Pravasi Bharatiya Diwas: विदेश की धरती पर बिहार के लाल कर रहे कमाल
Pravasi Bharatiya Diwas आज दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में भारतीय रह रहे हैं और वहां भारतीय संस्कृति, भाषा और परंपरा की खुशबू फैला रहे हैं. बिहार के तो कई लोग विदेशों में छाये हुए हैं. आप देश के किसी भी कोने में चले जाएं, वहां कोई न कोई बिहारी आपको जरूर मिल जायेगा. अधिकतर ने तो वहां की नागरिकता भी ले ली है. बावजूद इसके विदेश में रहते हुए भी वे अपनी परंपरा को कभी नहीं भूलते, बल्कि उसे विदेशों में भी संवार रहे हैं. आज हम ये बातें इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि आज ‘प्रवासी भारतीय दिवस’ है. प्रवासी भारतीयों के सम्मान का दिन. इस खास अवसर पर हम पटना के भी कई परिवारों की कहानी बयां कर रहे हैं, जो विदेशी धरती पर अपनी पहचान बना रहे हैं.
लाइफ रिपोर्टर@पटना
Pravasi Bharatiya Diwas भारत के विकास में प्रवासी भारतीय समुदाय के योगदान को चिह्नित करने के लिए वर्ष 2003 से हर साल नौ जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस (पीबीडी) मनाया जाता है. इस अवसर को मनाने के लिए नौ जनवरी का दिन इसलिए चुना गया, क्योंकि 1915 में इसी दिन महात्मा गांधी, दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे. उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया था और भारतीयों के जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया था. यह दिन भारत के विकास में प्रवासी भारतीय समुदाय के योगदान को सम्मानित करने के मकसद से मनाया जाता है, ताकि विदेशों में रह रहे भारतीयों की मेहनत, संघर्ष और उपलब्धियों को चिह्नित किया जा सके.
बिहार के लोग सबसे अधिक संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कुवैत, कतर, ओमान, बहरीन, मलेशिया, अफगानिस्तान, इंडोनेशिया, इराक, जॉर्डन, लेबनान, लिबिया, साउथ सूडान, सीरिया, थाईलैंड, यमन और सुडान प्रमुख हैं. बाकी देशों में भी बिहारियों की संख्या अच्छी खासी है.
विदेशों में अपनी मिट्टी की खुशबू व संस्कृति को जीवित रख रहे प्रवासी बिहारी
मैं अपने वतन की जड़ से जुड़ा हूं : कुमार दिवाकर
कुमार दिवाकर प्रसाद छपरा के रहने वाले है. मार्च 2015 से संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी अबू धाबी में रह रहे है. दिवाकर यहां कंप्यूटर साइंस और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काम कर रहे है. साथ ही ये अबुधाबी में सामाजिक कार्य और बिहारी प्राइड के ऊपर लोगो प्रेरित करने का कार्य भी करते है. दिवाकर यहां कई ऐसी समूह का संस्थापक सदस्य भी है, जो आज बिहारी संस्कृति को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं.
दिवाकर बताते है कि हर त्यौहार के बिहार जाने का मन होता है पर अभी बच्चों के स्कूल तो कभी बाकी जिम्मेदारी के कारण नहीं जा पाते तो धूमधाम से यही मन लेते हैं हम लोग. साथ ही आज छपरा से निकले मुझे करीब 24 साल हो गये पर अभी तक मैं वहां अपने जड़ से जुड़ा हुआ हूं.
समय-समय पर वहां लोगों को मदद करने के अलावा कार्यक्रम आयोजित करता रहता हूं. जीवन शैली के द्वारा व्हीलचेयर रग्बी टीम का सलाहकार भी हूं. अबुधाबी में अक्षरधाम मंदिर बनने के बाद और सिनेमा की शूटिंग बढ़ने से अबुधाबी के बारे में लोग भारत में बहुत जानने लगे हैं. यहां की संस्थाएं भी हम भारतीयों को बहुत सहयोग करती है.
विदेश अच्छा लगता है, पर अपना देश अपना होता है : डॉ नूपुर खेतान खत्री
राजेंद्र नगर की डा. नुपूर खेतान खत्री जो पेश से डेंटिस्ट है और ये पिछले दो साल से अपनी सेवा अबुधाबी के प्रतिष्ठित हेल्थ केयर ग्रुप बुर्जील होल्डिंग में स्पेशलिस्ट डेंटिस्ट के पद कार्य कर रही है. खत्री ने बताया कि यहां के चकाचौंध और सुविधाओं के बीच रहने में अच्छा तो लगता है, लेकिन अपना वतन अपना होता है. हर दिन वह की कमी और अपने परिवार की कमी महसूस होती है.
नुपूर ने बताया कि पर्व-त्योहार के मौके पर अपना देश-अपना शहर और घर बहुत याद आता है. लेकिन शुक्रिया वाट्सएप का जो एक देश से दूसरे देश से जुड़ने का मौका मिलता है. खेतान ने बताया कि अबू धाबी एक इस्लामिक कंट्री होने के बाद पूरी तरह से फ्रीडम ऑफ लिविंग देता है. खासकर के भारतीयों के मेहनती होने के कारण उनको बहुत सम्मान और प्यार मिलता है. खत्री ने बताया कि पर्व-त्योहार के मौके पर अपने वतन के लोगों और उनके परिवार से मिलने का मौका मिलता है.
जन्म स्थान के लिए कुछ करने का कोशिश अनवरत जारी : आलोक कुमार
दरभंगा के मूल निवासी आलोक कुमार है, जो 2006 से अमेरिका में रह रहे है. और वर्तमान में अपनी आईटी कंपनियां चला रहे हैं. आलोक कुमार ने बताया कि जब मैंने अपने करियर की शुरुआत की, तब से मेरा विचार हमेशा से अपने जन्मस्थान के लिए कुछ करने का था. इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने कई गैर-लाभकारी संगठनों जैसे कि फेडरेशन ऑफ इंडियन एसोसिएशन, बिहार झारखंड एसोसिएशन ऑफ नॉर्थ अमेरिका, और वर्तमान में बिहार फाउंडेशन यूएसए इस्ट कोस्ट चैप्टर में बतौर चेयरमैन अपनी सेवाएं दे रहे है.
शिक्षा के क्षेत्र में, आलोक हमेशा बच्चों से जुड़ने और उन्हें अपने प्लेटफॉर्म के जरिए मार्गदर्शन देने की कोशिश की है. इसके अलावा, बिहार कनेक्ट 2023 के दौरान हमने बिहार में आईटी कंपनियों को लाने में मदद की. आलोक कुमार ने बताया कि अक्सर यह ख्याल आता है कि अगर बिहार (दरभंगा) में वही सुविधाएं होतीं जो हमें अमेरिका में मिलती हैं, तो शायद मैं अपने परिवार, गांव और समाज के साथ अपनी सफलता और असफलताओं को साझा करते हुए जीवन का आनंद ले सकता था.
अगर मैं आज मर्सिडीज चलाता हूं, तो इसका मेरे लिए कोई खास मतलब नहीं है, लेकिन अगर मैं यही सफलता बिहार में हासिल की होती, तो उसका अनुभव मेरे और मेरे परिवार, गांव वालों के लिए बिल्कुल अलग होता. फिर भी, अब मुझे यह महसूस होता है कि मेरे गांव का वह भावनात्मक जुड़ाव और अपनापन पहले जैसा नहीं रहा. अब गांव में भी वही माहौल नहीं है, जहां मैं पैदा हुआ था या जो अपनापन हुआ करता था. यही बदलाव मुझे महसूस कराते हैं कि विदेश में रहकर जीवन बिताने का निर्णय सही था.
इंग्लैंड में बिहार की संस्कृति को जीवित रख रहे है ऋषिकांत
पटना निवासी ऋषिकांत साल 2017 से इंग्लैंड में रह रहे हैं. वे अपनी बिहार की संस्कृति को जीवित रखने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं. इंग्लैंड के एक प्रमुख कंपनी के आइटी विभाग में सीआरएम पद पर कार्यरत ऋषिकांत ने पांच लोगों के साथ ‘बिहारीस बियॉन्ड बॉउंड्रिज’ नामक ग्रुप की स्थापना की है, जो बिहार की पारंपरिक सांस्कृतिक धरोहर को इंग्लैंड में बढ़ावा देता है.
वे बताते हैं कि स्कूलों के चलते बच्चे ब्रिटिश कल्चर से जुड़ रहे हैं. लेकिन, उन्हें अपनी जड़ों से जोड़े रखने के लिए छठ, होली और अन्य बिहार के त्योहारों को इंग्लैंड के बर्मिंघम में बड़े धूमधाम से मनाते हैं. इस साल बर्मिंघम में करीब 500 लोगों ने मिलकर छठ पूजा का सेलिब्रेट किया. इस पहल में उनकी पत्नी, दिव्या सिन्हा का भी पूरा सहयोग रहता है, जो महिला समूह के साथ मिलकर इस सांस्कृतिक गतिविधि में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं.
पर्व-त्योहार के दौरान घर की बहुत याद आती है : वागीशा झा
पिछले दो सालों से कुवैत रही हूं. साल में बस एक बार छुट्टी मिलती है जो एक महीने की होती है. भारत के पर्व-त्योहार के दौरान घर की बहुत याद आती है. यहां पर गल्फ देशों में पेड़ की प्रजातियां अलग होती है. वट सावित्री में बस किसी तरह से अरेंज कर पूजा करती हूं. कोशिश करती हूं कि बेटे को यहां की संस्कृति से जोड़ कर रखूं जिसके लिए पर्व-त्योहार के समय पर उसे इसके महत्व को बताती हूं. फिर भारत जब आती हूं तो उसे कई बातों के साथ अपनी संस्कृति और मिट्टी से जोड़ने की कोशिश करती हूं.
18 साल से जर्मनी में रह रहा हूं : रंजीत चौधरी
पिछले 18 सालों से जर्मनी में रह रहा हूं. यहां पर प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर कार्यरत हूं. यहां रहते हुए सबसे ज्यादा अपने परिवार को मिस करता हूं. पर्व और त्योहार में खासकर बहुत भावुक रहता हूं. अपनी संस्कृति से जुड़े रहने के लिए यहां रहने वाले सभी बिहारियों को साथ लेकर कम्यूनिटी बनाने की कोशिश कर रहे हैं. हम सभी अपने देश और घर से दूर रहकर एक दूसरे साथ अपने संस्कृति और पर्व को धूमधाम से मनाते है साथ ही अपने बच्चों को इससे जोड़ते हैं.