संवाददाता,पटना
राज्य सरकार,गुरु-शिष्य परंपरा के माध्यम से बिहार की विलुप्त हो रही कला रूपों के संरक्षण की तैयारी में है.इसके लिए कला,संस्कृति और युवा विभाग ने जिला स्तर पर गुरु-शिष्य परंपरा की शुरुआत करने की योजना बनायी है.इसका उद्देश्य राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर जैसे लोकसंगीत,नृत्य,नाट्य,शिल्प और अन्य पारंपरिक कला रूपों को संरक्षित और संवर्धित रखने की है.यह पहल उन कला रूपों को पुनर्जीवित करने पर केंद्रित है, जो आधुनिकता और संसाधनों की कमी के कारण लगभग लुप्तप्राय: हो चुकी या हो रही हैं. योजना के तहत परंपरागत गायन,वादन और नृत्य कला के गुरुओं को विभाग मानदेय देगा,ताकि वे इच्छुक युवाओं को कला विशेष में प्रशिक्षण दे सकें.
अनुभवी कलाकारों और शिल्पियों को दी जायेगी गुरु के रूप मान्यता: अनुभवी कलाकारों और शिल्पियों को गुरु के रूप में स्थानीय युवाओं को पारंपरिक गुरुकुल शैली में प्रशिक्षण देने के लिए जोड़ा जायेगा.इससे न केवल बिहार की सांस्कृतिक पहचान को सहेजा जा सकेगा, बल्कि युवाओं को उनके जिले में ही रोजगार और आत्मनिर्भरता के अवसर भी प्राप्त होंगे.विभाग की यह योजना बिहार की सांस्कृतिक धरोहर को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित करने की दिशा में एक अहम कदम है.उल्लेखनीय है कि बिहार में तीन प्रमुख संगीत घराने हैं, बेतिया, दरभंगा और डुमरांव. आज अर्थाभाव के कारण इस घराने के लोग धीरे-धीरे संगीत से मुंह मोड़ने लगे हैं.
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