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बिहार: देशरत्न का आश्रम तोड़ना चाहते हैं अधिकारी, राजेन्द्र प्रसाद की पोती का गंभीर आरोप

बिहार के पटना में देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का न केवल समाधि है, बल्कि जीवन के अंतिम दिनों में उन्होंने यहां के सदाकत आश्रम में काफी वक्त बीताये हैं. आज उनसे जुड़ी चीजों के हालात बेहद दायनीय है. उनकी पोती ने धरोहर को लेकर सरकार के अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाये हैं.

पटना. देश के प्रथम राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद की पोती तारा सिन्हा ने बुधवार को बिहार विद्यापीठ स्थित सदाकत आश्रम को बचाने की मांग की. उन्होंने कहा कि डॉ राजेन्द्र प्रसाद का आश्रम हेरिटेज प्रोपर्टी है, जहां वे रहते थे. उस घर को बिहार सरकार के कुछ अधिकारी पैसा कमाने की लालच में तोड़ना चाहते हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण है. इस घर में उनकी कई यादें हैं. इसके संरक्षण के लिए सभी देशभक्तों को आगे आना होगा. उनके निधन के बाद देशवासियों के दर्शन के लिए उनके पार्थिव शरीर को यहां रखा गया था. आगे उन्होंने कहा कि हमारी मांग है कि पुरातत्व विभाग से इस आश्रम की मरम्मत कराकर इसके पुराने स्वरूप में संरक्षित किया जाए, जो बेहद कीमती हैं.वहीं, राजेंद्र प्रसाद के परिवार के सदस्य मनीष सिन्हा ने बताया कि यह आश्रम बिहार के लिए साबरमती आश्रम की तरह है. इसे बचाकर बिहार सरकार अपने गौरवशाली इतिहास को दुनिया के सामने बता सकती है.

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बिहार ने महापुरुषों को सम्मान नहीं दिया

बातचीत के दौरान तारा सिन्हा ने बताया कि बिहार ने महापुरुषों को सम्मान देना नहीं जाना. डॉ राजेन्द्र प्रसाद बिहार से ताल्लुक रखते हैं यही गौरव का विषय है. इसके बावजूद उन्हें विशेष सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हकदार थे. अब उनके स्मृति संग्रहालय में परिवर्तन किया जा रहा है. सीढ़ियों व बरामदे का रिनोवेशन हो रहा है. उनका कुटिया खपरैल की थी, इसे टीन शेड में तब्दील कर दिया है. इसे रोकने के लिए मेरे अलावे राजेंद्र बाबू के परपोती व परपोतों ने पीएम नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू व सीएम नीतिश कुुमार को पत्र लिखा. प्रदेश के आर्ट एंड कल्चर डिपार्टमेंट से जवाब भी मांगा गया. परंतु, क्या बताया गया इसकी जानकारी नहीं है और न ही काम रोका जा रहा है.

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राष्ट्रपति बनने के बाद भी सदाकत आश्रम में रहे राजेंद्र बाबू

तारा सिन्हा ने बताया कि राजेंद्र बाबू सदाकत आश्रम में वर्ष 1921 से 1946 तक रहे. इसके बाद वह वापस दिल्ली लौट गये. वहां राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण किया. राष्ट्रपति पद से अवकाश प्राप्त कर वह दिल्ली से 14 मई 1962 को पटना आए और फिर सदाकत आश्रम में नियमित रूप से रहने लगे. उनके गुजरने के बाद विद्यापीठ के जिस मकान में उन्होंने अपनी जीवन यात्रा पूरी की, उसे संग्रहालय का रूप दिया गया. लेकिन, अब कई संरचना तैयार किया गया है जिससे उनकी स्मृतियां को खो जाने का एहसास हो रहा है. जबकि, यह राष्ट्रीय धरोहर है. ऐसा करना किसी जुर्म से कम नहीं है. उन्होंने बताया कि आर्कियोलॉजिस्ट व म्यूजियम एक्सपर्ट ने भी कहा है कि ऑरिजनल स्ट्रकचर के साथ छेड़छाड़ नहीं किया जा सकता है. पुराने धरोहर को ही संरक्षित रखना है.

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