संवाददाता, पटना : दो अप्रैल को एनजीटी की तरफ से दिये गये आदेश में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को प्रदेश के अलग-अलग शहरों, जहां एनएएमपी केंद्र स्थापित किये गये हैं, इन शहरों की वायु में सीसा, निकेल व आर्सेनिक के अलग-अलग मापदंडों की मॉनीटरिंग रिपोर्ट पेश की गयी. इसमें प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से राज्य के छह शहर- पटना, गया, मुजफ्फरपुर, सासाराम, दरभंगा व राजगीर में अप्रैल व जून में परिवेशीय वायु में सीसा, आर्सेनिक व निकेल की मात्रा को मापा गया. बोर्ड ने दर्ज किये गये परिणाम पर यह निष्कर्ष निकला कि सभी छह शहरों में तीनों भारी धातुओं, जिनका अनुश्रय कराया गया, की प्राप्त सांद्रता निर्धारित मानकों के अंदर पायी गयी.
सीसा की सांद्रता पटना में कम, गया में अधिक
सीसा की उच्चतम सांद्रता में 0.156 माइक्रो ग्राम प्रति घनमीटर पटना की हवा में कम पायी गयी, जबकि इसकी न्यूनतम सांद्रता में 0.036 माइक्रो ग्राम प्रति घनमीटर दरभंगा शहर में पायी गयी है. गया शहर की हवा में आर्सेनिक की सांद्रता अन्य शहरों की तुलना में अधिक 0.610 नैनोमीटर पायी गयी है.
छह शहरों में राजगीर की वायु सांद्रता सबसे कम
राजगीर की वायु सांद्रता में 0.294 नैनोग्राम प्रति घनमीटर राजगीर पायी गयी. छह शहरों के तुलनात्मक अध्ययन में मापा गये तीनों भारी धातुओं के मामले में राजगीर की हवा की गुणवत्ता सबसे अच्छी पायी है. लेड में वायु जनित सीसा समेत पेंट उद्योग, बैटरी जैसे सीसा युक्त सामग्री को गलाने, शोधन और संस्करण से होने वाले औद्योगिक उत्सर्जन और नगरपालिका व औद्योगिक कचरों के भष्मीकरण से इलेक्ट्रॉनिक या उपचारित लकड़ी जैसे सामग्री में फंसा सीसा का निकलना. लेड जैसी भारी धातु का इस्तेमाल करने से बच्चे में मानसिक मंदता का कारण बन सकता है. जिससे स्मृति हानि, सीखने व व्यवहार संबंधी समस्या उत्पन्न हो सकती है. इसके अलावा इन धातुओं के कारण उच्च रक्तचाप का कारण बन सकता है. गुर्दों को नुकसान पहुंचाने की संभावना रहती है. आर्सेनिक के लंबे समय तक संपर्क में रहने से त्वचा, फेफड़े व पेशाब के रास्ते में कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. निकेल के कारण फेफड़े व श्वांस नली में जलन, श्वास संबंधी तकलीफ और क्रोनिक ब्रोंकाइटिस हो सकती है.
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