संवाददाता, पटना पटना में गंगा नदी के अंदर बन रहे दीघा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) को लेकर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने आपत्ति जतायी है. इस कार्य को लेकर एनएमसीजी (नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा) ने 824 करोड़ रुपये जारी किये हैं. एनजीटी की दिल्ली बेंच की आपत्ति पर एनएमसीजी ने यह जानकारी हासिल करने के लिए समय मांगा है कि ऐसे स्थान पर दीघा एसटीपी स्थापित करने की अनुमति क्यों दी गयी? एनएमसीजी के प्रतिनिधि ने कहा कि यदि आवश्यकता पड़ी, तो अन्य सभी संबंधित अधिकारियों के परामर्श से छह सप्ताह में ऐसे स्थान पर एसटीपी स्थापित करने की अनुमति देने वाले अपने निर्णय की समीक्षा कर सकते हैं. बेंच ने एनएमसीजी को निर्देश दिया कि अगली रिपोर्ट में वह राज्य में विभिन्न एसटीपी के निर्माण के लिए एनएमसीजी द्वारा जारी किये गये धन का विवरण और बिहार राज्य द्वारा अब तक धन के उपयोग की स्थिति का खुलासा करे. इससे पहले याचिकाकर्ता ने पक्ष रखते हुए कहा कि दीघा एसटीपी का निर्माण स्थल नदी के बीचोंबीच है. अक्तूबर, 2019 में यह स्थल बाढ़ का शिकार रहा था. भविष्य में भी इसके बाढ़ग्रस्त हाेने की आशंका है. बाढ़ आने पर एसटीपी का सारा सीवेज नदी में बह जायेगा. पटना. बिहार के सिर्फ दो जिलों पटना और भागलपुर में घरों से निकलने वाले गंदे पानी को शुद्ध किया जा रहा है. अन्य जिलों में नालों का गंदा पानी सीधे नदियों में प्रवाहित हो रहा है. बिहार सरकार की इस रिपोर्ट पर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने गहरी चिंता जताते हुए राज्य सरकार और सभी जिलों के डीएम को राज्य में गंगा नदी के प्रवेश और निकास बिंदु के साथ ही सहायक नदियों के गंगा नदी में मिलन स्थल के पानी के नमूनों की जांच रिपोर्ट तलब की है. रिपोर्ट में मिला अंतर : एनजीटी, नयी दिल्ली की प्रिंसिपल बेंच के जज जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव, सुधीर अग्रवाल व डॉ ए सेंथिल वेल ने मामले की सुनवाई की. इसमें बिहार सरकार व जिलों के डीएम की रिपोर्ट पेश की गयी. इसमें अंतर पाया गया. गंगा किनारे शहरों से निकल रहे 480 एमएलडी सीवेज में मात्र 92.6 का उपचार : रिपोर्ट में बताया गया कि बिहार के गंगा किनारे के शहरों में प्रतिदिन 480 एमएलडी सीवरेज निकल रहा है. इसके विरुद्ध 224.5 एमएलडी की सीवेज उपचार क्षमता स्थापित की गयी है, लेकिन 92.6 एमएलडी सीवेज का ही उपचार संभव हो पा रहा है.
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