प्रवीण स्मृति सम्मान रंगकर्मी मो जफर को मिला

पटना. प्रेमचंद रंगशाला में चार दिवसीय प्रवीण स्मृति सम्मान व नाट्य महोत्सव की शुरुआत हो गयी है. यह आयोजन 11 अप्रैल तक चलेगा. इस बार का सम्मान व नाट्य महोत्सव स्व पद्मश्री उषा किरण खान को समर्पित किया गया है. इस मौके पर प्रवीण स्मृति सम्मान समारोह रंगकर्मी मो जफर को दिया गया.

By Prabhat Khabar News Desk | April 8, 2024 11:34 PM

प्रेमचंद रंगशाला में चार दिवसीय प्रवीण स्मृति सम्मान और नाट्य महोत्सव की हुई शुरुआतपटना. प्रेमचंद रंगशाला में चार दिवसीय प्रवीण स्मृति सम्मान व नाट्य महोत्सव की शुरुआत हो गयी है. यह आयोजन 11 अप्रैल तक चलेगा. इस बार का सम्मान व नाट्य महोत्सव स्व. पद्मश्री उषा किरण खान को समर्पित किया गया है. इस मौके पर प्रवीण स्मृति सम्मान समारोह रंगकर्मी मो. जफर को दिया गया. जफर कला मंच से जुड़े हुए हैं, वे वरिष्ठ रंगकर्मियों और निर्देशकों के साथ काम कर रहे हैं. इस स्मृति सम्मान व नाट्य महोत्सव का उद्धाटन करते हुए कला, संस्कृति व युवा विभाग की अपर मुख्य सचिव हरजोत कौर बम्हरा ने कहा कि रंगकर्मी समाज को आगे लेकर जा रहा हैं. इनकी प्रतिभा को पटना में पहचान तो मिल रही है लेकिन इन्हों देश भर में चिह्नित करवाने की कोशिश करनी है. सरकार की ओर से इसमें आर्थिक सहयोग किया जायेगा, बस रंगकर्मी इसे धरातल पर लाने की कोशिश करें.

नाटक में नन्हकू के सफर को दर्शाया गया

पहले दिन नाटक गुंडा का मंचन किया गया. जयशंकर प्रसाद की लिखी कहानी का नाट्य रूपातंरण अभीजीत चक्रवर्ती ने किया जबकि इसका निर्देशन बिज्येंद्र कुमार टांक ने किया है. नाटक की कहानी बाबू नन्हकू सिंह एक बड़े जमींदार परिवार की संतान है, लेकिन अपने पिता के निधन के बाद अपनी सब पूंजी गंवा चुका है. प्रकृति से वह साहसी, दयालु, बहादुर और कला-प्रेमी है.

50 साल के बाद भी वह पर्याप्त ऊर्जावान है. उसने ब्रहमचर्य और स्त्रियों से दूर रहने का व्रत लिया है. काशी का शासन चेत सिंह के हाथ में है. जनरल वारेन हेस्टिंग्स काशी पर कब्जा करना चाहता है जिसमें कुबड़ा मौलवी उसकी मदद करता है. दुलारी के कोठे के सामने एक दिन नन्हकू सिंह और मौलवी के बीच कहा-सुनी हो जाती है और नन्हकू वहां उसका अपमान कर देता है. मौलवी अब इसका बदला लेना चाहता है. वह अंग्रेजों को काशी पर कब्जा करने के लिए उकसाता है. अंग्रेज राजा चेत सिंह और उनकी मां को गिरफ्तार कर लेते हैं. यह खबर जब नन्हकू को मिलती है तो वह उन्हें मुक्त कराने की ठान लेता है और अंग्रेजों से लड़ते हुए मारा जाता है. अंग्रेजों और मौलवी कुबड़ा के साथ बाकी समाज की निगाह में वह एक गुंडा था.

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