मनरेगा: राष्ट्रीय औसत से दलितों को अधिक, महिलाओं को कम मिले काम
मनरेगा से काम देेने (एवरेज डे ऑफ इम्प्लॉयमेंट) में बिहार राष्ट्रीय औसत से आगे निकल गया है. राज्य में औसत एक परिवार को मनरेगा से 34 दिनों के काम मिले हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 32 दिनों का है.
– एवरेज डे ऑफ इम्प्लॉयमेंट में भी राष्ट्रीय औसत से दो फीसदी आगे – महिलाओं को काम देने में दो फीसदी से बिहार पिछड़ा मनोज कुमार, पटना मनरेगा से काम देेने (एवरेज डे ऑफ इम्प्लॉयमेंट) में बिहार राष्ट्रीय औसत से आगे निकल गया है. राज्य में औसत एक परिवार को मनरेगा से 34 दिनों के काम मिले हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 32 दिनों का है. महिलाओं को मनरेगा से काम देने में बिहार थोड़ा पिछड़ा है. मनरेगा से महिलाओं को काम देने का राष्ट्रीय औसत बिहार में 54 है, जबकि राष्ट्रीय औसत 56 फीसदी है. इस श्रेणी में बिहार दो फीसदी से पीछे है. अनुसूचित जाति (एससी) को मनरेगा से काम देने में बिहार देश में अव्वल है. इसमें राष्ट्रीय औसत 18.75 है, जबकि बिहार में 20.02 फीसदी दलित मनरेगा में काम कर रहे हैं. 3568 परिवारों को मिला सौ दिन काम एक अप्रैल से लेकर अब तक 3568 परिवारों को सौ दिन काम मनरेगा से मिले हैं. एक परिवार को सौ दिनों तक काम देने का राष्ट्रीय औसत एक फीसदी है. बिहार में इसकी स्थिति और भी खराब है. राज्य में 0.1 फीसदी परिवार को ही सौ दिनों तक काम मिलता है. वित्तीय वर्ष 2023-24 में 0.69 फीसदी लोगों को को ही सौ दिनों तक काम मिला. वर्ष 2022-23 में 39 हजार 678, वर्ष 2021-22 में 21975 परिवारों ने ही सौ दिनों तक काम किया. 25 करोड़ मानव दिवस सृजन का लक्ष्य इस साल 25 करोड़ मानव दिवस सृजन का लक्ष्य रखा गया है. इसके साथ ही प्रोजेक्टेड पर्सन डेज 11.25 करोड़ मानव दिवस सृजन का लक्ष्य है. इसमें 11 करोड़ मानव दिवस सृजन कर लिया गया है. मिट्टी के अलावा स्कूलों की बाउंड्री, खेल मैदानों, नहर व पइन समेत वाटर चैनलों के निर्माण से मानव दिवस का सृजन होगा. अकेले खेल मैदानों के निर्माण 5 लाख से अधिक मानव दिवस का सृजन होगा.
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