पटना में आम से पटा बाजार, लीची से भी सज गयी है मंडी, खुदरा बाजार में कीमत है अभी तेज
इस बार मौसम की बेरुखी की वजह से आम के मंजर देर से आये, गर्मी से मंजर सूखकर काले पड़ गये, फिर भी अधिक मुनाफा के चक्कर में कई कारोबारियों ने समय से पहले बाजार में आम व लीची उतार दिये हैं. शहर में कई जगहों पर इन दिनों आम के साथ-साथ लीची की भी बिक्री हो रही है. हालांकि अभी लोगों को इन दोनों ही फलों का असली स्वाद नहीं मिल पा रहा है. इन फलों के खरीदार अभी ‘खास’ लोग ही हैं.
हिमांशु देव @पटना
राजधानी पटना में फलों के राजा आम और लीची ने दस्तक दे दी है. फल मंडी से लेकर, लोकल फलों की दुकान और ठेला- साइकिल पर लादे कई लोग चौक-चौराहों पर बिक्री और खरीदारी करते देखे जा सकते हैं. इनकम टैक्स चौराहा, राजेंद्र नगर, डॉक्टर कॉलोनी कंकड़बाग, कदमकुआं, पाटलिपुत्र गोलंबर, राजा बाजार, न्यू मार्केट, पटना जीपीओ गोलंबर, कंकड़बाग ऑटो स्टैंड, चिरैयाटाड़, पोस्टल पार्क, राजीव नगर, बेली रोड में इसके स्थायी व अस्थायी दुकानें सज गयी हैं. हालांकि, अभी लीची और आम चुनिंदा घरों तक ही पहुंच पा रहा है. क्योंकि, इनकी कीमत अभी काफी ज्यादा है और ये बिना स्वाद के हैं. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इसे समय से पहले तोड़कर बाजार में लाया जा रहा है.
भागलपुर से आ रहा जर्दालु, बंगाल से बंबइया
स्थानीय दुकानदारों का कहना है कि भागलपुर से अभी जर्दालु आम आ रहा है, जिसे 120 रुपये प्रति किलो बेचा जा रहा है. वहीं, बंगाल से बंबइया मंगाया जा रहा है. बाजार में इसकी कीमत 120 रुपये प्रति किलो है. लोकल बंबइया 120 रुपये प्रति किलो, मालदाह 160 से 180 रुपये प्रति किलो, आंध्र प्रदेश का तोतापरी 140 रुपये प्रति किलो व महाराष्ट्र का अल्फांसो 170-180 रुपये प्रति किलो बिक रहा है. जबकि, मुजफ्फरपुर से आ रही लीची को 150-170 रुपये प्रति किलो बेचा जा रहा है.
पके आम को तोड़ने का यह होता है सही समय
पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी (पूसा) के विभागाध्यक्ष प्रो (डॉ) एसके सिंह बताते हैं कि फलों के सेट होने से लेकर तुड़ाई के बीच लगभग 120 से 140 दिन लगते हैं. हालांकि, यह प्रजाति के अनुसार अलग-अलग होते है. वहीं, आम के परिपक्व होने पर फल के कंधे ऊपर उठ जाते हैं और आंशिक रूप से डंठल से जुड़ा रहकर धंसा रहता है. गहरे हरे फल परिपक्वता के समय हल्के पीले रंग में बदलने लगते हैं.
कुछ आम की किस्मों में फल की त्वचा पर एक स्पष्ट सफेद परत बन जाती है. बाग में जब आम के फल पककर गिरने लगते हैं, तब बागवान समझ जाता है कि अब आम की तुड़ाई का वक्त आ गया है. उन्होंने बताया आम पकने के वक्त अधिकतम तापमान 30-35 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम तापमान 20-24 डिग्री सेल्सियस रहना चाहिए.
एफएसएसएआइ ने चेताया : कैल्शियम कार्बाइड से पका आम न खरीदें
अभी हाल ही में फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया ‘एफएसएसएआइ’ ने गाइडलाइन जारी कर सचेत किया है. कैल्शियम कार्बाइड आमतौर पर आम जैसे फलों को पकाने के लिए उपयोग किया जाता है. यह एसिटिलीन गैस छोड़ता है, जिसमें आर्सेनिक और फास्फोरस के हानिकारक अंश होते हैं. इन खतरनाक तत्वों को ‘मसाला’ के नाम से भी जाना जाता है.
इस केमिकल की वजह से लोगों को चक्कर आना, बार-बार प्यास लगना, जलन, कमजोरी, कोई चीज निगलने में कठिनाई, उल्टी और त्वचा के अल्सर जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. इसके अलावा एसिटिलीन गैस भी इतनी ही खतरनाक है. वहीं, कैल्शियम कार्बाइड के उपयोग पर साल 2011 से प्रतिबंध लगा हुआ है. इसके बावजूद व्यापारी इस केमिकल का उपयोग कर आम पका रहे हैं.
व्यवसायी को नजर आ रहा सिर्फ आमदनी
एक्सपर्ट का मानना है कि समय से पहले बाजार में उतरे आम एक तो खाने में कम मीठे हैं दूसरा ये स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हैं. फिर भी, आम व्यवसायी वर्ग को सिर्फ अपनी आमदनी नजर आ रही है. लोगों की सेहत से उनका कोई लेना देना नहीं है. केमिकल से पके व पेड़ों में पके आम में काफी अंतर नजर आती है.
केमिकल के प्रयोग पर आम में या तो पीले भाग में धब्बे पड़ जाते हैं या एक रंग का नहीं दिखता. बाजार से खरीदकर घर लाने पर भी जल्दी खराब हो जाते हैं. इसका सेवन करने से पेट में दर्द, गेस्ट्राइटिस, एलर्जी, पेट में अल्सर तथा कैंसर तक हो सकता है. वहीं, पेड़ में पके अमूमन आम एक रंग की होती है और यह स्वादिष्ट भी होता है.
मौसम के कारण लीची का भी घट गया उत्पादन
बिहार लीची उत्पादक संघ के सचिव केसरी नंदन ने बताया कि मौसम का सहयोग नहीं मिलने के कारण फल अभी परिपक्व नहीं हो पाये हैं. इससे फलों में उचित रंग, गूदा, टीएसएस और अम्लता नहीं है. हालांकि, गुरुवार व तीन से चार दिन पहले बारिश होने से फल विकसित हो रहा है. 26 से 27 मई के बाद तुुड़ाई होने पर स्वाद अच्छा मिल सकता है.
लेकिन, कुछ व्यापारी जल्द बाजी कर रहे हैं. जबकि, अभी लीची तोड़ने के लिए तैयार नहीं है. उन्होंने बताया कि हर साल बिहार में करीब तीन लाख टन लीची का उत्पादन होता है. इसमें अकेले मुजफ्फरपुर में 65 प्रतिशत. लेकिन, इस बार करीब 2 से 2.25 लाख टन लीची होने का अनुमान है. इस बार बागान से 60 से 70 रुपये के बीच बेचा जायेगा.
मुजफ्फरपुर से पटना आते ही कीमत हो रहा तिगुना
मुजफ्फरपुर से वैशाली की ओर जाने के क्रम में लीची के कई बागान हैं. इसमें कुछ के बागवान अभी ही शाही व चाइना लीची के नाम पर व्यापारियों को बेच रहे हैं. जबकि, लीची का स्वाद भी वास्तविक नहीं है. बुधवार को बागान में तोड़ रही महिलाएं बताती हैं कि फल विकसित नहीं हुआ है और बाजार में लीची कम है. जिसके कारण जल्दी बेच रहे हैं. उन्होंने कहा कि थोक में अभी चाइना 45 से 55 व शाही लीची 50 से 60 रुपये के बीच बिक रही है. जबकि, यही लीची शहर आकर तिगुने कीमत में बिक रही है. पटना के लगभग सभी इलाकों में 150 से 180 रुपये प्रति किलो लीची बिक रही है.
जून के दूसरे सप्ताह से आयेगा दूधिया मालदह
दीघा का दुधिया मालदह आम देश-विदेश में प्रसिद्ध था. इसकी खासियत है कि इसके छिलके के ऊपर चूना की तरह दूधिया रंगा होता है. फल पकने की अवस्था में पीलापन लिए हुए हरे रंग का होता है. कई खासियत के कारण दूधिया मालदह की गुठली पतली, छिलका और बिना रेशा वाला गुदा होता है, जो खाने में काफी स्वादिष्ट होता है. एक आम का वजन लगभग 250 ग्राम का होता है. जून के दूसरे सप्ताह से दीघा मालदह बाजार में उपलब्ध हो जाता है.
ऐसे करें प्राकृतिक आम की पहचान
आप जो आम खा रहे हैं, वह प्राकृतिक है या केमिकल से पकाया गया है, इसकी पहचान काफी आसानी से की जा सकती है. सारे आमों को एक बाल्टी पानी में डाल दें. अगर आम पानी में डूब जाते हैं, तो वे स्वाभाविक रूप से पके हुए होते हैं. अगर वे तैरते हैं, तो इसका मायने साफ है कि इन्हें केमिकल से पकाया गया है.
सीजन से पहले बिक रहे आम है नुकसानदेह
सीजन से पहले बिक रहे आम सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है. पटना या किसी अन्य शहरों में बिक रहे आम में केमिकल का प्रयोग किया गया है. कम समय में आम पकाने के लिए दोगुना-तिगुना केमिकल का प्रयोग व्यवसायी करते हैं. ऐसे में जो भी लोग आम के शौकीन हैं उन्हें 15 से 20 दिन का इंतजार करना होगा. आम लगभग परिपक्व हो गया है. जून के दूसरे सप्ताह तक प्राकृतिक पके आम बाजार में आ जायेंगे. वह सेहत के लिए लाभकारी भी होगा. क्योंकि, पके आम में प्रचुर मात्रा में विटामिन व मिनरल होता है. – डॉ रीता सिंह, वरीय वैज्ञानिक, बाढ़ कृषि विज्ञान केंद्र