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बिहार में अपनी झोपड़ी को पक्का मकान बनाने जुटा रहा था पैसे, मणिपुर में मारे गए सोनेलाल का संघर्ष भरा जीवन जानिए

मणिपुर में मारे गए बिहार के मजदूर सोनेलाल का जीवन संघर्ष से भरा हुआ था. बाढ़ की तबाही के बाद वह पैसे जुटाने के लिए घर से गया था. जानिए उसकी मां ने क्या कुछ बताया...

मणिपुर में बिहार के दो मजदूरों को उपद्रवियों ने मौत के घाट उतार दिया. बिहार के गोपालगंज जिले के जादोपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत राजवाही गांव के बिन टोली के रहने वाले एक दर्जन मजदूर कमाने के लिए मणिपुर गए थे. काम करके अपने किराये के कमरे पर लौटने के दौरान दो मजदूरों को गोली मार दी गयी. सोनेलाल मुखिया (18 वर्ष) और दशरथ कुमार (17 वर्ष) की मौत हो गयी है. परिजनों में मातम पसरा है. मृतक सोनेलाल मुखिया का जीवन संघर्ष से भरा हुआ था और अपने घर की स्थिति को सुधारने के लिए वो कमाने के लिए गया था. लेकिन अब उसका शव उसके घर लौटेगा.

संघर्षों से भरा हुआ था सोनेलाल का जीवन

गोपालगंज में गंडक नदी के किनारे बसा है बीन टोली गांव जहां के वीरेंद्र मुखिया के 18 वर्षीय बेटे सोनेलाल मुखिया को भी मणिपुर में मौत के घाट उतार दिया गया. सोनेलाल का जीवन किस तरह संघर्षों से भरा हुआ था, यह बताकर उसके परिजन चित्कार पारकर रोने लगते हैं. वह अपने घर की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहा था. गांव में ही वह छोटी-मोटी नौकरी ढूंढ रहा था लेकिन बाढ़ ने जब उसके खेत और मकान को तबाह कर दिया तो अब वो परिवार का खर्च चलाने के लिए दूसरी जगह जाकर पैसे कमाने के लिए मजबूर हो गया था.

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बड़ा भाई ससुराल जाकर बसा तो सोनेलाल के कंधे पर आयी सारी जिम्मेवारी

सोनेलाल का बड़ा भाई मुन्नालाल पहले गांव में ही रहता था लेकिन शादी करके वह हिमाचल प्रदेश चला गया और अपने ससुराल में ही बस गया. घर में बचे चार भाई और बूढे मां-बाप की देखभाल का भार अब सोनेलाल के ही कंधे पर था. जब मुश्किलें बढ़ने लगी तो उसने और उसके पिता ने मणिपुर जाकर मेहनत-मजदूरी करने की ठानी. दिवाली के अगले ही दिन अपने पिता के साथ सोनेलाल मणिपुर चला गया था. वहां 500 रुपए रोज पर दोनों कमाने लगे थे. सोनेलाल ने घरवालों को यह भरोसा दिलाया था कि घर का खर्च और भाइयों की पढ़ाई का इंतजाम वो करता रहेगा. लेकिन वो सपना अब चूर हो गया.

घर बनाने के लिए भेज रहा था पैसा, भाइयों की पढ़ाई का उठाता था खर्च

सोनेलाल की मां लीलावती देवी कहती हैं कि लोग छठ पर घर लौटते हैं लेकिन पेट की भूख ने बेटे को ऐसा मजबूर किया कि वो दिवाली के अगले दिन ही कमाने निकल गया. बेटे ने भरोसा दिलाया था कि छोटे भाइयों की पढ़ाई का वो खर्च भेजता रहेगा.लेकिन अब वो हमेसा के लिए दूर चला गया. अपने बेटे को याद करते हुए लीलावती देवी के आंसू थम नहीं रहे थे. उन्होंने बताया कि तीन दिसंबर को सोनेलाल ने अपने घर के लिए कुछ पैसे भेजे थे और अगले महीने घर बनाने के लिए पैसे इकट्ठा करने की योजना बनायी थी.

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