लखीसराय के बड़हिया का एटम बम रसगुल्ला है फेमस, कोलकाता के रसगुल्ले को भी देता है टक्कर, जानें क्या है खासियत
बड़हिया में अमूमन हर तरह के रसगुल्ले तैयार किये जाते हैं, लेकिन उन सभी में एटम बम नाम का रसगुल्ला काफी प्रसिद्ध है. इस रसगुल्ले का आकार ऐसा है कि कोई आम आदमी एक खाने के बाद दूसरा खाने के लिए साहस नहीं जुटा पाता है.
गंगा नदी के तट पर बसे व मां जगदंबा के आशीर्वाद से आच्छादित लखीसराय का बड़हिया दशकों से लोगों के जीवन में अपनी लजीज मिठाई की मिठास घोल रहा है. बड़हिया का नाम लेते ही लोगों के मन रसगुल्ले की तस्वीर उभरने लगती है और मुंह में पानी आ जाता है. जैसे फलों का राजा आम है, वैसे ही रसगुल्ला को मिठाई का राजा भी कहा जाता है. वैसे तो रसगुल्ला के नाम से कोलकाता प्रसिद्ध है, लेकिन बड़हिया का रसगुल्ला भी अपने अलहदा स्वाद के मामले में उसे सीधी टक्कर देने की क्षमता रखता है. इसलिए इसे रसगुल्ले की नगरी भी कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. यहां के रसगुल्ले की डिमांड निकटवर्ती राज्यों में भी भरपूर है. इसलिए बिहार का यह छोटा कस्बा रसगुल्ले की नगरी के नाम से भी जाना जाता है.
एटम बम रसगुल्ला है प्रसिद्ध
बड़हिया में अमूमन हर तरह के रसगुल्ले तैयार किये जाते हैं, लेकिन उन सभी में एटम बम नाम का रसगुल्ला काफी प्रसिद्ध है. इस रसगुल्ले का आकार ऐसा है कि कोई आम आदमी एक खाने के बाद दूसरा खाने के लिए साहस नहीं जुटा पाता है. स्वाद ऐसा खालिस कि और खाने का मन भी करे. खास बात यह कि आज भी यहां 130 से 200 रुपये किलो रसगुल्ला मिल रहा है. यहां के रसगुल्ले शुद्ध छेना, पतली चाशनी और बिना मैदे के तैयार होते हैं. इसके अलावा अन्य प्रकार की भी मिठाइयां बनायी जाती हैं. जैसे- गुड़ की चाशनी से सराबोर रसगुल्ला, रसमलाई, काला जामुन, क्रीम चॉप मिठाई आदि.
लगभग ढाई हजार लोगों को मिला है रोजगार
यहां रसगुल्ले की लगभग 50 से भी अधिक दुकानें हैं, जहां से प्रत्येक दिन लगभग एक से दो क्विंटल मिठाई की बिक्री हो जाती है. इसे बनाने के लिए कारीगर व मजदूर स्थानीय होते हैं. यहां एक दुकान में लगभग 20 से 25 लोग काम करते हैं. इस हिसाब से देखें तो लगभग दो से ढाई हजार लोगों का घर रसगुल्ले के व्यापार से चल रहा है. वहीं कई किसान भी अपनी दूध की बिक्री स्थानीय बाजार में कर अपना रोजगार चला रहे हैं.
अन्य शहरों से सस्ता है यहां का रसगुल्ला
बड़हिया में पिछले 28 वर्षों से मां शीतला मिष्ठान भंडार का संचालन कर रहे अमित कुमार ने बताया कि यहां भरपूर मात्रा में दूध की उपलब्धता है. डेयरी की जगह किसान खुद यहां दूध पहुंचा जाते हैं. इससे अच्छा दूध कम कीमत में मिल जाता है. इसके अलावा चाशनी का भी कम इस्तेमाल किया जाता है.
दियारा इलाके या आसपास के क्षेत्रों से मिल जाता है दूध
रसगुल्ले को तैयार करनेवाले कारीगर अनिल बताते है कि यहां दूध दियारा इलाके या आसपास के क्षेत्रों से लाया जाता है. वे लोग उसी से छेना निकालते हैं. यहां के रसगुल्ले हल्के होते हैं. इसके पीछे वजह यह है कि छेना को भरपूर फेंटा लगाते हैं. इसके कारण वह काफी हल्का और मुलायम हो जाता है. पतली चाशनी और बिना मैदा के इसे बनाया जाता है, जो इसे और लाजवाब बना देता है.