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कोरोना के कारण बढ़ सकता है प्रति व्यक्ति कर्ज

कोरोना के कारण राज्य के लोगों पर प्रति व्यक्ति कर्ज भी बढ़ सकता है. एक तरफ राज्य में टैक्स संग्रह में एक तिहाई से ज्यादा की कमी आयी है, वहीं आपदा की स्थिति में राज्य पर अतिरिक्त खर्च का बोझ भी लगातार बढ़ता जा रहा है. इसके मद्देनजर केंद्र सरकार ने एफआरबीएम (फिस्कल रिस्पांसब्लिटी एंड बजट मैनेजमेंट) एक्ट के तहत राज्यों को कर्ज लेने की सीमा को कुल जीएसडीपी (राज्य सकल घरेलू उत्पाद) के तीन प्रतिशत से बढ़ाकर पांच प्रतिशत कर दी है.

पटना : कोरोना के कारण राज्य के लोगों पर प्रति व्यक्ति कर्ज भी बढ़ सकता है. एक तरफ राज्य में टैक्स संग्रह में एक तिहाई से ज्यादा की कमी आयी है, वहीं आपदा की स्थिति में राज्य पर अतिरिक्त खर्च का बोझ भी लगातार बढ़ता जा रहा है. इसके मद्देनजर केंद्र सरकार ने एफआरबीएम (फिस्कल रिस्पांसब्लिटी एंड बजट मैनेजमेंट) एक्ट के तहत राज्यों को कर्ज लेने की सीमा को कुल जीएसडीपी (राज्य सकल घरेलू उत्पाद) के तीन प्रतिशत से बढ़ाकर पांच प्रतिशत कर दी है.

इससे बिहार को 12 हजार 722 करोड़ रुपये अतिरिक्त कर्ज लेने की क्षमता बढ़ जायेगी. वर्तमान में बिहार पर करीब एक लाख 80 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है यानी प्रति व्यक्ति करीब डेढ़ लाख रुपये का कर्ज है. अगर राज्य सरकार नये प्रावधान के तहत मिले कर्ज लेने की अतिरिक्त क्षमता के मुताबिक बाजार से इतना कर्ज लेती है, तो राज्य में प्रति व्यक्ति 10 हजार रुपये कर्ज का अतिरिक्त बोझ बढ़ सकता है.

इससे राज्य में प्रति व्यक्ति कर्ज बढ़कर एक लाख 60 हजार रुपये के आसपास हो जायेगा. हालांकि, राज्य सरकार इस नये प्रावधान का उपयोग करते हुए अगर बाजार से कर्ज लेती है, तभी यह अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा. विकास कार्यों के लिए सरकार ने लिया है लोन राज्य में तेजी से विकास कार्यों के लिए सरकार ने कई स्तर पर लोन लिया है. इसी कारण राज्य पर लोन का बोझ बढ़कर एक लाख 80 हजार करोड़ तक पहुंच गया है. एफआरबीएम में जीएसडीपी का पांच प्रतिशत तक लोन लेने की क्षमता मिलने से पहले 19 हजार 384 करोड़ तक लोन लेने की अनुमति थी.

इसमें 12 हजार 722 करोड़ रुपये की अतिरिक्त अनुमति मिलने के बाद राज्य के कुल लोन लेने की क्षमता बढ़कर 32 हजार 106 करोड़ हो गयी है. एफआरबीएम एक्ट 2006 में लागू हुआ था. इसके बाद से राज्यों के लिए कर्ज लेने का दायरा तय हो गया. बिहार लगातार इस मानक का पालन करता आया है. वित्तीय वर्ष 2005-06 में बिहार पर 46 हजार 495 करोड़ का कर्ज था. उस समय राज्य का बजट आकार भी काफी छोटा 23 हजार 885 करोड़ का था.

2010-11 में बजट आकार बढ़ कर 53 हजार 758 हुआ, तो कर्ज का आकार भी इससे बढ़कर 62 हजार 858 करोड़ हो गया. इसका मुख्य कारण वित्तीय वर्ष 2005-06 के पहले राज्य का खराब वित्तीय प्रबंधन के साथ ही टैक्स संग्रह काफी कम होने के कारण खजाने की स्थिति बेहद दयनीय रहना भी है. बाद में राज्य में टैक्स संग्रह की स्थिति बेहतर होने से बजट आकार 10 साल में चार गुणा से ज्यादा बढ़ने की वजह से बजट आकार दो लाख करोड़ तक पहुंच गया. हालांकि, इसके साथ ही कर्ज भी बढ़कर एक लाख 80 हजार करोड़ तक पहुंच गया, लेकिन यह वर्तमान में बजट आकार से कम हो गया है.

Posted by : Shaurya Punj

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