बिहार को कर्पूरी ठाकुर के रूप में एक ऐसा नेता मिला था जो तब और अब भी विरले ही मिल सके. कर्पूरी ठाकुर को गरीबों की आवाज और जननायक के रूप में जाना जाता है. उनकी सादगी और समर्पण भाव से जुड़ी कई ऐसी घटनाएं हैं जो कर्पूरी ठाकुर को अन्य राजनेताओं से अलग करता है. जननायक की जयंती पर मंगलवार को केंद्र सरकार ने उन्हें भारत रत्न देने का एलान किया है. कर्पूरी ठाकुर का जन्म एक झोपड़ी में हुआ था और दो बार मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वो झोपड़ी के ही मालिक बने रह गए.
भारतरत्न से सम्मानित जननायक कर्पूरी ठाकुर एक ऐसे जननेता थे, जिन्होंने राजनीति को सामाजिक बदलाव का औजार माना. कर्पूरी ठाकुर दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे. एक बार उपमुख्यमंत्री पद की कमान उन्होंने थामी. एक बार सांसद रहे और विधायक बनकर भी उन्होंने नेतृत्व किया. वित्त और शिक्षा मंत्रालय भी उनके पास रहा.कभी विधानसभा चुनाव वो नहीं हारे. इसके बाद भी उनका जीवन बेहद सादगी भरा रहा. कहा जाता है कि वो झोपड़ी में जन्मे थे और उनके निधन के समय उनके पास केवल वही पुश्तैनी झोपड़ी थी. इसके अलावा उन्होंने कहीं अपना घर-मकान नहीं बनाया था. रुपए-पैसे के मामले में वो बेहद ईमानदार थे. राजनीति में भी परिवारवाद के खिलाफ रहे और अपने परिवार के किसी सदस्य को राजनीति में आगे नहीं बढ़ाया. कर्पूरी ठाकुर के पास ना तो अपना घर था और ना ही अपनी गाड़ी.
कर्पूरी ठाकुर की ईमानदारी और सादगी को मीडिया रिपोर्ट में जिक्र इस वाक्ये से समझा जा सकता है कि एकबार पार्टी की बैठक हजारीबाग में थी. ये तय कर दिया गया था कि एक बड़े उद्योगपति के घर पर सीएम का नाश्ता हाेगा. पार्टी के लिए सहयोग करने की भी बात हो गयी थी. जब कर्पूरी ठाकुर वहां से नाश्ता करके लौटे तो केवल 500 रुपए पार्टी के लिए मांगा. लौटने के दौरान उन्हे उक्त नेता ने कहा कि वो तो 5 लाख रुपए देने वाले थे.
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पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के प्रधान सचिव के रूप में भी काम किया. वो बताते हैं कि परिवार के लोगों को उनके मुख्यमंत्री होने का कोई लाभ नहीं मिलता था. उनकी पत्नी गांव की झोपड़ीनुमा अपने घर में रहती थीं. उन्होंने बताया कि एकबार किसी सरकारी कार्यक्रम में मैं समस्तीपुर गया और वहां से उनके गांव गया तो देखा झोपड़ी टूटी हुई थी. एक टूटा हुआ स्टूल था. उसे पोछ कर मुझे बैठने के लिए दिया गया. मिट्टी के चूल्हे पर लकड़ी की आग से मेरे लिए उन्होंने चाय बनायी. उस समय कर्पूरी जी बिहार के मुख्यमंत्री थे.
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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 1952 में बतौर विधायक वो प्रतिनिधिमंडल के साथ ऑस्ट्रिया जा रहे थे. उनके पास कोट नहीं था. एक दाेस्त से उन्होंने कोट मांगा जो फटा था. उन्हें यूगोस्लाविया में मार्शल टीटो ने कोट भेंट किया था.
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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, एक पूर्व विधायक कहते हैं कि बाबू वीर कुंवर सिंह जयंती कार्यक्रम में भाग लेने जब वो जगदीशपुर गए तो लौटने के क्रम में कार का टायर पंचर हो गया. कर्पूरी ठाकुर ने तब सुरक्षाकर्मियों को कहा कि वो किसी ट्रक को रूकवा दे उसी में बैठकर पटना जाएंगे. हालांकि थाने की गाड़ी मुहैया कराई गयी.
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जब पहली बार कर्पूरी ठाकुर सीएम बने थे तो उस समय समस्तीपुर के उस अनुमंडल में एसडीओ फील्ड विजिट पर निकले थे. स्थानीय सीओ भी उनके साथ थे. अचानक सीओ ने एसडीओ को कहा कि सर वो जो खेत में महिला बकरी चरा रही हैं, वह मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की पत्नी हैं. तत्कालीन एसडीओ ने कंफर्म किया तो बात सही निकली. इसका जिक्र उन्होंने तब किया था जब वो सहरसा के डीएम बनकर आए थे.