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Premchand Jayanti: प्रेमचंद की रचनाएं सोच बदलने के लिए करती हैं प्रेरित, प्रभात खबर संवाद में युवाओं ने व्यक्त किए विचार

साहित्य और कला जगत में मुंशी प्रेमचंद आज भी जीवित हैं. वे जनमानस के सबसे प्रिय रचनाकारों में से एक हैं. जब भी सामाजिक चेतना व ज्वलंत मुद्दों को साझा करने की बात होती है, प्रेमचंद याद किये जाते हैं. बच्चों से लेकर उच्च शिक्षा की पढ़ाई से जुड़े युवाओं को उनकी कहानियां प्रेरित करती हैं. उनकी रचना न केवल समाज को आईना दिखाने का काम करती है, बल्कि आस-पास घटित हो रहे माहौल से भी जोड़ती है. इतना ही नहीं उनकी रचनाओं व कहानियों के किरदार भी हमें उस हकीकत के सामने लाकर खड़ा कर देते हैं, जो हमारे दैनिक जीवन से होकर गुजरती है. ये बातें मंगलवार को प्रभात खबर की ओर से मुंशी प्रेमचंद की 144वीं जयंती की पूर्व संध्या पर आयोजित संवाद में वक्ताओं ने कहीं.

Premchand Jayanti: आधुनिक भारत के शीर्षस्थ साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की रचना दृष्टि साहित्य के विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त हुई है. उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख संस्मरण आदि अनेक विधाओं में उन्होंने साहित्य सृजन किया. अपने जीवनकाल में ही उन्हें उपन्यास सम्राट की उपाधि मिल गयी थी, लेकिन पाठकों के बीच आज भी उनका कहानीकार का रूप स्वीकारा और सराहा जाता है. उनकी जीवन जितनी गहनता लिए हुए है, साहित्य के फलक पर उतना ही व्यापक है.

मुंशी प्रेमचंद ने लिखी हैं 300 से अधिक कहानियां

मुंशी प्रेमचंद ने कुल 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियां, तीन नाटक, 10 अनुवाद, सात बाल पुस्तकें और हजारों की संख्या में लेख आदि की रचना की. प्रेमचंद हिंदी के पहले साहित्यकार थे, उन्होंने पश्चिमी पूंजीवाद और औद्योगिक सभ्यता के संकट को पहचाना और देश की मूल कृषि संस्कृति और भारतीय जीवन दृष्टि की रक्षा की.

प्रेमचंद की कहानियों में निहित है सभी वर्गों की सहभागिता

मुंशी प्रेमचंद ने अपने कहानियों का मानस विस्तार कर सर्वाधिक प्रभावित किया. उसमें जाति, धर्म, संप्रदाय या किसी भेदभाव के बिना भारतीय समाज की बहुलता के मद्देनजर सभी वर्गों की सहभागिता निहित है. हिंदू-मुस्लिम सह अस्तित्व की जरूरी चिंताएं भी उनके लेखन से अछूती नहीं हैं. भले ही प्रेमचंद के किरदार एक सौ से अधिक वर्ष पहले गढ़े गये हों, लेकिन इस दौरान ये बिल्कुल भी फीके और कमजोर नहीं पड़े हैं, बल्कि और भी सशक्त होकर उभरते हैं. उनकी लेखनी में तो आकर्षक तत्व हैं ही, लेकिन उन रचनाओं के किरदार भी हमें उस हकीकत के सामने लाकर खड़ा कर देते हैं, जो हूबहू उनकी कहानियों की तरह हमारे भी दैनिक जीवन से होकर गुजरती हैं.

‘संवाद’ में युवाओं ने कहा- ‘प्रेमचंद की कृतियां सोच बदलने के लिए करती हैं प्रेरित’

हिंदी साहित्य में अगर पहले कोई परिचय होता है, तो वह मुंशी प्रेमचंद से होता है. इनकी कृतियां हमें कई पहलुओं पर सोचने और विचार करने के लिए मजबूर करती हैं. कलाकार होने के नाते प्रेमचंद की कई कृतियों पर नाटक की प्रस्तुति दी है, जो आज के समय में भी प्रासंगिक है. उन्होंने जिस तरह से सामाजिक मुद्दों और महिलाओं की स्थिति पर उस वक्त लिखा था वह स्थिति आज भी वैसी की वैसी है. उनकी लेखनी समाज की सच्चाई से रूबरू कराती हैं

– अवधेश कुमार, इप्टा

आज भी मुंशी प्रेमचंद की लिखी कहानियां सजीव, सचेत कहानियों के संग्रह में आता है. अगर हम मुंशी प्रेमचंद की जीवनी को देखे, तो उनका जीवन कई उतार-चढ़ाव से गुजरा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने अपनी कहानी, साहित्य के माध्यम से समाज की कुरीतियों को उजागर करने के साथ-साथ बेहतर समाज की कल्पना की. हालांकि उनकी कृतियों में बहुत कम सुखद अंत होता है. उनकी कृतियां सोच बदलने के लिए प्रेरित करती हैं.

– संजय कुमार, इप्टा

प्रेमचंद की लिखी कृतियों में भाषा बिल्कुल सरल और सहज है, जिसे पढ़कर आप इससे जुड़ सकते हैं. मैंने पहली बार जब ईदगाह पढ़ा था, उसकी छवि आज तक मेरे जहन में जीवंत है. इनकी लिखी कहानी, साहित्य, नाटक में सभ्यता और संस्कृति की झलक साफ-साफ दिखती है. आज के युवा किताब पढ़ने की जगह सोशल मीडिया पर ज्यादा वक्त बिताना पसंद करते हैं, पर उन्हें साहित्य व हिंदी को समझना है, तो प्रेमचंद की रचनाओं को पढ़ना होगा.

– सम्राट समीर, एएन कॉलेज

मुंशी प्रेमचंद की कहानियों से कुछ न कुछ सीखने को मिलता है. मैं यह अनुभव करता हूं कि बच्चे कहानियों से दूर हो रहे हैं. वह अपना अधिकतर समय फोन पर बिताते हैं जबकि, किताबें हर वक्त हमारा साथ देती हैं. अगर आज की जनरेशन को साहित्य से जोड़ना है, तो उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करना होगा. साहित्य से आपके सोचने का दायरा तो बढ़ता है. उन्होंने बच्चों के लिए कई कृतियां लिखी हैं, जो आज भी जीवंत है.

– मुनटुन राज, किलकारी

मुंशी प्रेमचंद की कहानियां उनके खुद के जीवन और अपने आस-पास घट रही घटनाओं पर आधारित हुआ करते थे. जब उनकी कृतियों को अंग्रेजों ने जला दिया, तो उन्होंने नाम बदलकर कर लिखना शुरू किया. पहले के लेखक अपनी लेखनी से प्यार करते थे, नाम चाहे जो भी हो, लेकिन आज इसका उलट है. आज के युवा किताबों से दूर भागते हैं. इसकी वजह कहीं ना कहीं इंटरनेट हैं. महिलाओं की स्थिति, जो उन्होंने उस वक्त लिखी थी वह आज 100 साल बाद भी चरितार्थ है.

– आकाश, किलकारी

साहित्य जगत में कई कथाकार हैं, पर प्रेमचंद की लेखनी शिथिल अवस्था में पड़े युवाओं को जागरूक करती है. उनकी लिखी पंच परमेश्वर से युवा केवल स्वार्थ के लिए न जीकर न्यायपूर्ण बने रहने की सीख ले सकते हैं. प्रेमचंद द्वारा लिखे गये हिंदी साहित्य उनके निजी अनुभव पर आधारित है. उनका यह मानना था कि साहित्यकार का लक्ष्य सिर्फ महफिल सजाना नहीं, बल्कि समाज की आंतरिक सच्चाई को दिखाना भी होता है.

– निखिल, एसजीएमसी, आर्यभट्ट विवि

आम जीवन की जितनी परख और समझ प्रेमचंद को थी, उससे उन्होंने हिंदी साहित्य को नया रूप दिया. उनकी प्रत्येक रचना युवाओं को संदेश देती है. समय के अनुकूल कैसे जीना चाहिए और आनेवाली पीढ़ी के साथ कैसे सामंजस्य स्थापित की जाये, इसे मुंशी प्रेमचंद से सीखा जा सकता है. उन्हें समाज के साथ-साथ भाषा की भी गहन जानकारी थी. उन्होंने अपने पसंदीदा उपन्यास ‘प्रेमाश्रम’ में रूसी क्रांति को दर्शाने की कोशिश की हैं.

– ओम प्रकाश, एसजीएमसी, आर्यभट्ट विश्वविद्यालय

प्रेमचंद की कहानियों में आम लोगों की समस्याओं का उल्लेख अधिक होता था. ताकि आने वाली पीढ़ी इसके बारे में पढ़कर अपने मन में शोध करें. उन्होंने अपने लेखन में समाज में हो रहें कुरीतियों को दर्शाने की कोशिश की थी. प्रेमचंद की रचनाएं क्रांतिकारी बनने के लिए प्रेरित करती हैं. कृतियों का अध्ययन करने पर सामाजिक चुनौतियों से प्रत्यक्ष रूप से सामना होता है, जिसे भारतीय समाज लंबे समय से अनुभव करता रहा है.  

– अमन कुमार, सेंट जेवियर्स कॉलेज

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साहित्य और कला जगत में मुंशी प्रेमचंद आज भी जीवित हैं. जब भी बात सामाजिक चेतना और ज्वलंत मुद्दों को साझा करने की हो, प्रेमचंद याद किये जाते हैं. ‘मानसरोवर’ किताब में प्रेमचंद ने गांव की भाषा का इस्तेमाल अधिक किया है. ताकि, पढ़ने वालों को अपने आस-पास के परिवेश की कहानी का भाव हो. वहीं ‘नमक का दारोगा’ व ‘गोदान’ में अपने वातावरण में हो रहें कुरीतियों पर व्यंग्य किया है.

– श्रुतिधर, एसजीएमसी, आर्यभट्ट विवि

प्रेमचंद अपनी लेखनी से किसान, स्त्री और दलितों को समाज की सामंती और पूंजीवादी व्यवस्था के शोषण और उत्पीड़न से मुक्त कराना चाहते थे. इसलिए उन्होंने इन वर्गों की वास्तविकता को अपनी कहानियों और उपन्यासों में दिखा कर, उनकी मुक्ति के सवाल बार-बार उठाये. उनकी कहानियां काल्पनिक घटनाओं पर कम, बल्कि ग्रामीण परिवेश पर अधिक केंद्रित होती थीं. उनकी किताब ‘गोदान’ ने सामाजिक असमानता को दर्शाया है.

– अंशु, एसजीएमसी, आर्य भट्ट विवि

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