नौवीं अनुसूची के कानूनों की भी हो सकती है समीक्षा : डॉ भीम सिंह

भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष, राज्यसभा सांसद और पिछड़ा वर्ग आंदोलन के प्रमुख कार्यकर्ता डाॅ भीम सिंह ने राजद-कांग्रेस तथा इंडी गठबंधन पर ओबीसी,इबीसी, एससी-एसटी जातियों को आरक्षण एवं उससे जुड़े अन्य मुद्दों पर गलतबयानी के जरिए भ्रम फैलाने की कोशिश करने का आरोप लगाया है.

By Prabhat Khabar News Desk | September 5, 2024 1:21 AM

नौवीं अनुसूची के कानूनों की भी हो सकती है समीक्षा : डॉ भीम सिंह संवाददाता, पटना भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष, राज्यसभा सांसद और पिछड़ा वर्ग आंदोलन के प्रमुख कार्यकर्ता डाॅ भीम सिंह ने राजद-कांग्रेस तथा इंडी गठबंधन पर ओबीसी,इबीसी, एससी-एसटी जातियों को आरक्षण एवं उससे जुड़े अन्य मुद्दों पर गलतबयानी के जरिए भ्रम फैलाने की कोशिश करने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि राजद व कांग्रेस इंडी गठबंधन के दुष्प्रचार का लक्ष्य भाजपा को आरक्षण विरोधी साबित करना है, जो निराधार है. डाॅ सिंह ने कहा कि जनता जागरूक है, वह वास्तविकता से अवगत है, इसलिए वह विपक्षी दुष्प्रचार का शिकार होने वाली नहीं है. जानता जानती है कि आरक्षण पर जब-जब आंच आयी, भाजपा ने उस आंच को ठंडा कर आरक्षण व्यवस्था को और मजबूत किया है. डॉ सिंह ने कहा ऐसा ही एक दुष्प्रचार है कि यदि बिहार के आरक्षण कानून को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल कर दिया जाए, तो इस कानून की समीक्षा न्यायालय नहीं कर सकता और कानून अजर-अमर हो जायेगा. खेदजनक स्थिति तो यह है कि इस प्रचार के शिकार कुछ तटस्थत लोग भी हो जा रहे हैं, जबकि वास्तविकता ऐसी नहीं है. इस संबंध में वास्तविकता यह है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा केशवानंद भारती (1973) में दिये गये फैसले की तिथि से पहले जो कानून नौवीं अनुसूची में शामिल किये जा चुके थे, मात्र वही कानून न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर हैं. केशवानंद के बाद जो भी कानून नौवीं अनुसूची में डाले गये हैं, उनकी समीक्षा हो सकती है. तमिलनाडु के जिस कानून के तहत वहां 69% आरक्षण लागू है, वह कानून भी सुप्रीम कोर्ट की न्यायिक समीक्षा के अधीन है और मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. डॉ सिंह ने कहा कि स्पष्ट है कि बिहार आरक्षण कानून को नौवीं अनुसूची में शामिल भी कर दिया जायेगा, तो भी वह न्यायिक समीक्षा के दायरे में रहेगा ही.

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