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आसान नहीं मूर्तिकार बनना
मूर्तिकार बनना इतना आसान नहीं है. मूर्तिकार पंचरत्नी कहती है कि कुम्हार परिवार में अधिकांश लोग मूर्तिकला जानते है. लेकिन यहां काम करने के लिए हाथों की कला में माहिर होना जरूरी है. जिस मूर्ति कला के कारण मेरे पति की पहचान डुमरांव इलाका में है. उस कला को मैं कैसे छोड़ सकती थी. आखिरकार यही तो हमारी पहचान है और पहचान के बिना हमारा वजूद ही क्या रह जाता है.
11वीं बार भक्त ने सीने पर रखा कलश
गया के मानपुर भदेजा पंचायत के इगुना मझौली गांव के रहने वाले विनोद भगत नवरात्र पर्व पर 11वीं बार छाती पर कलश स्थापित कर माता की पूजा अर्चना कर रहे हैं. 55 वर्षीय विनोद भगत ने बताया कि सबसे पहले लगातार तीन वर्षों तक मां मंगला गौरी मंदिर परिसर में सीने पर कलश रखा. इसके बाद चार वर्षों तक सलेमपुर स्थित मां चामुंडा मंदिर परिसर में सीने पर कलश स्थापित के साथ लगातार अपने गांव के ही पास देवी मंदिर परिसर में सीने पर कलश स्थापित कर रहे है.
राजा राजेष्वरी देवी मंदिर में भक्तों की जुटी भीड़
मुजफ्फरपुर शहर के मंदिरों में सजावट को तेजी से अंतिम रूप दिया जाने लगा है. मदिरों में आकर्षक लाइट लगाये गये है. राजा राजेष्वरी देवी मंदिर में सुबह पांच बजे से ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचने लगे. इसके बाद मंदिर प्रशासन व एनसीसी कैडेटो ने श्रद्धालुओं को कतारबद्ध कर दर्शन कराया.
पटना में दशहरा महोत्सव के दौरान रामलीला की खास परंपरा
पटना में दशहरा महोत्सव के दौरान रामलीला की खास परंपरा रही है. यहां दशहरा समिति की ओर से पिछले 67 वर्षों से रावण वध का आयोजन किया जाता रहा है. आज के समय में रामलीलाओं का मंचन भले ही काफी हद तक आधुनिक हो गया हो, पर पटना की रामलीला ने परंपराओं को जीवित रखा है. यहां के कलाकारों द्वारा इसे आकर्षक बनाने की भरपूर कोशिश की जाती है.