मुकेश पाठक: बिहार का वह गैंगस्टर जिसने अपने ही गुरु की हत्या कर बना डॉन
मुकेश पाठक वर्ष 2003 में अपने चचेरे भाई प्रेमनाथ पाठक की हत्या कर अपराधी की दुनिया में कदम रखा था. कहा जाता है कि मुकेश ने प्रेम नाथ पाठक की हत्या पारिवारिक रंजिश में की थी.
मुकेश पाठक को कोर्ट ने दरभंगा मर्डर केस से बरी कर दिया है. मुकेश पाठक पर संतोष झा समेत कई कुख्यात अपराधियों और व्यवसायियों की हत्या के आरोप है. जेल में रहते पिता बनने का भी मुकेश पाठक पर आरोप है. मुकेश पाठक के बरी होने के बाद पुलिस के अनुसंधान पर सवाल खड़े होने लगे हैं. दरभंगा में इस बात की चर्चा हो रही है कि मुकेश पाठक और संतोष झा ने नहीं तो दरभंगा में दो इंजीनियरों की हत्या किसने की थी. पुलिस इसपर अभी कुछ भी बोलने से इंकार कर रही है.
चचेरे भाई की हत्या कर रखा था अपराध की दुनिया में कदम
गैंगस्टर मुकेश पाठक वर्ष 2003 में अपने चचेरे भाई प्रेमनाथ पाठक की हत्या कर अपराधी की दुनिया में कदम रखा था. कहा जाता है कि मुकेश ने प्रेम नाथ पाठक की हत्या पारिवारिक रंजिश में की थी. पुलिस ने मुकेश को इस मामले में वर्ष 2004 में सीतामढ़ी में गिरफ्तार कर लिया था. हत्या के आरोप में जेल में ही उसकी मुलाकात संतोष झा और उसके गिरोह के सदस्यों से हुई. संतोष झा ने मुकेश को जेल से बाहर आने पर अपने गिरोह में शामिल कर लिया. संतोष झा तब बिहार के कुख्यात अपराधियों में से एक था.
नक्सल कमांडर से मतभेद के बनाया था अपना गैंग
संतोष झा और नक्सल कमांडर गौरी शंकर पहले एक साथ काम किया करते थे. लेकिन दोनों में कुछ मतभेद हुआ. इसपर संतोष ने गौरी शंकर का साथ छोड़ दिया और फिर अपना गैंग बना लिया. मुकेश भी संतोष के साथ ही उसके गैंग में शामिल हो गया. संतोष झा ने संभवत: पहली बार सैलरी पर अपने लिए लड़कों को अपराध का घटनाओं को अंजाम देने के लिए रखा था.
कहा जाता है कि संतोष ने अपने लड़कों को 10 हजार रुपया और मोटरसाइकिल में तेल का खर्च दिया करता था. संतोष का यह प्रयोग कारगर हो गया. प्रदेश में अपराध की घटनायें बढ़ने लगी. इधर, संतोष और मुकेश की जोड़ी अपराध की दुनिया में एक बड़ा नाम बनते गए. इनके प्रयोग से पुलिस की नींद उड़ गई. जमानत पर चल रहे मुकेश को पुलिस ने पकड़ कर फिर से जेल में भेज दिया.
जेल से निकलते ही मुखिया पति को मारी थी गोली
पुलिस बढ़ते अपराध पर अंकुश लगाने के लिए मुकेश पाठक को जेल भेज दिया. जेल से निकलने पर मुकेश अपने गांव पहुंचा और संतोष झा की मदद से अपने गांव के मुखिया के पति चुन्नू ठाकुर की दिनदहाड़े हत्या कर दी. इस घटना के बाद गांव में तनाव उत्पन्न हो गया. आक्रोशित लोगों ने मुकेश के घर में आग लगा दी. कई दिनों तक पुलिस को मुकेश पाठक के घर में कैंप करना पड़ा था.
इधर, घटना को अंजाम देने के बाद मुकेश फिर से फरार हो गया और संतोष झा के साथ मिलकर मुकेश पाठक फिर से अपराध करने लगा. दोनों की जुगलबंदी ने प्रदेश में हत्या, रंगदारी और अपहरण की हर दिन घटना को अंजाम देकर पुलिस की नींद उड़ा दी थी. अन्तत: पुलिस ने 17 जनवरी वर्ष 2012 को दोनों को रांची से गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद मुकेश पाठक को शिवहर जेल भेज दिया गया.
नंबर 2 से बना नंबर एक दुश्मन
संतोष झा के गैंग में मुकेश का दूसरे नंबर पर स्थान था. कुछ दिनों तक दोनों मे सब कुछ ठीक चलता रहा. लेकिन, पैसा को लेकर दोनों के बीच विवाद हो गया. अभी तक रंगदारी से जो भी रकम मिला करता था उससे बिहार और नेपाल में रिश्तेदारों के नाम जमीनें और मकान खरीदे जा रहे थे.
पैसा में हिस्सेदारी को लेकर मुकेश और संतोष में अनबन शुरु हो गई. इसी बीच मुकेश पाठक को जेल में आने के बाद पता चला कि गैंग के किसी भी सदस्य को बताए बगैर संतोष ने कंस्ट्रक्शन कंपनी से 35 करोड़ रुपए ले लिए थे. दगाबाजी के इस मुद्दे पर मुकेश का अपने गुरु संतोष से विवाद हुआ. इसके बाद मुकेश ने अपने गुरु को रास्ते से हटाने की साजिशे रच दी.
गुरु की हत्या का आरोप
इसके बाद मुकेश पाठक ने 28 अगस्त 2018 को संतोष झा की हत्या तब करवा दी जब वह सीतामढ़ी कोर्ट में पेशी के लिए लाया गया था. इस दिन संतोष के साथ उसका सबसे भरोसेमंद शूटर विकास झा उर्फ कलिया भी पेशी पर लाया गया था. मुकेश के लोगों ने सतोष को गोलियों से भून दिया था. मुकेश पाठक के लोगों ने संतोष झा की हत्या की बजापता फोन कर जिम्मेवारी ली थी.
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