पूरा नहीं किया काम, बिल्डर को जमीन मालिक को देने होंगे 22 करोड़ रुपये, पटना हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला
पूर्व न्यायाधीश ने फैसले में यह भी कहा कि बिल्डर ने इस प्रोजेक्ट के पैसे को दरभंगा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, दिल्ली के दूसरे प्रोजेक्ट तथा बड़े पैमाने पर जमीन खरीदने में लगाया व फिएट कार का शो रूम पटना के कंकड़बाग में खोला.
पटना. संपतचक के भोगीपुर में निर्माणाधीन प्रोजेक्ट के मामले में पटना हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजय करोल द्वारा मनोनीत आरबिट्रेटर पूर्व जस्टिस वीएन सिन्हा ने कार्रवाई करते हुए बिल्डर के खिलाफ 22 करोड़ 54 लाख 59 हजार 110 रुपये का आदेश पारित किया है. आरबिट्रेटर ने आदेश दिया है कि 90 दिनों के अन्दर पीड़ित जमीन मालिक व शिकायतकर्ता को इस राशि का भुगतान करें. अगर ऐसा नहीं करते हैं तो 18 प्रतिशत वार्षिक जुर्माना भी देना होगा.
29 माह तक लगातार सुनवाई के बाद आया फैसला
मामले में पीड़ित जमीन मालिक व शिकायतकर्ता के अधिवक्ता सौरभ विश्वम्भर ने बताया कि पटना हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजय करोल ने तीन जुलाई, 2020 को केस सं-68/2019 में पूर्व न्यायाधीश वीएन सिन्हा को आरबिट्रेटर नियुक्त किया था. लगभग 29 माह तक दोनों पक्षों को सुन कर एवं साक्ष्य व दस्तावेज के अध्ययन के बाद 12 दिसंबर 2022 को पूर्व न्यायाधीश वीएन सिन्हा ने पटना हाइकोर्ट को अपना फैसला सुपुर्द कर दिया.
फैसले में बिल्डर पर चरणबद्ध व सुनियोजित तरीके से फ्लैट के खरीदारों के पैसों को दूसरे जगह खर्च करने के मामले में दोषी पाया. पूर्व न्यायाधीश ने फैसले में यह भी कहा कि बिल्डर ने इस प्रोजेक्ट के पैसे को दरभंगा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, दिल्ली के दूसरे प्रोजेक्ट तथा बड़े पैमाने पर जमीन खरीदने में लगाया व फिएट कार का शो रूम पटना के कंकड़बाग में खोला.
जानिये क्या था पूरा मामला
अधिवक्ता सौरभ विश्वम्भर ने बताया कि पटना जिले के संपतचक प्रखंड अंतर्गत एकतापुरम (भोगीपुर) में निर्माणाधीन अपार्टमेंट के निर्माण के लिए जुलाई 2012 में जमीन मालिक एवं बिल्डर के बीच रजिस्टर्ड डेवलपमेंट एग्रीमेंट किया गया था. इस एग्रीमेंट के अनुसार जुलाई 2016 तक बिल्डर को निर्माण पूर्ण कर जमीन मालिक को उनके हिस्से का फ्लैट सौंप देना था, जो कि आज तक निर्माणाधीन व अधूरा है. बिल्डर ने इस निर्माणाधीन अपार्टमेंट में ए श्रीनिवास व शशिबाला समेत लगभग 243 लोगों को फ्लैट बेचा और पैसा लिया, लेकिन किसी भी विक्रेता के विक्रय दस्तावेज में जमीन मालिक का सहमति या हस्ताक्षर नहीं है. यह कानूनी तौर पर गैरवाजिब व गैर कानूनी है.