MNREGA: बिहार में सफेद हाथी बना मनरेगा, तीन वर्षों में एक प्रतिशत को भी नहीं मिला 100 दिन काम

MNREGA: बिहार सरकार ने केंद्र के सामने मनरेगा मजदूरों के लिए काम का दायरा बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है. बिहार में मौजूदा व्यवस्था में मनरेगा के तहत गांव के मजदूरों को गांव में ही नहर खोदने, खेतों की मेड़बंदी करने जैसे विकास कार्यों में काम पर लगाया जाता है. इन कामों की पूर्ति के बाद मजदूरों के सामने काम के अभाव का संकट पैदा होता है.

By Ashish Jha | July 14, 2024 2:50 PM

MNREGA: पटना. बिहार में मनरेगा (महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना) पूरी तरफ सफेद हाथी बन चुका है. सरकार दावे तो तमाम कर रही है, लेकिन सच्चाई की कसौटी पर व्यवस्था फिसड्डी है. पिछले तीन वर्षों में एक प्रतिशत परिवारों को भी सौ दिनों तक काम नहीं मिला है. सरकार के आंकड़े इस बात की पुष्टि कर रहे हैं. सरकार के पास मनरेगा मजदूरों के लिए न पैसा है ना काम है. ऐसे में रोजगार की गारंटी उनके लिए एक जुमला ही साबित हो रही है. आंकउ़ों को देखें तो वित्तीय वर्ष 2023- 24 में 0.69 प्रतिशत परिवारों ने ही सौ दिनों तक काम किया. इनमें कुल 47 लाख 46 हजार 59 में 32578 ने ही सौ दिनों तक काम किया. वहीं, 2022-23 में 50 लाख 14 हजार 363 में 39 हजार 678 को ही सौ दिनों तक काम मिला. यह कुल संख्या का 0.79 प्रतिशत है. इसी प्रकार वर्ष 2021-22 में 47 लाख 75 हजार 783 में 21975 को सौ दिनों का काम मिला. यह कुल संख्या का 0.46 प्रतिशत है.

389 को ही मिली सौ दिनों तक की मजदूरी

बिहार में अभी तक 389 को ही सौ दिनों तक काम मिला है. जबकि इस वर्ष 1 करोड़ 36 लाख 72 हजार 933 परिवार मनरेगा में पंजीकृत हैं. इन परिवारों की कुल सदस्य संख्या 1 करोड़ 62 लाख 14 हजार 595 है. बक्सर, गोपालगंज, जमुई, खगड़िया, शेखपुरा एवं सुपौल जिले में एक भी व्यक्ति को सौ दिन तक काम नहीं मिला. वहीं, अरवल, सारण, सहरसा, एवं कटिहार में मात्र एक-एक मजदूर को ही सौ दिनों का काम पूर्ण करने का मौका मिला, जबकि दरंभगा एवं नवादा में दो तथा बांका, गया, कैमूर एवं पश्चिमी चंपारण में तीन-तीन मजदूरों ने ही सौ दिनों तक काम पूर्ण किया.

जहानाबाद टॉप पर, शिवहर फिसड्डी

बिहार के 38 जिलों में सबसे अधिक 112 को जहानाबाद जिले में सौ दिनों तक काम मिला. इसके बाद नालंदा में 49 एवं औरंगाबाद में 29 श्रमिकों ने सौ दिनों तक कार्य पूर्ण किया. अररिया में 15, बेगूसराय में 17, मुजफ्फरपुर में 32, सीतामढ़ी में 15, समस्तीपुर में 12 एवं पूर्णिया में मात्र 11 ही सौ दिन काम पाने में सफल हुए. बिहार के 11 ऐसे जिले हैं, जहां के श्रमिक दो अंकों में सौ दिनों तक रोजगार का सपना संजोए रह गए. पटना में आठ, सिवान में सात, मुंगेर में छह और इसमें भोजपुर एवं पूर्वी चंपारण में पांच-पांच, किशनगंज व लखीसराय में छह-छह को सौ दिनों का काम मिला. मधुबनी एवं मधेपुरा में सात-सात, शिवहर व वैशाली में चार-चार श्रमिक सौ दिनों तक काम पाने में सफल रहे.

मजदूरों को मजदूरी भत्ता देगी सरकार

तीन वर्षों की इस सच्चाई से अवगत होने के बाद अब सरकार ने मंत्रिमंडल के माध्यम से प्रविधान में संशोधन किया. अब मनरेगा में मांगने पर काम नहीं मिला तो बेरोजगारी भत्ता सरकार देगी. इसके लिए बिहार बेरोजगारी भत्ता नियमावली-2024 स्वीकृत की गई है. इस नियमावली के प्रविधान के अनुसार मनरेगा के तहत काम मांगने पर 15 से 30 दिनों के अंदर काम देना होगा. काम नहीं मिलने पर संबंधित व्यक्ति को सरकार अगले सौ दिनों के लिए भत्ता देगी. भत्ता के रूप में श्रमिक को पहले महीने में निर्धारित मजदूरी का एक चौथाई और इसके अगले महीने से मजदूरी का आधा हिस्सा दिया जाएगा. इसके अलावा भी कई अन्य प्रविधान किए गए हैं.

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दायरा बढ़ाने का प्रस्ताव

बिहार सरकार ने केंद्र के सामने मनरेगा मजदूरों के लिए काम का दायरा बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है. बिहार में मौजूदा व्यवस्था में मनरेगा के तहत गांव के मजदूरों को गांव में ही नहर खोदने, खेतों की मेड़बंदी करने जैसे विकास कार्यों में काम पर लगाया जाता है. इन कामों की पूर्ति के बाद मजदूरों के सामने काम के अभाव का संकट पैदा होता है. मजदूरों को इस संकट से उबारने के लिए बिहार में ग्रामीण कार्य विभाग ने गांवों में भी शहरों की तर्ज पर सरकारी भवन, इंदिरा आवास, पार्क, ओपन जिम और खेल के मैदानों का भी निर्माण मनरेगा के तहत कराने का प्रस्ताव दिया है. इस काम को मनरेगा के दायरे में लाने के बाद गांवों में लक्ष्य से अधिक काम पैदा होगा.

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