Lok Sabha Election 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर एक तरफ जिला प्रशासन मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए जागरूकता अभियान समेत अन्य कार्यक्रम चला रहा है, तो दूसरी तरफ गांव के बेरोजगार युवाओं की इस जागरूकता कार्यक्रम और मतदान में दिलचस्पी नहीं दिख रही है. उन्हें अपने परिवार के परवरिश की चिंता सता रही है. इसके लिए वे रोजगार की तलाश में दूसरे प्रांतों के लिए निकल रहे हैं. अभी पंजाब, हरियाणा, यूपी समेत अन्य राज्यों में अनाज मंडी का सीजन चल रहा है, जहां बड़ी संख्या में मजदूरों की आवश्यकता है. अनाज मंडी के ठेकेदार मजदूरों को अग्रिम राशि देने के साथ-साथ ट्रेन का टिकट देकर उन्हें ले जा रहे हैं.
ठेकेदार मजदूरों को 15 से 20 हजार में तय करके ले जा रहे
इन प्रदेशों में फिलहाल अभी गेंहू की मंडी चल रही है, जहां किसानों द्वारा मंडी लाये गये गेहूं को बोरी में भरकर वजन करने के बाद उसे गाड़ी में लोड करने का काम होता है. यह काम वहां लगभग एक माह तक गेहूं के सीजन में और एक माह धान के सीजन में चलता है. एक माह के लिए ठेकेदार मजदूरों को 15 से 20 हजार में तय करके ले जाते हैं. ग्रामीण क्षेत्र में अभी 30 से 40 प्रतिशत पुरुष अनाज मंडी में काम करने के लिए दूसरे प्रांत निकल चुके हैं, क्योंकि उन मजदूरों के सामने पत्नी-बच्चों व माता-पिता के परवरिश की चिंता है. इनके लिए बच्चों की पढ़ाई और चिकित्सा की व्यवस्था करना मतदान करने से ज्यादा जरूरी है. इसलिए वे लोकतंत्र के इस महापर्व को छोड़कर रोजगार के लिए निकल रहे हैं.
मतदान जरूरी है, पर बच्चों का पेट भी तो पालना है
सौरबाजार प्रखंड से पंजाब जा रहे अनिल कहते हैं कि मतदान जरूरी है, पर परिवार का पेट भी तो पालना है. यहां काम नहीं है. अभी गेहूं का सीजन चल रहा है, तो वहां अच्छी कमाई हो जाएगी. मतदान प्रतिशत बढ़ाना है, तो सरकार को पलायन की समस्या का हल निकालना चाहिए, नहीं तो लोग काम के लिए बाहर जाएंगे ही. रेलवे स्टेशन जाने के लिए ऑटो पकड़ने आये जोखू चुनाव को लेकर कहते हैं कि परिवार को छोड़कर कौन बाहर जाना चाहता है. सरकार हमलोगों के लिए रोजगार की व्यवस्था करती, तो हमलोग बाहर क्यों जाते. मतदान करने से हमें क्या मिलनेवाला है. कोई सांसद या विधायक बने, हमलोगों की स्थिति नहीं बदलेगी. कल भी मजदूरी करते थे और आज भी कर रहे हैं. बाहर नहीं जाएंगे तो हमारे बच्चों का पेट नेता थोड़ीभरेंगे.
पलायन रोकना होगा, तभी बढ़ेगा मतदान प्रतिशत
खेत में काम कर रहे है मंजुल प्रसाद कहते हैं कि आज तक कोई भी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बिहार में उद्योग लगाने के लिए पहल नहीं किया.बैजनाथपुर का पेपर मिल तक बंद हो गया. मधेपुरा में रेल इंजन कारखाना में स्थानीय लोगों को कोई काम नहीं मिल पा रहा है. मनरेगा योजना का लाभ मजदूरों को नाममात्र का मिल रहा है. हकीकत में यह राशि पंचायत के जनप्रतिनिधियों, पदाधिकारियों और बिचौलिये का काम करनेवाले लोगों की जेब में जा रही है. मजदूरों के खाते में राशि जरूर आती है, लेकिन खाते से निकल कर यह बिचौलियों की जेब में चली जाती है. इसका कारण यह है कि उस काम को करने के लिए मजदूर नहीं लगाये जाते हैं, बल्कि मशीन से काम कराया जाता है. सरकार अगर वाकई मतदान प्रतिशत बढ़ाना चाहती है, तो उसे पलायन रोकना होगा और यह तभी रुकेगा, जब लोगों को यहां रोजगार मिलेगा. इसलिए सरकार को मजदूरों का पलायन रोकने के लिए गंभीरता से पहल करनी चाहिए. इससे मतदान प्रतिशत भी बढ़ेगा.
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