पटना का कुर्जी चर्च धर्मप्रांत का सबसे बड़ा चर्च, 1921 में पहली बार फादर थॉमस केली बने थे प्रधान

फादर पियुस माइल ने बताया कि चर्च बनने के पहले पटना के विश्वासी गण बांकीपुर चर्च के सदस्य हुआ करते थे. कुर्जी के कुछ परिवारों के लिए आयरिश ब्रदर द्वारा संचालित संत माइकल स्कूल के परिसर में अवस्थित चर्च की स्थापना 1891 में हुई था.

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 18, 2022 4:46 AM
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पटना का कुर्जी चर्च यानी प्रेरितों की रानी इशा मंदिर धर्मप्रांत का सबसे बड़ा चर्च है. पटना दानापुर रोड़ पर अवस्थित दीघा में संत माइकल स्कूल के सामने कुर्जी चर्च का भव्य एवं विशाल गिरजाघर शोभामान है. कुर्जी चर्च के लिए 29 नवंबर 1855 को पटना के बीकर जेनरल अनानासियुस हार्टमन ओएकएम के द्वारा सात बीघा जमीन खरीदी गयी थी. जिस पर बाद में जा कर चर्च का निर्माण हुआ.

1921 में सबसे पहले फादर थोमस केली नियुक्त हुए थे प्रधान

फादर पियुस माइल ने बताया कि चर्च बनने के पहले पटना के विश्वासी गण बांकीपुर चर्च के सदस्य हुआ करते थे. कुर्जी के कुछ परिवारों के लिए आयरिश ब्रदर द्वारा संचालित संत माइकल स्कूल के परिसर में अवस्थित चर्च की स्थापना 1891 में हुआ था. सर्वप्रथम फादर थोमस केली 1921 में कुर्जी के प्रधान नियुक्त हुए. यह चर्च कुर्जी क्षेत्र के कुछ ही ईसाई परिवारों के लिए उपयोग होता था. संत माइकल स्कूल के प्रांगण में दुखित माता ग्रोटो का निर्माण हुआ. फादर रफाएल साह के नेतृत्व में संजीवन प्रेस 1857 में शुरू हुआ. जरूरत के अनुसार इसाईयों की बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए चर्च का निर्माण किया गया. इसका नाम रखा गया प्रेरितों की रानी इशामंदिर. यह चर्च अंग्रेजों के समय का है. इस चर्च की भव्यता देखते ही बनती है. 20 नवंबर 1977 में पटना धर्माप्रांत अगस्टीन वील्डर मूथ के द्वारा नये चर्च का उदघाटन हुआ.

80 फीट लंबा है चर्च 

पियुस माइल ने बताया कि चर्च के वेदी की लंबाई 80 फीट तथा चौड़ाई 45 फीट है. वेदी के ऊपर का गुंबद 30 फीट है. पवित्र संस्कार बना है. यीशु के शरीर और रक्त का प्रतीक रोटी और दाखरस उस पर बना है. जौ और अंगूर, रोटी और दाखरस यानी यीशु के सच शरीर और रक्त का प्रतीकात्मक रहस्यात्मक और आध्यात्मिकता को प्रगाढ़ता का दर्शन अपनी-अपनी अनुभूतियों से हो जाती है. बेदी के सामने बायें और लगभग 5 फीट की मां मरियम की गोद में बालक यीशु लिए मूर्ति है. नीले रंग की रेशमी धन से मां की पृष्ठभूमि को सजाया गया. वहां भक्तों को पवित्र अनुभुति की सधनाता, एकाग्रता रमणीयता व शांति मिलती है.

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