One Nation-One Election: वन नेशन- वन इलेक्शन को लेकर केंद्र सरकार लोकसभा में बिल पेश करने जा रही है. इस बिल को लेकर राजनीति भी तेज हो गई है. एनडीए गठबंधन जहां इस बिल के समर्थन में है तो वहीं इंडिया गठबंधन लगातार इस बिल पर आपत्ति जता रही है. पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर कहा, ‘वन नेशन वन इलेक्शन का कोई मतलब नहीं है. सरकार इस बिल से पहले ईवीएम और बैलेट पेपर पर बात करें. चुनाव महंगा होता जा रहा है. 300 से 400 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं. देश के लोगों के टैक्स का पैसा चोरी कर चुनाव में लगाया जा रहा है. चुनाव के मार्केटिंग की जा रही है. टैक्स के पैसे से विज्ञापन दिए जा रहे हैं. टैक्स के पैसे से जो खैरात बांटी जा रही है उसे रोका जाना चाहिए. सरकार को वन नेशन वन हेल्थ, वन नेशन वन एजुकेशन और वन नेशन वन जस्टिस की बात करनी चाहिए. सरकार को आजादी और मौलिक अधिकारों की बात करनी चाहिए. लोगों को रोजगार नहीं मिला है उसकी बात करे.’
उपेंद्र कुशवाहा ने किया समर्थन
राष्ट्रीय लोक मोर्चा प्रमुख और राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा ने शुक्रवार को कहा कि वन नेशन, वन इलेक्शन बहुत अच्छी पहल है. उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि अगर यह लागू होता है तो इससे आम लोगों को फायदा होगा, देश का खर्च बचेगा और समय की बचत होगी. यह एक बहुत ही सकारात्मक प्रयास है. समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने वन नेशन, वन इलेक्शन को चुनाव जीतने का जुगाड़ बताया है. इस संबंध में उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि एक साथ चुनाव होने से जीतने-हारने का कोई संबंध नहीं है. जिनको जनता चाहेगी वही जीतेगा, जनता जिसको चाहेगी वह हारेगा.
यह देश की जरूरत- चिराग पासवान
लोक जनशक्ति पार्टी (रा) के प्रमुख चिराग पासवान ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को देश की जरूरत बताते हुए कहा, ‘अभी हम लोगों ने देखा कुछ महीने पहले ही लोकसभा के चुनाव संपन्न हुए, उसके ठीक बाद हरियाणा, जम्मू कश्मीर के चुनाव में लोग व्यस्त हुए. उसके बाद झारखंड और महाराष्ट्र में चुनाव हुए. इसके बाद दिल्ली और उसके बाद बिहार और फिर असम का चुनाव है. हर दूसरे और तीसरे महीने देश के किसी न किसी राज्य में चुनाव होते हैं. यह न सिर्फ आर्थिक बोझ देश के ऊपर डालने का काम करते हैं, बल्कि जिस तरीके से मशीनरी के डिप्लॉयमेंट को लेकर एक व्यवस्था तैयार करने की जरूरत पड़ती है, उसमें भी समय बहुत ज्यादा बर्बाद होता है. इस स्थिति में जब आचार संहिता लगती है तो विकास की गति कहीं ना कहीं रूकती है. इस कारण देश में एक ही बार चुनाव हों और पांच साल तक व्यवस्था सुचारू रूप से चलती रहे.
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