Lok Sabha Elections: पटना. लोकसभा चुनावों में एक ऐसा उम्मीदवार भी मैदान में है जो न नामांकन करता है और न प्रचार, लेकिन पिछले दो चुनावों से उसका जनाधार बढ़ता जा रहा है. जी हां, हम बात कर रहे हैं नोटा की. बिहार में ऐसे मतदाताओं की संख्या अच्छी-खासी होती जा रही है, जिन्हें कोई उम्मीदवार पसंद नहीं आता. बीते चुनावों में पड़े मत से यह स्पष्ट होता है कि नोटा का जनाधार लगातार बढ़ रहा है. बिहार में कुल पड़े मतों का पांच प्रतिशत तक नोटा के पक्ष में गया है. आंकड़ों पर गौर करें तो एक बात और नजर आती है कि जहां उम्मीदवारों की संख्या ज्यादा रही है, वहां नोटा को कम वोट, लेकिन जहां उम्मीदवार कम रहे हैं वहां नोटा को ज्यादा मत मिले हैं. उम्मीदवारों की सूची में ही नोटा का नाम दर्ज है. पिछले दो चुनावों में औसतन एक से डेढ़ प्रतिशत तक मत नोटा को मिले.
2014 में सर्वाधिक नोटा वाले लोकसभा क्षेत्र
समस्तीपुर-3.38 प्रतिशत
महाराजगंज- 2.76 प्रतिशत
दरभंगा-2.54 प्रतिशत
जमुई-2.52 प्रतिशत
सिवान-2.42 प्रतिशत
2014 में सर्वाधिक नोटा वाले लोकसभा क्षेत्र
गोपालगंज-5.03 प्रतिशत
प चंपारण-4.51 प्रतिशत
जमुई-4.16 प्रतिशत
नवादा-3.72 प्रतिशत
समस्तीपुर-3.47 प्रतिशत
2014 से ज्यादा 19 में नोटा को पड़े मत
2014 के लोकसभा चुनाव में समस्तीपुर के सर्वाधिक मतदाताओं को 12 में से एक भी उम्मीदवार पसंद नहीं आए थे. नोटा को 29,211 मत पड़े थे. महाराजगंज, बेगूसराय, खगड़िया, औरंगाबाद, गया, जमुई के मतदाताओं ने भी नोटा के पक्ष में खूब बटन दबाए थे. वहीं कटिहार, नालंदा एवं पाटलिपुत्र के वोटरों का सबसे कम वोट नोटा के पक्ष में गया था. इसके अगले चुनाव 2019 में नोटा के प्रति मतदाताओं का रुझान चौंकानेवाला रहा. गोपालगंज में नोटा के पक्ष में पांच प्रतिशत से ज्यादा मत पड़े थे. ऐसे कई लोकसभा क्षेत्र रहे, जहां नोटा को तीन प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे.
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बिहार में सबसे अधिक प्रतिशत
चुनाव आयोग के लिए भी यह आंकड़ा चिंता का विषय है. बिहार के मतदाताओं में राजनीतिक दलों एवं प्रत्याशियों को मत करने के प्रति उदासीनता बड़ी चुनौती बनती जा रही है. लोकसभा चुनाव 2019 में देश के सभी राज्यों की तुलना में नोटा बटन का प्रयोग सबसे अधिक बिहार के मतदाताओं ने किया था. चुनाव आयोग के आंकड़े इस बात की पुष्टि कर रहे हैं. बिहार की कुल 40 सीटों पर चुनाव में कुल मतों का दो प्रतिशत मत नोटा के पक्ष में पड़े थे. इतना अधिक मतदान किसी राज्य के मतदाताओं ने नोटा के पक्ष में नहीं किया था. ऐसे में आने वाले दिनों में मतदातओं की यह प्रवृत्ति राजनीतिक दलों के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है.