शराब का स्टॉक रखने के आरोप में 8200 से अधिक परिसर हुए सील

बिहार में वर्ष 2016 में हुई शराबबंदी के बाद शराब भंडारण के मामलों में अब तक 8200 से अधिक परिसरों को सील किया गया है.

By Prabhat Khabar News Desk | November 19, 2024 1:07 AM
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संवाददाता, पटना बिहार में वर्ष 2016 में हुई शराबबंदी के बाद शराब भंडारण के मामलों में अब तक 8200 से अधिक परिसरों को सील किया गया है. इन परिसरों में खाली जमीन, मकान से लेकर किसी भवन का खास हिस्सा तक शामिल है. 2022 में राज्य सरकार ने जब्ती कानून में थोड़ी राहत देते हुए जुर्माना देकर परिसरों को छोड़ने का नियम बनाया, लेकिन नियम बनने के लगभग पौने तीन साल बाद भी मात्र 510 परिसरों को ही जुर्माना लेकर छोड़ा जा सका है. नोटिस के बावजूद जुर्माना नहीं देने वाले 15 परिसर नीलाम कर दिये गये. हालांकि, 7700 से अधिक परिसर अब भी स्थानीय जिला प्रशासन के कब्जे में हैं. तकनीकी कारणों व न्यायालय आदेशों की वजह से बड़ी संख्या में सील परिसरों को मुक्त किये जाने पर फैसला नहीं हो सका है. डीएम को मिला है जुर्माना लेकर छोड़ने का अधिकार मद्यनिषेध संशोधित अधिनियम के तहत शराब के मामले में सील परिसरों को छोड़ने के संबंध में जिलाधिकारियों को अधिकार मिले हैं. कानून के मुताबिक जिले में डीएम जब्त किसी परिसर के स्वामी से प्रपत्र पांच में आवेदन प्राप्त कर परिसर या उसके किसी भाग का जुर्माना लेकर छोड़ या सील मुक्त कर सकेंगे. जुर्माने की राशि किसी भी दशा में एक लाख रुपये से कम नहीं होगी. जब्ती या सीलबंदी के दो हफ्ते के अंदर जुर्माना राशि जमा नहीं होने पर नियमानुसार वाहन-परिसर के अधिहरण और नीलामी की कार्रवाई की जायेगी. इसके लिए समय-सीमा निर्धारित की गयी है शराबबंदी के मामलों में अब तक करीब 1.27 लाख से अधिक दोपहिया से लेकर चार पहिया व बड़े वाहनों को जब्त किया गया है. इनमें से करीब 72 हजार वाहनों की नीलामी कर दी गयी है. 14 हजार 250 वाहनों को जुर्माना लेकर छोड़ा गया है. संशोधित कानून के तहत शराब के साथ पकड़े गये वाहन के मामले में बीमा कंपनी द्वारा निर्धारित वाहन के मूल्य का 50 प्रतिशत जुर्माना लेकर वाहन छोड़े जाने का प्रावधान किया गया है. बीमाकृत मूल्य उपलब्ध नहीं होने पर डीटीओ से उसका मूल्य निर्धारित कराया जायेगा. वाहन का दावेदार नहीं होने पर जब्ती तिथि से 15 दिनों तक इंतजार करने के बाद उसके अधिहरण व नीलामी की कार्रवाई की जानी है.

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