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22 साल में सिर्फ आठ बार समय पर माॅनसून पहुंचा बिहार

इस हफ्ते माॅनसून बिहार में प्रवेश नहीं करता है, तो यह खेती- बारी और जनजीवन के लिहाज से खतरे की घंटी मानी जायेगी.

राजदेव पांडेय, पटना

इस हफ्ते माॅनसून बिहार में प्रवेश नहीं करता है, तो यह खेती- बारी और जनजीवन के लिहाज से खतरे की घंटी मानी जायेगी. वह इसलिए कि न केवल हमारी खेती में देरी होगी, बल्कि राज्य में लू का संकट और गहरायेगा. बिहार की बनी हुई मौसमी दशाओं को लेकर मौसम विज्ञान विभाग परिस्थितियों का आकलन कर रहा है. बिहार में माॅनसून प्रवेश की सामान्य समयावधि 13 जून तक है. पिछले दो दशकों से अधिक (वर्ष 2002 से 2023 तक) समय के दरम्यान राज्य में माॅनसून निर्धारित समयावधि पर या इससे पहले केवल आठ बार समय पर आया है. मौसम विशेषज्ञ इसे जलवायु परिवर्तन से जोड़ कर देख रहे हैं.

जानकारी के मुताबिक वर्ष 2002(11 जून), 2006 (6 जून),2007(10 जून), 2008(9 जून), 2020(13 जून), 2021 (13 जून), 2022(13 जून) और 2023(11 जून) में ही बिहार में माॅनसून निर्धारित समयावधि पर आया है. शेष साल में उसकी इंट्री में लेट हुआ है.

राज्य मे अभी तक सबसे देरी से वर्ष 2009 में 29 जून को माॅनसून आया था. फिलहाल माॅनसून के बिहार में प्रवेश करने की नॉर्मल समयावधि 10 से 13 जून निर्धारित है. इस लिहाज से बिहार में माॅनसून दो-चार दिन लेट हो सकता है. हालांकि, इसे बहुत अधिक देरी नहीं माना जायेगा. इधर, आइएमडी (इंडिया मेटिरोलॉजिकल डिपार्टमेंट) का एक मॉडल बता रहा है कि 15-17 जून को विंड पैटर्न में बदलाव हो सकता है. पछुआ कमजोर पड़ेगी. पुरवैया को ताकत मिलेगी. इसकी वजह से बिहार में माॅनसून की इंट्री संभव है.

परिस्थितियां अनुकूल फिर भी झमाझम में विलंब

जलवायु परिवर्तन का इसे दंश ही कहा जायेगा कि माॅनसून आगमन के लिए जरूरी समझी जाने वाली लगभग सभी मौसमी दशा मौजूद होने के बाद भी बिहार में झमाझम बारिश नहीं हो पा रही है. उदाहरण के लिए गंगा के दक्षिणी हिस्से ( दक्षिण बिहार) में उच्चतम तापमान टाॅप पर है. नमीयुक्त पुरवैया भी है. माॅनसून राज्य के एक छोर पर 10 दिन से डेरा भी डाले है. इन सब के बाद भी इस बार बादल नहीं बन पा रहे. आंधी-पानी (थंडर स्टोर्म) भी नहीं बन पा रहा. यह दशा अभूतपूर्व है. आइएमडी इस मौसमी दशा को लेकर चिंतित है. प्रारंभिक आकलन में बात सामने आयी है कि पुरवैया हवा की गति छह से आठ किलोमीटर प्रति घंटे की है. पुरवैया को चुनौती दे रही पछुआ उससे कहीं ज्यादा 20-30 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से चल रही है. हालांकि, इसके अलावा राज्य की लगातार घटती हरियाली भी बादलों को आकर्षित नहीं कर पा रही है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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