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बिहार में कोरोना के बढ़ते संकट, जांच और इलाज की लचर व्यवस्था पर पटना हाई कोर्ट नाराज, सरकार से किया जवाब तलब

पटना : राजधानी पटना समेत पूरे बिहार में कोरोना के बढ़ते संकट और इससे प्रभावित मरीजों की जांच और उनके इलाज की लचर व्यवस्था पर पटना हाई कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए राज्य सरकार से सात अगस्त तक जवाब तलब किया है. कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को निर्देश दिया कि मामले में वह सात अगस्त तक विस्तृत शपथ पत्र दायर कर कोर्ट को मामले की पूरी स्थिति से अवगत कराये.

पटना : राजधानी पटना समेत पूरे बिहार में कोरोना के बढ़ते संकट और इससे प्रभावित मरीजों की जांच और उनके इलाज की लचर व्यवस्था पर पटना हाई कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए राज्य सरकार से सात अगस्त तक जवाब तलब किया है. कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को निर्देश दिया कि मामले में वह सात अगस्त तक विस्तृत शपथ पत्र दायर कर कोर्ट को मामले की पूरी स्थिति से अवगत कराये.

मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायाधीश एस कुमार की खंडपीठ ने दिनेश कुमार सिंह द्वारा दायर की गयी लोकहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया. कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि पूरे राज्य में कितने कोरोना मरीजों की अब तक जांच की गयी है और कितने मरीजों की जांच अभी की जानी है. राज्य में कोविड-19 अस्पताल के रूप में कितने अस्पताल को नोटिफाई किया गया है. राज्य में कितने आइसोलेशन सेंटर हैं. उन सेंटरों पर रह रहे मरीजों को क्या-क्या सुविधाएं उपलब्ध करायी जा रही है.

कोविड मरीजों के लिए बनाये गये अस्पतालों में डॉक्टरों और पारा मेडिकल कर्मियों की संख्या कितनी है. कोविड मरीजों की जांच एवं इलाज के लिए बनाये गये अस्पतालों में कितने ऑक्सीजन सिलेंडर, कितने वेंटीलेटर उपलब्ध है तथा इनकी संख्या कितनी है. कोरोना से प्रभावित मृत व्यक्ति के मृत शरीर को अंतिम संस्कार करने के लिए सरकार द्वारा क्या तरीका अपनाया जा रहा है.

साथ ही पूछा है कि राज्य में कितने लोगों की अब तक कोरोना जांच हुई है और उनमें कितने लोगों में कोरोना का संक्रमण पाया गया है. क्या कारण है कि जिलास्तर से लेकर राज्य स्तर तक के अस्पतालों में कोरोना से प्रभावित मरीजों को भर्ती करने में अस्पताल प्रशासन द्वारा आनाकानी की जा रही है. अभी तक अस्पतालों और सरकारी लापरवाही के चलते कितने कोरोना प्रभावित मरीजों के मृत्यु की सूचना सरकार के पास उपलब्ध है, इन सब बातों की पूरी जानकारी सात अगस्त तक शपथ पत्र के माध्यम से स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव उपलब्ध कराएं.

कोर्ट को याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि बिहार में कोरोना मरीजों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है. कोरोना प्रभावित मरीज या उसके लक्षण से प्रभावित मरीज जिलास्तर से लेकर राज्य स्तर तक के अस्पतालों में जांच एवं इलाज के लिए घूमते फिरते हैं, लेकिन कहीं भी उन लोगों की जांच और इलाज नहीं हो पा रहा है. यही कारण है कि कई लोगों की मृत्यु समय पर जांच और इलाज नहीं हो पाने के कारण हो जा रही है.

कोरोना प्रभावित मरीजों को अस्पतालों में भर्ती नहीं की जा रही है, जिसके चलते अस्पताल के गेट पर या सड़क पर ही मरीज की मृत्यु इलाज के आभाव में हो जा रही हैं. राजधानी पटना के एम्स, पीएमसीएच, एनएमसीएच जैसे बड़े अस्पतालों में व्याप्त अव्यवस्था का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है.

कोर्ट को याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि कोरोना की जांच के लिए रैपिड एंटीजन टेस्ट, रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट, मोलिकुलर टेस्ट और सेरो सर्वे नहीं किया जा रहा है. इतना ही नहीं, राज्य सरकार द्वारा ब्लड प्लाज्मा बैंक भी अब तक स्थापित नहीं किया गया है.

कोविड मरीजों के लिए अस्पतालों में पर्याप्त मात्रा में बेड उपलब्ध नहीं है. कोरोना प्रभावित मरीजों की मृत्यु हो जाने पर उनके मृत शरीर को को अंतिम संस्कार करने के लिए बनाये गये दिशा निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है. इन मरीजों की मृत्यु हो जाने पर उसे गंगा में प्रवाहित कर दिया जा रहा है, जिससे उस इलाके के अगल-बगल रहनेवाले लोग काफी सशंकित रह रहे हैं.

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