Karpuri Thakur Jayanti 2021: ‘…पिछड़ा पाये सौ में साठ’ का नारा, एक फैसले से बिहार में शिक्षा को दी थी रफ्तार, जानें जननायक कर्पूरी ठाकुर के बारे में
आज जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती है. कर्पूरी ठाकुर बिहार के एक ऐसे सीएम के रूप में जाने जाते हैं जिनके उपर पदों का प्रभाव कभी हावी नहीं हो सका. जब देश आजादी के लिए लड़ रहा था उस समय बिहार जातिवाद की दंश झेल रहा था. इससे आजादी हासिल करना भी बिहार का एक बड़ा उद्देश्य बन चुका था. वहीं बिहार को आगे ले जाने के लिए एक जननायक ने इस माटी में जन्म लिया था. जिन्हें कर्पूरी ठाकुर के नाम से जाना गया.
आज जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती है. कर्पूरी ठाकुर बिहार के एक ऐसे सीएम के रूप में जाने जाते हैं जिनके उपर पदों का प्रभाव कभी हावी नहीं हो सका. जब देश आजादी के लिए लड़ रहा था उस समय बिहार जातिवाद की दंश झेल रहा था. इससे आजादी हासिल करना भी बिहार का एक बड़ा उद्देश्य बन चुका था. वहीं बिहार को आगे ले जाने के लिए एक जननायक ने इस माटी में जन्म लिया था. जिन्हें कर्पूरी ठाकुर के नाम से जाना गया.
1942 में वो आंदोलन का हिस्सा बने. 1943 में उनकी पहली गिरफ्तारी हुई. जिसमें 26 महीने उन्हें सलाखों के पीछे बिताना पड़ा. इस दौरान वो कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का हिस्सा बन चुके थे. 1948 में वो कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी छोड़ नवगठित सोशलिस्ट पार्टी की बिहार शाखा के संयुक्त सचिव बने और 1952 में पहली बार ताजापुर से चुनाव लड़कर विधायक बने. उन्होंने कभी कोई चुनाव नहीं हारा. 1964 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी बनने के बाद वो उससे जुड़ गए.
जब बिहार में सोशलिस्ट लोग कांग्रेस से अलग हुए तो कर्पूरी ठाकुर समाजवादी पार्टी के बड़े नेता बन चुके थे. बिहार के दिग्गज समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण के सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने के बाद कर्पूरी ठाकुर एक उम्मीद बनकर सामने रहे. लोहिया की सोशलिस्ट पार्टी और कर्पूरी ठाकुर की प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का विलय हुआ जो संसोपा के नाम से जाना गया. जिसका नारा था-” संसोपा ने बांधी गांठ,पिछड़ा पाए सौ में साठ”. इस नारे के साथ इन्होंने सामाजिक न्याय को एजेंडा बनाया और एक नयी समाजवादी राजनीति का शंखनाद हुआ.
बिहार में 1967 में कांग्रेस की सरकार बनी और महामाया प्रसाद सीएम बने. उन्होंने कर्पूरी ठाकुर को अपने मंत्रीमंडल में शिक्षा मंत्री और उपमुख्यमंत्री बनाया. कर्पूरी ठाकुर ने उस दौरान माध्यमिक शिक्षा में अंग्रेजी की अनियवार्यता समाप्त कर दी थी. ताकि अंग्रेजी बच्चों के पढ़ाई में बाधक ना बने. इसके बाद ही गांवों के छात्र-छात्राओं का उच्च शिक्षा की ओर बढ़ना शुरू हो गया था.
Posted By :Thakur Shaktilochan