Migratory Birds: पटना के दानापुर कैंट एरिया में पिछले 25 दिनों से ‘जांघिल’ का आना शुरू हो गया है. आमतौर पर साइबेरियन क्रेन को मानसून का सूचक माना जाता है. इनके आने से एक बार फिर दानापुर गुलजार हो गया है. इन खूबसूरत पक्षियों की चहचहाट से पूरा इलाका गूंज रहा है. मुख्य रूप से ये प्रवासी पक्षी हैं, जो माइग्रेट होकर यहीं अपना बसेरा डाल लिया है. छावनी परिसर के वृक्षों पर जांघिल घोंसले बनाने में जुट गये हैं. हर साल जून-जुलाई के अंत में प्रवासी पक्षी ‘साइबेरियन क्रेन’, ‘जांघिल’ छावनी क्षेत्र में पहुंचते हैं.
सफेद और काले रंग के ये प्रवासी पक्षी देखने में काफी खूबसूरत होते हैं. इनका वजन दो से तीन किलो तक होता है और इनका भोजन छोटी-छोटी मछलियां और पानी में रहने वाले कीड़े-मकोड़े होते हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि इन्हें यहां अपनी सुरक्षा का अहसास होता है. बगल में बहती गंगा नदी की धारा से यह अपना भोजन- पानी आसानी से जुटा लेते हैं. यहां महीनों रहकर प्रजनन करते हैं और अपने बच्चों का पालन-पोषण करने के बाद यहां से वापस साइबेरिया के लिए उड़ जाते हैं.
आर्मी का प्रतीक चिह्न भी रहा है ओपन बिल स्टोर्क
यहां पक्षियों का आना मानसून के आगमन का संकेत होता है और इससे स्थानीय लोगों में काफी खुशी व उत्साह का माहौल रहता है. दानापुर में साइबेरियन क्रेन व जांघिल के आगमन से यह क्षेत्र पक्षी विहार बन गया है. इन पक्षियों का आना प्राकृतिक सौंदर्य को बढ़ाता है और स्थानीय पारिस्थितिकी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
पक्षी विशेषज्ञों के मुताबिक जांघिल के यहां आने का इतिहास काफी पुराना है, लेकिन इसका कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं है. मानसून के दौरान हर साल ये पक्षी यहां आते हैं और प्रवास के दौरान अंडे देते हैं. ये प्राय: समूह में भोजन की तलाश में उड़ते हैं और इन्हें ओपन बिल स्टॉर्क के नाम से भी जाना जाता है. दानापुर कैंट एरिया के वृक्षों पर वे खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं. बता दें कि साइबेरियन क्रेन 1963 से 1971 तक आर्मी का प्रतीक चिह्न भी रहा है.
सेना के जवानों की तरह अनुशासित रहते हैं पक्षी
माना जाता है कि जांघिल मॉनसून में प्रत्येक वर्ष ये पक्षी यहां दिखते हैं. प्रवास के दौरान यहां अंडे देते है और बच्चे का लालन -पालन के साथ ही उड़ने के लिए दिये जाने वाले प्रशिक्षण का गवाह भी दानापुर ही बनता है. यहां ये संवेदनशील के साथ-साथ काफी अनुशासित भी रहते हैं.
इस पक्षी को देखकर ऐसा मालूम होता है कि इस पर सफेद, गुलाबी व काले रंग का पेंट किया हो. बड़े साइज के इस पक्षी की मुड़ावदार चोंच गुलाबी रंग की होती है. घराना वेटलैंड के बीच बैठा यह पक्षी अपने बेहतरीन रंग से सबका ध्यान अपनी ओर खींचता है. देश के अन्य वेटलैंड पर बड़ी संख्या में जांघिल पक्षियों का जमघट लगता है, लेकिन पटना व दानापुर में इनकी उपस्थित बड़ी बात है.
हमेशा समूह में ही उड़ान भरते हैं ये पक्षियां
पक्षी विशेषज्ञों का मानना है कि एशियन ओपन बिल स्टार्क प्राय: समूह में भोजन के लिए उड़ान भरते हैं. उस समय इनकी छटा देखते ही बनती है. अपने हाव भाव और आकर्षण से ये हर किसी के बीच चर्चा में रहते हैं. सैन्य अधिकारियों का कहना है कि आजकल इन्हें अपनों बच्चों के लिए नया घोंसला बनाते हुए आप देखा जा सकता है. यह पक्षी 40 वर्षों से भारत के अन्य राज्यों में ब्रीडिंग करने आते हैं. भारत में इस पक्षी को संरक्षित घोषित किया है.
साइबेरिया पक्षी का शिकार करना या पकड़कर रखना गैरकानूनी है. यह पक्षी मूल रूप से साइबेरिया का रहने वाला है. लेकिन, अब यह इसी देश का होकर रह गया है. साइबेरियन पक्षी छह माह उत्तर भारत में और छह माह दक्षिण भारत में रहता है. यह पक्षी साल में दो बार प्रजनन करते हैं और दो से चार अंडे तक देते हैं. इसका मुख्य भोजन घोंघा, मछली और केंचुआ है. साल 2005 के बाद से इसकी संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है.
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ठंड में 30 विभिन्न प्रजाति के पक्षी आते हैं पटना
बता दें कि बरसात के साथ-साथ ठंड के मौसम में भी कई विदेशी व प्रवासी पक्षी कुछ महीनों के लिए पटना में मेहमान बनकर रहते हैं. जिनकी चहचहाहट से सचिवालय का पूरा परिसर गुलजार हो जाता है. इस जलाशय में कई अलग-अलग प्रजातियां के पक्षी अभी तक पहुंच चुके हैं. इन पक्षियों की आवाज सुनकर आस पास के लोग बाग भी आकर्षित हो जाते हैं.
ठंड आते ही इन विदेशी पक्षियों का आना शुरू हो जाता है. प्रवासी पक्षी मूलतः उत्तरी अमेरिका, सेंट्रल यूरेसिया, उत्तरी अफ्रीका, दक्षिण-पूर्वी एशिया से आते हैं. वर्तमान में गाडवाल राजधानी जलाशय में 50 की संख्या में हैं. यह देखने में मटमैले रंग के होते हैं. इनका सिर हल्का भूरे रंग का होता है. वहीं, इनका वजन लगभग एक से डेढ़ किलो होता है. ये पक्षी जोड़े में रहना पसंद करते हैं और शैवाल इसका प्रिय आहार होता है.