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सिवान में पुआल जलाने व धूलकण के चलते जहरीली हुई हवा, AQI पहुंचा 300 के पार

पराली व कचरा जलाने से हवा खराब हो रही है. जागरूकता में कमी के चलते लोग अपने खेतों में धान की पराली में आग लगा दे रहे है. चुकीं समीवर्ती यूपी का बार्डर नजदीक है. वहां के किसान पुआल में आग लगा दे रहे है. इस आग से निकले धुंआ से वातावरण दूषित हो रहा है.

सिवान के जीरादेई प्रखंड में वायु की गुणवत्ता दिन ब दिन खराब होती जा रही है. ग्रामीण क्षेत्र होने के बावजूद भी यहां का एयर क्वालिटी डेंजर होती जा रही है. सोमवार को दोपहर एक बजे प्रखंड के विजयीपुर मोड़ की एक्यूआइ 310 था. ठंड में बढ़ी नमी के बीच धूलकण व पुआल जलाने के चलते समस्या बढ़ रही है.

प्रशासन द्वारा गाइडलाइन जारी किया गया

पुआल का धुआं व धूलकण फिजां में घुसकर जहर घोल रहा है. हालांकि समस्या से मुक्ति के लिए प्रशासन द्वारा गाइडलाइन जारी किया गया है. लेकिन इस गाइडलाइन का असर धरातल पर नही दिख रहा है. पर्यावरणविदों के अनुसार ठंड के मौसम में नमी व धूल मिलकर समस्या बढ़ा रहे है. ऊपर से नीचे आने वाली ठंडी हवा धूलकण को नीचे लाती है. नीचे की धूल नीचे ही रहती है. जिससे पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है. प्रदूषण के चलते ठंड भी कम पड़ रही है. जिससे लोगों फसल प्रभावित होने की चिंता सता रही है.

पुआल व कचरा जलाने से फैल रहा प्रदूषण

पराली व कचरा जलाने से प्रखंड की हवा खराब हो रही है. जागरूकता में कमी के चलते लोग अपने खेतों में धान की पराली में आग लगा दे रहे है. चुकीं समीपवर्ती यूपी का बार्डर नजदीक है. वहां के किसान पुआल में आग लगा दे रहे है. इस आग से निकले धुंआ से वातावरण दूषित हो रहा है. उत्तर प्रदेश में जलने वाली पराली का धुआं पछुआ हवा की वजह से आ जा रहा है.वही लोग कूड़ा के ढेर में आग लगा दे रहे है.

खटारा गाड़ियों व निर्माण कार्यों से परेशानी

विज्ञान के शिक्षक आशुतोष कुमार कहते है कि कचरा जलाने, निर्माण कार्यों में मानकों की अवहेलना, निर्माण सामग्रियों की बिना ढंके ढुलाई, सड़क जाम तथा खटारा गाड़ियों के चलते वायु दूषित हो रही है. खासकर धड़ल्ले से चल रही खटारा डीजल गाड़ियां प्रदूषण के कारण है. इन पुरानी डीजल गाड़ियों के संचालन के प्रति प्रशासन गम्भीर नही है.

सांस और एलर्जी की समस्या से परेशान हो रहे लोग

ठंड में हर वर्ष सर्दी-खांसी, बुखार, निमोनिया, कोल्ड डायरिया समेत कई प्रकार के वायरल-बैक्टीरियल संक्रमण शिकंजा कस देते है. कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण बच्चे और बुजुर्ग आसानी से इसकी चपेट में आ जाते है. इस वर्ष लोग सांस व एलर्जी की समस्या से जूझ रहे है. चिकित्सक इसका प्रमुख कारण ठंड में लापरवाही के साथ बढ़ते वायु प्रदूषण को भी मान रहे है. इसके ज्यादातर शिकार बुजुर्ग व बच्चे हो रहे है.

क्या कहते हैं चिकित्सक 

चिकित्सकों का कहना है कि यदि बच्चों को एलर्जी व सांस की इन समस्याओं का अभी स्थायी निराकरण नहीं किया गया तो वे बचपन में ही अस्थमा और ब्रांकाइटिस की चपेट में आ सकते है. ठंड में नमी के कारण 2.5 माइक्रोन के पार्टिकल्स नीचे आकर सांस के साथ शरीर में चले जाते है. इससे बच्चों को गले में दर्द व कफ, जुकाम, सिरदर्द, सीने में जकड़न से लेकर चिड़चिड़ेपन की समस्या बढ़ जाती है. अधिक समय तक दूषित हवा में रहने पर सांस लेने में तकलीफ, सिर व सीने में दर्द, आंखों में जलन व भूख कम होने की भी समस्या होती है.

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