13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

पटना के IGIC अस्पताल का हाल बदहाल; न ट्रॉली मैन, न स्ट्रेचर, घंटों एंबुलेंस में बैठे रहते हैं गंभीर मरीज

आइजीआइसी में वर्तमान में कई सुविधाएं बढ़ी हैं. नयी बिल्डिंग में बेड से लेकर आइसीयू, मशीन आदि की सुविधाओं में विस्तार हुआ है. लेकिन, उसे चलाने वाला मैनपावर की आज भी कमी है. इन दिनों नयी बिल्डिंग में ही ओपीडी सेवा शुरू की गयी है.

आनंद तिवारी, पटना: अगर दिल का इलाज कराना है और हालत गंभीर है, तो इंदिरा गांधी हृदय रोग अस्पताल में अपने साथ चार से पांच परिजनों को साथ में लेकर जाएं, क्योंकि आप संस्थान तो पहुंच जायेंगे, लेकिन वहां आपको एंबुलेंस से उतारने वाला कोई ट्रॉली मैन नहीं मिलेगा. परिजनों को खुद स्ट्रेचर का इंतजाम करना पड़ता है और फिर वे अपने गंभीर मरीज को इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराते हैं. सबसे अधिक परेशानी दिल का दौरा पड़ने वाले मरीजों को होती है. बुधवार को आइजीआइसी की पड़ताल की गयी, तो अस्पताल में अव्यवस्था का अंबार नजर आया.

नयी बिल्डिंग में सुविधाएं तो बढ़ीं, लेकिन मैन पावर की कमी

आइजीआइसी में वर्तमान में कई सुविधाएं बढ़ी हैं. नयी बिल्डिंग में बेड से लेकर आइसीयू, मशीन आदि की सुविधाओं में विस्तार हुआ है. लेकिन, उसे चलाने वाला मैनपावर की आज भी कमी है. इन दिनों नयी बिल्डिंग में ही ओपीडी सेवा शुरू की गयी है. यहां दिल का दौरा पड़ने की आशंका में मरीज आइजीआइसी अस्पताल लाये जाते हैं. इमरजेंसी में लंबी कतार के बाद मरीजों को डॉक्टर की सलाह तो मिल जाती है. खासकर दिल का दौरा पड़ने वाले मरीजों का पता लगाने के लिए डॉक्टर ट्रोपोनिन टी जांच कराने की सलाह देते हैं. जांच कराना मरीजों के लिए किसी संघर्ष से कम नहीं है. 500 रुपये खर्च कर उन्हें बाहर से जांच की सामग्री लानी पड़ती है. मरीजों का कहना है कि वर्तमान में आइजीआइसी की नयी बिल्डिंग में सुविधाएं तो बढ़ी हैं, लेकिन आज भी डॉक्टर से मिलने व इलाज कराने में दो से तीन घंटे का समय लग जाता है.

गंभीर मरीज भी इमरजेंसी में बैठकर करते हैं इंतजार

नयी बिल्डिंग व ओपीडी हॉल में करीब 50 से अधिक कुर्सियां लगायी गयी हैं. अगर गंभीर मरीज है, तो उसको भी बैठकर इंतजार करना पड़ता है. वहीं, ओपीडी में भी जैसे-तैसे मरीज डॉक्टर चैंबर से बाहर आते हैं. उसी हिसाब से दूसरे को भीतर जाने की अनुमति दी जाती है. इस दौरान बड़ी संख्या में मरीज ओपीडी हॉल में या तो कुर्सी पर या फिर वेटिंग हॉल में बैठकर इंतजार करते हैं.

एक नजर यहां भी

  • रोजाना लगभग 300 मरीज आते हैं आइजीआइसी में इलाज कराने

  • 500 रुपये शुल्क चुकाना पड़ता है ट्रोपोनिन टी जांच के लिए, परिजन बाहर से खरीद कर लाते हैं सामग्री

  • रोजाना 10 से अधिक मरीजों की होती है ट्रोपोनिन टी जांच

  • जिन मरीजों की इसीजी में पुष्टि नहीं होती है, उनको डॉक्टर लिखते हैं ट्रोपोनिन टी जांच

  • दो से तीन घंटे इंतजार के बाद मरीज को डॉक्टर की मिल पाती है सलाह

क्या कहते हैं मरीज के परिजन

  • कंकड़बाग के 70 वर्षीय मथुरा प्रसाद का अचानक पल्स व बीपी लो होने के बाद परिजन आइजीआइसी लेकर आये. मरीज के पोते सागर कुमार ने बताया कि करीब एक घंटे तक उनको एंबुलेंस में रोककर रखा गया. डॉक्टर जल्दी समय नहीं दे रहे थे. यहां तक कि ट्रॉली मैन व स्ट्रेचर की भी व्यवस्था नहीं थी. बाद में तीन परिजन साथ मिलकर दादा जी लेकर गये, तो भर्ती किया गया.

  • सीवान जिले के 84 साल के नागेश्वर प्रसाद आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं. पीएमसीएच से रेफर किया गया था. जांच में पता चला कि उनके हार्ट में ब्लॉकेज है. एक घंटे तक उन्हें इमरजेंसी वार्ड में लगी कुर्सी पर बैठकर इंतजार करना पड़ा.

Also Read: IGIMS के डॉक्टरों के लिए फरमान, फेसबुक और वॉट्सऐप पर न करें अपने काम का प्रचार, चिकित्सकों में आक्रोश
दो कर्मियों को किया गया है सस्पेंड

आइजीआइसी के निदेशक डॉ सुनील कुमार ने बताया कि मरीजों की सुविधा के लिए कई नयी सुविधाएं शुरू की गयी हैं. अगले महीने ओपन हार्ट सर्जरी भी शुरू करने का लक्ष्य बनाया गया है. साथ ही पुराने ओपीडी में कार्य भी शुरू कर दिये गये हैं. रही बात ट्रॉली मैन की, तो हाल ही में दो कर्मियों को सस्पेंड भी किया जा चुका है. आपने बताया, तो फिर से ट्रॉली मैन आदि की व्यवस्था को दिखाकर ठीक कराता हूं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें