुश्मन पर टूट पड़े और दो को मार गिराया. तभी उसपर गोलियों की बौछार होने लगी.
42 दिन के बाद घर आया था पार्थिव शरीर
पिता रामदेव यादव ने बताया कि गांव में हमलोग सोये हुए ही थे कि गणेश के ससुर अशर्फी राय गांव पहुंचे. उन्होंने कहा कि अखबार में छपा है कि गणेश शहीद हो गया. इसकी पुष्टि के लिए हमलोग दानापुर मिलिट्री कैंप पहुंचे. वहां बताया गया कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है. लेकिन, सुबह आठ बजते-बजते लालू प्रसाद यादव की खबर आयी कि वे हमारे गांव पहुंच रहे हैं. इसके बाद दो घंटे के भीतर लई बाजार से घर तक गिट्टी-बालू से सड़क बना दिया गया. यहां पहुंचते ही उन्होंने मुझसे कहा कि गणेश की पत्नि पुष्पा को नौकरी मिल रही है और बच्चों को दानापुर मिलिट्री कैंप में रखा जायेगा. हालांकि, बच्चों का छावनी में नहीं रखा गया. इसके 42 दिन बाद पार्थिव शरीर रात 12 बजे घर पहुंचा था. गणेश फोन नहीं रखता था. लेकिन, खत लिखता था. जिसमें करगिल को लेकर भी कहा था कि मैं ठीक हूं और युद्ध में जा रहा हूं.
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बचपन से पढ़ने में तेज थे गणेश
शहीद गणेश के मित्र रविकांत पासवान उर्फ मुन्ना ने प्रभात खबर को बताया कि मैं उनके साथ उच्च विद्यालय लई से दसवीं तक की पढ़ाई साथ में की थी. साल 1987 में वे आरा से सैनिक सेवा में नियुक्त हो गये थे. वह बचपन से ही पढ़ने में काफी तेज थे और सेना में भर्ती होना चाहते थे. बचपन के दिनों में उनके साथ बिताये हर पल को याद कर आज भी भावुक हो जाता हूं. वह एक वीर योद्धा थे.