बिहार में एक बार फिर टकराव की संभावना, राजभवन का कुलपतियों को आदेश, गवर्नर हाउस के अलावा किसी की बात न सुनें
बिहार के राज्यपाल के प्रधान सचिव ने सभी विश्वविद्यालयों को पत्र लिखकर कहा है कि राजभवन की तरफ से जारी किये गये सभी दिशा निर्देशों का का अनिवार्य तौर पर पालन करें. इसके अलावा अन्य स्तर से जारी आदेश का पालन नहीं करेंगे. इस आदेश के बाद एक बार फिर से शिक्षा विभाग व राजभवन आमने सामने आ सकते हैं.
बिहार में एक बार फिर से राजभवन व सरकार के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है. दरअसल, राजभवन सचिवालय द्वारा सभी विश्वविद्यालय के कुलपतियों को एक पत्र जारी किया गया है. इस पत्र में कहा गया कि यूनिवर्सिटी अब केवल कुलाधिपति द्वारा जारी आदेश का ही पालन करेंगे. किसी अन्य स्तर से जारी आदेश का पालन नहीं करेंगे. इसके साथ ही राजभवन ने कुलपतियों को 17 अगस्त को लिखे पत्र का हवाला देते हुए भी जरूरी दिशा निर्देश दिये हैं. राज्यपाल के प्रधान सचिव राबर्ट एल चोंग्थू द्वारा जारी इस पत्र के बाद एक बार फिर से बिहार में हलचल पैदा हो सकती है.
राज्यपाल के प्रधान सचिव ने विश्वविद्यालयों को लिखा पत्र
राज्यपाल के प्रधान सचिव राबर्ट एल चोंग्थू ने प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों को पत्र लिखकर कहा है कि राजभवन की तरफ से जारी किये गये सभी दिशा निर्देशों का का अनिवार्य तौर पर पालन करें. उन्होंने साफ किया कि लोगों की तरफ से सार्वजनिक भ्रम पैदा करने की कोशिश की जा रही है. देख जा रहा है कि कुछ अधिकारी विश्वविद्यालय प्रशासन की स्वायत्ता को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं.
कुलाधिपति के दिशा-निर्देश विश्वविद्यालय संबंधी मामले में सर्वोपरि
प्रधान सचिव राबर्ट एल चोंग्थू ने कुलपतियों और अन्य वैधानिक अधिकारियों/प्राधिकारियों को हिदायत देते हुए कहा है कि विश्वविद्यालयों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि कुलाधिपति के आदेश का ईमानदारी से पालन करें. केवल कुलाधिपति से दिशा-निर्देश प्राप्त करें. पत्र में साफ कर दिया गया कि कुलाधिपति के दिशा-निर्देश विश्वविद्यालय संबंधी मामले में सर्वोपरि हैं.
पत्र में 2009 के निर्देश की भी चर्चा
कुलपतियों को लिखे गए पत्र में यह स्पष्ट किया गया है कि राजभवन अथवा राज्यपाल सचिवालय को छोड़ किसी अन्य के द्वारा विश्वविद्यालय को निर्देश देना उनकी स्वायत्तता के अनुकूल नहीं है. ऐसा देखा जा रहा है कि विश्वविद्यालय की स्वायत्तता की अनदेखी करते हुए भी किसी अन्य की तरफ से निर्देश दिये जा रहे हैं. यह बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 1976 के प्रावधानों का उल्लंघन है. इस संबंध में राजभवन के द्वारा वर्ष 2009 में भी कुलपतियों को निर्देश जारी किये गये थे. कुलपतियों को भेजे गए पत्र में 2009 के निर्देश की भी चर्चा की गई है.
17 अगस्त को लिखे पत्र का हवाला देते हुए दिए दिशा निर्देश
चोंग्थू ने ही कुलपतियों एवं संबंधित पदाधिकारियों को निर्देशित किया है कि भ्रम फैलाने वाले मामले में सख्त एक्शन लें. इसके साथ ही राजभवन ने कुलपतियों को 17 अगस्त को लिखे पत्र का हवाला देते हुए जरूरी दिशा निर्देश दिये हैं.
विश्वविद्यालय की स्वायत्तता को लेकर आमने- सामने आ गए थे राजभवन व शिक्षा विभाग
बता दें कि कुछ दिनों पहले विश्वविद्यालय की स्वायत्तता को लेकर बीते दिनों शिक्षा विभाग व राजभवन के बीच मतभेद की स्थिति पैदा हो गई थी. के के पाठक के निर्देश पर शिक्षा विभाग ने बीआरए बिहार विवि के कुलपति और प्रति कुलपति के वेतन पर रोक लगाते हुए उनके वित्तीय अधिकार पर भी रोक लगा दी थी. इसके बाद शिक्षा विभाग के इस आदेश पर रोक लगते हुए राजभवन ने एक चिट्ठी जारी की थी.
राजभवन ने शिक्षा विभाग के आदेश पर लगा दी थी रोक
कुलाधिपति के प्रधान सचिव ने अपने पत्र में कहा था कि सरकार को विवि के कामकाज पर नजर रखने का अधिकार है, पर वेतन और वित्तीय अधिकार पर रोक बिना किसी अधिकार के लगायी गयी है. प्रधान सचिव ने कहा था कि शिक्षा विभाग का यह आदेश कुलाधिपति के अधिकार में अतिक्रमण है. साथ विवि की स्वायत्तता पर नियंत्रण करने जैसा है. प्रधान सचिव ने शिक्षा विभाग से तत्काल कुलपति और प्रति कुलपति के वेतन रोकने एवं वित्तीय अधिकार पर रोक लगाने संबंधी आदेश को वापस लेने को कहा था. साथ ही भविष्य में भी इस तरह के आदेश जारी करने से बचने की सलाह दी थी.
विसी नियुक्ति को लेकर भी राजभवन व शिक्षा विभाग में हुआ था टकराव
केके पाठक के निर्देश पर शिक्षा विभाग ने राज्य के सात विश्वविद्यालयों में कुलपति पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन मांगने की अधिसूचना जारी की थी. जबकि राजभवन ने इस समबंध में विज्ञापन जारी कर पहले ही प्रक्रिया शुरू कर दी थी. समान विश्वविद्यालयों में कुलपति पद के लिए दो अलग-अलग संस्थाओं की तरफ से आवेदन मांगने पर विश्वविद्यालयों में वैधानिक संकट खड़ा हो गया था और राज्य सरकार एवं राजभवन के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई थी. वहीं जो लोग राजभवन द्वारा निकाली गई नियुक्ति के लिए आवेदन कर चुके थे, वो भी कन्फ्यूज हो गए थे. इसके बाद नीतीश कुमार ने राज्यपाल से मुलाकात की थी, फिर शिक्षा विभाग ने विज्ञापन वापस ले लिया था.