वर्तमान राजनीतिक संदर्भ और परिप्रेक्ष्य में दो वर्ग हैं- एक वह जो परिवारवाद, वंशवाद और भ्रष्टाचार की लतिकाओं की आड़ में फूल-फल रहा है, तो दूसरा वर्ग ऐसा है, जो इससे दूर राष्ट्र निर्माण और सर्वजन के विकास की दिशा में क्रमश: अग्रेसित है. बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर सियासत की स्याह छांव से हमेशा कोसों दूर रहे. वह ईमानदारी और सादगी की प्रतिमूर्ति थे.
यद्यपि बिहार से लेकर दिल्ली तक उनके कई चेले सियासी जगत के देदीप्यमान नक्षत्र हैं, किंतु बहुत कम ऐसे हैं जिन पर उनका वस्तुत: प्रभाव परिलक्षित होता है. उनकी छांव में राजनीति की शुरुआत करने वाले और कर्पूरी को आदर्श मानने वाले आज खुद कांग्रेस के साथ भ्रष्टाचार और परिवारवाद की गिरफ्त में हैं. नीतीश कुमार सरीखे नेता पर ही कर्पूरी ठाकुर का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है, जिन्होंने अपने आचरण, कर्मों, शासकीय फैसलों से कर्पूरी के चेले होने का राजकीय धर्म निभाया है.
कर्पूरी ठाकुर ने परिवारवाद को कभी प्रश्रय नहीं दिया. यहां तक कि मुख्यमंत्री बनने के बाद भी अपने पटना स्थित आवास में परिवार के सदस्यों को रहने की अनुमति नहीं दी थी. वे परिवारवाद और वंशवाद को लोकतंत्र के लिए घातक मानते थे. उन्होंने अपनी संतानों को राजनीति में उतारने के लिए कभी भी अपने आदर्शों और सिद्धांतों से समझौता नहीं किया.
एक बार की बात है कि चुनाव लड़ने के लिए पार्टी के उम्मीदवारों की सूची उनके पास भेजी गयी, जिसमें वह अपना तथा अपने बेटे रामनाथ ठाकुर का नाम देखकर नाराज हो गये. कर्पूरी जी किसानों एवं मजदूरों के सच्चे हितैषी थे. तभी तो उन्होंने गांव-गांव घूम-घूमकर नारा दिया ‘कमाने वाला खायेगा, लूटने वाला जायेगा’. उनके इस नारे से प्रभावित होकर गरीब, मजदूर व किसान सोशलिस्ट पार्टी से जुड़ते चले गये थे.
कर्पूरी ठाकुर का संसदीय जीवन सत्ता से ओत-प्रोत कम ही रहा. उन्होंने अधिकांश समय तक विपक्ष की राजनीति की. बावजूद उनकी जड़ें जनता-जनार्दन के बीच गहरी थीं. कोई घटना होने पर वह सबसे पहले उनके बीच पहुंचते थे. वे जनता की बेहतरी के लिए प्रयत्नशील रहे. जब उन्होंने 1977 में पहली बार मुख्यमंत्री का पद संभाला था तब उन्होंने बिहार में शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए कई उपाय किये.
कर्पूरी ठाकुर सर्वजन के नेता थे. कर्पूरी ठाकुर देशी माटी में जन्मे देशी मिजाज के राजनेता थे जिन्हें न पद का लोभ था, न उसकी लालसा और जब कुर्सी मिली भी तो उन्होंने कभी उसका न तो धौंस दिखाया और न ही तामझाम. मुख्यमंत्री रहते हुए सार्वजनिक जीवन में ऐसे कई उदाहरण हैं जब उन्होंने कई मौकों पर सादगी की अनूठी मिसाल पेश की. शायद इसीलिए कर्पूरी ठाकुर को सिर्फ नायक नहीं अपितु जननायक कहा गया.
– नवल किशोर राय
(लेखक पूर्व सांसद हैं और जननायक कर्पूरी ठाकुर विचार केंद्र, बिहार के केंद्रीय अध्यक्ष हैं.)
Posted By :Thakur Shaktilochan