शराब बंदी में शिक्षकों की ड्यूटी लगाये जाने का विभिन्न शिक्षक संघ ने विरोध किया है. प्रदेश के अलग-अलग जिलों में शिक्षा विभाग के द्वारा जारी आदेश के खिलाफ नारेबाजी और पुतला फूंका गया.
बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के महासचिव शत्रुघ्न सिंह व विनय मोहन ने शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव को इस निर्देश को वापस लेने की मांग की है. उन्होंने कहा कि गोपनीय सूचनाएं देने वालों की हत्यायें हो रही हैं. यह शिक्षकों के जान के लिए खतरा हो सकता है.
बिहार के अलग-अलग जिलों में सरकार के नये निर्देश का विरोध सड़कों पर उतरकर किया गया. कहीं शिक्षकों ने नारेबाजी की तो कहीं पुतला दहन किया गया. बिहार पंचायत नगर प्रारंभिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष आनंद कौशल के नेतृत्व में जमुई ईकाई ने मार्च निकाला. सड़कों पर उतकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी की गयी और पुतला दहन किया गया. शिक्षा मंत्री के खिलाफ नारेबाजी कर आदेश वापस लेने की मांग की.
बिहार राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष बृजनंदन शर्मा, कार्यकारी अध्यक्ष मनोज कुमार, महासचिव नागेंद्र नाथ शर्मा एवं प्रवक्ता सह मीडिया प्रभारी प्रेमचंद्र ने कहा कि उपर्युक्त आदेश कहीं से भी विभाग का विवेकपूर्ण आदेश प्रतीत नहीं होता है.
Also Read: पटना सोना लूटकांड: 21 किलो जेवरात अभी भी गायब! पुलिस और कारोबारी संघ के अपने-अपने दावेशिक्षक नेताओं ने कहा कि अपर मुख्य सचिव के पत्र के अवलोकन से ऐसा प्रतीत होता है कि बिहार में शिक्षा की आवश्यकता नहीं है कोरोना महामारी के कारण लगभग 2 वर्षों से पढ़ाई बंद है. राजभर के शिक्षकों को विभिन्न गैर शैक्षणिक कार्यों का दायित्व पहले ही दिया जा चुका है, जिससे राजभर के शैक्षणिक माहौल पूरी तरह चरमराया हुआ हैं.
टीईटी शिक्षक संघ ने भी शराबबंदी में शिक्षकों से मुखबिरी की ड्यूटी लगाने के आदेश का पूरजोर विरोध किया है. संघ के अध्यक्ष अमित विक्रम ने कहा कि कई बार उच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि शिक्षकों से कोई भी गैर शैक्षणिक कार्य नहीं करवाया जाये. इसके बावजूद बिहार सरकार एवं पदाधिकारीगण विभिन्न गैर शैक्षणिक कार्यों में शिक्षकों की ड्यूटी लगाती है. इससे ना केवल विद्यालयों में शैक्षणिक व्यवसस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है बल्कि कई बार तो पठन-पाठन पूरी तरह ठप हो जाता है.
टीईटी शिक्षक संघ के अध्यक्ष ने कहा कि शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव का शराबबंदी में मुखबिरी का काम करने के लिए शिक्षकों के लिए जो आदेश निकला है वह ना केवल शिक्षा के अधिकार के कानून का उल्लंघन है बल्कि माननीय उच्च न्यायालय की भी अवमानना है. यह वापस लिया जाना चाहिए.