पटना में भी महानगरों की तर्ज पर लोग वर्ष 2014 से एप आधारित कैब सर्विस की सुविधा का लाभ उठा रहे हैं. राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय स्तर की तीन कंपनियां ओला, उबर और रैपीडो टैक्सी, ऑटो व मोटरसाइकिल तक की सुविधा लोगों को दे रही हैं. 2014 में जब ओला ने अपनी सर्विस की शुरुआत पटना में की थी, तब शहर भर में 1500 से अधिक ओला की गाड़ियां चला करती थीं.
जिसमें 500 गाड़ियों को ओला एप लीज के माध्यम से चलाया करता था. शुरुआती दिनों में कंपनी को एक गाड़ी पर करीब 1500-2000 रुपये तक का फायदा होता था. इसके अलावा चालकों को भी रोजाना 500-1000 रुपये की कमाई हो जाती थी. लेकिन शहर में जैसे-जैसे गाड़ियों की संख्या बढ़ती गयी वैसे-वैसे चालकों व गाड़ी मालिकों की कमाई घटती चली गयी. वहीं अब तो पेट्रोल-डीजल के साथ सीएनजी के दामों में बढ़ोतरी का सीधा असर भी कैब ड्राइवरों से लेकर इसमें सफर करने वालों पर दिखता है.
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ओला-उबर में सीएनजी ऑटो आने से कैब संचालकों की बढ़ी मुश्किलें
राजधानी के कैब संचालकों का कहना है कि लॉकडाउन के बाद से एप आधारित कैब संचालन काफी मुश्किल हो गया है. कैब चालक संघ के प्रतिनिधि सन्नी सरदार ने बताया कि आमतौर पर एप आधारित कैब बुकिंग करने पर प्रति किलोमीटर 20-25 रुपये किराया लिया जाता है. रात में कैब बुकिंग करने पर उपभोक्ताओं को 10 प्रतिशत अधिक किराया लिया जाता है, लेकिन एप में सीएनजी ऑटो को लांच करने की वजह से कई पैसेंजरों को किफायती दाम में सवारी मिल जाती है. जिससे कैब पैसेंजरों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गयी है. सस्ता होने के कारण लोग कैब की जगह अब ज्यादातर सीएनजी ऑटो बुक करने लगे हैं.
अपनी कमीशन बढ़ा, हमारी कमाई घटा रहीं कंपनियां
कैब संचालक ड्राइवर्स यूनियन के प्रतिनिधि का कहना है कि परेशानियां तब से शुरू हुईं, जब कंपनियों ने अपना कमीशन हर साल चार से पांच प्रतिशत तक बढ़ाने लगे. संचालकों का कहना है कि शुरुआती दिनों में कंपनी एक राइड पर 25 % तक मुनाफा लिया करती थी. पर, जैसे-जैसे पैसेंजर्स की संख्या बढ़ती गयी, ओला ने अपना कमीशन प्रतिशत बढ़ाकर 29-30 % तक कर दिया. ओला चालकों का यह भी कहना है कि इस राजधानी में ओला कंपनी का प्रतिनिधि न होने की वजह से काफी तकलीफों का सामना करना पड़ता है. जबकि राजधानी में उबर एप का दफ्तर गोला रोड में बनाया गया है.
शहर में एप से संचालित किये जाते हैं चार हजार वाहन
मिली जानकारी के अनुसार राजधानी में फिलहाल चार हजार वाहन एप से संचालित किये जाते हैं. जिसमें ओला कैब के लिए 2000 गाड़ियां चलती हैं और 400 से अधिक ऑटो रिक्शा का भी परिचालन किया जाता है. जबकि उबर में 1200 चार पहिये वाहनों का संचालन किया जाता है. जबकि 300 से अधिक बाइक रैपिडो की हैं. रैपिडो के अधिकारी गौतम का कहना है कि रोजाना रैपीडो राइडर की संख्या घटती जा रही है. इसका कारण लगातार बढ़ते पेट्रोल के दाम हैं.
हर बुकिंग पर एक रुपये सरकार को मिलता टैक्स
कैब यूनियन से मिली जानकारी के अनुसार राजधानी में 2000 चालकों का जीवन यापन एप आधारित कैब संचालन के जरिये होता है. हर राइड का एक रुपया टैक्स के तौर पर सरकारी खाते में जमा किया जाता है. इसके अलावा वाहनों में ईंधन इस्तेमाल होने पर सरकार टैक्स वसूलती है. एक आकलन के तौर पर रोजाना सरकार को एप संचालित कैब के जरिये 155-160 रुपये का राजस्व जमा किया जाता है. सरकार को व्यवसायिक तौर पर एक गाड़ी पर 11-13 प्रतिशत का फायदा मिलता है. एप में कैब के तौर पर चल रही पंद्रह लाख से अधिक कीमत वाली गाड़ी पर 16 प्रतिशत राजस्व सरकार को दी जाती है.
रेटिंग के आधार पर पटना देश में तीसरे स्थान पर
उबर इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली-एनसीआर में कैब उपयोगकर्ता देश में सबसे अच्छे व्यवहार या रेटिंग वाले शहरों में से हैं. उबर के पास दो-तरफा रेटिंग सिस्टम है, जहां सवार व चालक एक-दूसरे के व्यवहार व अनुभवों के आधार पर एक-दूसरे को रेटिंग देते हैं. ड्राइवरों की रेटिंग के अनुसार, जयपुर सबसे अच्छा व्यवहार करने वाला शहर है, उसके बाद तिरुवनंतपुरम, पटना, कोच्चि और लुधियाना हैं.