National Cinema Day 2024: आज सिर्फ 99 रुपये में सिनेमा हॉल में देख सकेंगे कोई भी फिल्म, पटनाइट्स में दिखा खासा उत्साह
National Cinema Day: फिल्में देखना किसे पसंद नहीं है और अगर अपनी फेवरेट फिल्म बड़े पर्दे पर देखने को मिल जाये, तो मजा दोगुना हो जाता है. हर साल 20 सितंबर को नेशनल सिनेमा डे मनाया जाता है. देश भर के फिल्म प्रेमियों के लिए इस वर्ष भी मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने शानदार ऑफर की घोषणा की है.
पटना. ‘मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ आज राष्ट्रीय सिनेमा दिवस मना रहा है. इसे सेलिब्रेट करने के लिए राजधानी पटना के कई सिनेमाघरों के प्रबंधकों ने भी खास तैयारी की है. आज के दिन जो भी दर्शक सिनेमाघर या फिर मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखने जायेंगे, वे मात्र 99 रुपये में अपनी पसंदीदा फिल्म देख सकेंगे. शहर के अधिकतर सिनेमा हॉल में 90 प्रतिशत सीटें फुल हो चुकी है. लाइफ@सिटी में आज पढ़िए ‘नेशनल सिनेमा डे’ के बारे में और बिहार के ऐसे कलाकारों के बारे में, जिन्होंने अपनी काबिलियत के दम पर न केवल दुनियाभर में अपना नाम रोशन किया है, बल्कि जब भी उनकी फिल्में, वेब सीरीज या सीरियल सिनेमाघरों, मोबाइल व टीवी पर आती हैं, तो लोग उनकी एक्टिंग की तारीफ करते नहीं थकते.
20 सितंबर को दुनियाभर में किया जाता है सेलिब्रेट
फिल्में देखना किसे पसंद नहीं है और अगर अपनी फेवरेट फिल्म बड़े पर्दे पर देखने को मिल जाये, तो मजा दोगुना हो जाता है. हर साल 20 सितंबर को नेशनल सिनेमा डे मनाया जाता है. देश भर के फिल्म प्रेमियों के लिए इस वर्ष भी मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने शानदार ऑफर की घोषणा की है. जहां दर्शक केवल 99 रुपए में अपनी पसंदीदा फिल्मों का आनंद ले सकते हैं. आम दिनों में जो टिकट 400-500 रुपए की होती है, वो 20 सितंबर के दिन सिर्फ 99 रुपए में मिलेगी. इसकी घोषणा खुद मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने अपने एक्स हैंडल पर की है. मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने देशभर के चार हजार से ज्यादा स्क्रीन पर मूवी टिकट ऑफर की घोषणा की है. यह तीसरी बार है जब 99 रुपये वाली मूवी टिकट का ऑफर दिया जा रहा है.
पहली बार 2022 में मनाया गया था सिनेमा दिवस
कोविड के कारण दो साल थिएटर बंद होने के बाद दोबारा शुरू होने की खुशी में और दर्शकों को फिर से सिनेमाघरों और मल्टीप्लेक्स से जोड़ने के लिए वर्ष 2022 में पहली बार ‘नेशनल सिनेमा डे’ मनाया गया था. उस वक्त सिनेमाघरों में मात्र 75 रुपए की टिकट दर रखी गयी थी.
मल्टीप्लेक्स में आज देख सकते हैं ये फिल्में
इस समय बॉक्स ऑफिस पर ‘स्त्री 2’, ‘तुम्बाड़’, ‘तुम्बाड़’, ‘गोट’ और ‘द बकिंघम मर्डर्स’ जैसी फिल्में छायी हुई हैं. कुछ पुरानी क्लासिक फिल्मों को फिर से रिलीज किया गया है. इसके अलावा सिद्धांत चतुर्वेदी की ‘युधरा’ भी 20 सितंबर को रिलीज हो रही है.
फिल्मे, वेब सीरीज व सीरियल में छाये हैं बिहारी कलाकार
बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री में बिहार के कलाकारों का विशेष योगदान रहा है. बिहार के कलाकारों ने सिनेमा और टीवी इंडस्ट्री में अपने काम से दर्शकों के दिल में दशकों से अपनी जगह बनाये हुए हैं. यूं तो बिहार से शत्रुघ्न सिन्हा, शेखर सुमन, मनोज बाजपेयी, संजय मिश्रा, पंकज त्रिपाठी, अभिमन्यु सिंह, सुशांत सिंह, चंदन रॉय,अशोक पाठक,निहारिका, राजेश कुमार जैसे कई कलाकारों ने अपनी अदाकारी से मुंबई की इंडस्ट्री में झंडे गाड़े हैं.
- पढ़ाई के साथ पटना में थिएटर किया व काफी कुछ सिखा- अभिनेता चंदन रॉय, अभिनेता
वैशाली के महनार गांव निवासी अभिनेता चंदन रॉय ने अपनी पढ़ाई विद्या निकेतन स्कूल में की, जहां उन्होंने नाटकों और सामुदायिक कार्यक्रमों में अभिनय करना शुरू किया. साल 2009 में वह पटना आए और पीयू से बीएमसी में दाखिला लिया. चंदन कहते हैं कि यहां कालिदास रंगालय और प्रेमचंद रंगशाला में नाटक करते हुए काफी कुछ सीखा. बता दें कि, साल 2013 में आइआइएमसी में दाखिला लेने दिल्ली चले गए. आर्थिक चुनौतियों के चलते वह करीब ढाई साल उन्होंने एक दैनिक अखबार में काम किया. जब कुछ पैसे जमा हो गये तो 2017 में मुंबई चले गए. अभिनेता का कहना है कि उन्हें हमेशा से अभिनय करना था और उन्हें वह अवसर मिल रहा था. उन्होंने तेलुगु फिल्मों में भी काम किया है और भविष्य में और भी अवसरों का इंतजार कर रहे हैं.
- मुंबई जाते ही मेरे खाते में आ गया लाख रुपये- अशोक पाठक, अभिनेता
अभिनेता अशोक पाठक का बचपन हरियाणा में बीता, लेकिन उनका सपना हमेशा अभिनय का रहा. कम सुविधाओं के बावजूद, उन्होंने गांव में रंगमंच से जुड़कर अपनी कला को निखारा. साल 2002 से 2007 तक थिएटर करने के बाद, भारतेंदु नाट्य अकादमी में चयनित होकर लखनऊ आए, जहां उन्होंने दो साल बिताए. इंटर्नशिप के दौरान उन्हें ”शूद्र: द राइजिंग” में काम मिला और 2010 में वह मुंबई चले गए. यहां आते ही उनके खाते में एक लाख रुपये से अधिक की राशि जमा हो गई. अशोक ने बॉलीवुड के साथ-साथ हॉलीवुड और पंजाबी इंडस्ट्री में भी काम किया. शुरू में काफी बड़े किरदारों को निभाया जिसे खूब सराहा गया. हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म ‘त्रिभुवन मिश्रा सीए टॉपर’ में उनके किरदार को काफी सराहा गया. अभिनेता बताते हैं कि अभिनय का प्रेम इस कदर है कि मुंबई में कैसे 14 साल बिता दिया पता ही नहीं चला. हालांकि, मुझे मलाल है कि इरफान साहब के साथ काम नहीं कर पाया.
- पहले और अब के सिनेमा में काफी अंतर- निहारिका कृष्णा अखौरी, अभिनेत्री
अभिनेत्री निहारिका कृष्णा अखौरी कहती हैं कि पहले और अब के सिनेमा में काफी अंतर आया है. पहले की फिल्में दर्शकों के मानस पटल पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाती थी. जबकि, अभी की फिल्मों का हाल आया राम-गया राम की तरह हैं. जो कि कोई प्रभाव नहीं छोड़ पा रही है. निहारिका बताती हैं कि मेरी शुरुआत बचपन में बतौर नृत्यांगना के रूप में हुई. जिसके चलते उन दिनों से ही दिलचस्पी सिनेमा और सीरियल्स में भी बढ़ी, जिसमें श्रीदेवी और गुरुदत्त की अदाकारी से काफी प्रेरणा मिली. बता दें कि, भागलपुर आकाशवाणी में बाल कलाकार के रूप में भी निहारिका ने काम किया. लेकिन, पढाई के लिए पटना आने पर यहां दूरदर्शन बिहार के लिए अनेकों कार्यक्रम, विज्ञापन फिल्में, टेलीफिल्मों आदि में काम मिला. अभी कई फिल्मों व वेब सीरीज में लीड रोल निभा रही हैं.
- आज की फिल्में आज के समय के हिसाब से है- राजेश कुमार, अभिनेता
सिनेमा का मेरा पहला अनुभव फरवरी 1988 में रिलीज फिल्म शहंशाह है .पूरे परिवार के साथ गया था .उस वक़्त सिंगल स्क्रीन थिएटर ही हुआ करते थे . कुर्सियां लकड़ी की एकदम सख्त होती थी . पंखे नहीं चलते थे तो आदमी लोग बनियान पहनकर फ़िल्में देखती थी ,जस वजह से महिलाएं ज्यादातर बालकनी में बैठती थी. वहाँ की भीड़ डिसेंट होती है.वैसे उस दौरान सीटी ,तालियों के साथ पैसे उछालना का चलन था . वो सब बहुत मनोरंजक लगता था . उस अनुभव की मिस करता हूँ. निजी तौर पर पहली बार सिनेमाघर फ़िल्म क़यामत से क़यामत तक का रहा है . बिहार से घरवालों ने देहरादून पढ़ने भेजा था. हॉस्टल पहुँच तो सब उसके गाने गा रहे थे ,फिर क्या था जैसे ही पहला संडे आया मैं थिएटर पहुँच गया .उसकी नॉस्टैल्जिया आज भी मेरे साथ है .आज भी वो गाना बजता है तो अपने हॉस्टल की यादों में खो जाता हूँ.फ़िल्मों में बदलाव की बात करूँ तो आज की फ़िल्में आज के समय के हिसाब से है . फ़िल्म मेकिंग का कोई ऑर्थोडॉक्स तरीका नहीं है .हीरो ,हीरोइन विलेन वाला फार्मूला अब नहीं है . अब किरदार अहमियत रखते हैं .आज के सिनेमा के हर डिपार्टमेंट में युवा है ,तो एप्रोच भी पूरी तरह से युवा वाला है .
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