Rajendra Prasad Jayanti: देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जयंती पर बिहार के CM और राज्यपाल ने किया याद, पढ़ें- उनके जीवन से जुड़ी वो बातें जिसे कम लोग ही जानते हैं
Rajendra Prasad Jayanti: देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की आज 136वीं जयंती है. उनकी जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राज्यपाल फागू चौहान समेत तमाम नेताओं ने उन्हें याद किया है और श्रद्धांजलि अर्पित की है. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के सीवान जिला के जीरादेई गांव में हुआ था.
Rajendra Prasad Jayanti: देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की आज 136वीं जयंती है. उनकी जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राज्यपाल फागू चौहान समेत तमाम नेताओं ने उन्हें याद किया है और श्रद्धांजलि अर्पित की है. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के सीवान जिला के जीरादेई गांव में हुआ था.
सीएम नीतीश ने फोटो ट्वीट कर लिखा- भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जी की जयंती के अवसर पर उन्हें 1 अणे मार्ग स्थित नेक संवाद में श्रद्धांजलि अर्पित की. वहीं बिहार के राज्यपाल ने कहा कि देशरत्न राजेंद्र प्रसाद के जीवनादर्शों एवं संदेशों से प्रेरणा ग्रहण करते हुए सभी देशवासियों और बिहारवासियों से राष्ट्रीय नव निर्माण में योगदान का अनुरोध किया.
भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जी की जयंती के अवसर पर उन्हें 1 अणे मार्ग स्थित नेक संवाद में श्रद्धांजलि अर्पित की।https://t.co/aIVsHuWdDs #RajendraPrasad pic.twitter.com/JsM9juhhww
— Nitish Kumar (@NitishKumar) December 3, 2020
पिछले छह दशकों में राजेंद्र बाबू के बारे में ज्यादा बातें नहीं हुई
देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को बिहार में राजेंद्र बाबू ही कहा जाता है. राजेंद्र बाबू के परिवार की तीसरी पीढ़ी के सदस्य मनीष सिन्हा ने अपने लेख में लिखा- पिछले छह दशकों में राजेंद्र बाबू के बारे में ज्यादा बातें नहीं हुई हैं. उनके जीवन से जुड़े अनेक ऐसे पहलू हैं, जिसके बारे में लोग या तो कम जानते हैं या जानते ही नहीं. उन्होंने अपने संपूर्ण जीवन में कभी भी स्वयं को प्रचारित करने, या नेता बनने की कोशिश नहीं की. वर्ष 1916 की बात है. कांग्रेस का लखनऊ सेशन चल रहा था, महात्मा गांधी भारत आ चुके थे.
राजेंद्र प्रसाद और महात्मा गांधी पूरे कार्यक्रम में साथ बैठे रहे, परंतु अपने अंतर्मुखी स्वभाव के कारण राजेंद्र बाबू ने उनसे बात नहीं की. हालांकि, अगले वर्ष चंपारण में किसानों की बदहाली की जानकारी राजेंद्र बाबू ने ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं तक पहुंचायी और फिर महात्मा गांधी बिहार आये. बापू जीरादेई में राजेंद्र बाबू के घर ठहरे और वहां से चंपारण प्रस्थान किया. पूरे चंपारण आंदोलन में उन्होंने महात्मा गांधी के कंधे से कंधा मिला संघर्ष किया.
आज भी नेशनल आर्काइव्स में चंपारण पेपर्स सात वॉल्यूम में मौजूद हैं, जिसमें राजेंद्र बाबू के हाथ से लिखी सभी नील किसानों की जानकारी और व्यथा दर्ज है. वर्ष 1925 में राजेंद्र बाबू ऑल इंडिया कायस्थ काॅन्फ्रेंस के अध्यक्ष चुने गये. अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने दो महत्वपूर्ण प्रस्ताव पास किये. पहला, हिंदू विवाह में दहेज प्रथा को बंद करना व वैसे विवाहों का बहिष्कार जहां दहेज लिया जा रहा हो. दूसरा, अंतरजातीय विवाह.
आगे चलकर उन्होंने विधवाओं के पुनर्विवाह पर भी जोर दिया और समाज में सकारात्मक बदलाव के लिए इस तरह की कुछ शादियां भी करवायीं. चंपारण आंदोलन के दौरान ही राजेंद्र बाबू एवं महात्मा गांधी के संबंध बहुत मजबूत हो गये थे. इसकी झलक चंपारण आंदोलन के तीन दशक बाद, 15 अगस्त की रात्रि देश को किये उनके संबोधन में सुनने को मिलती है. यहां वे कहते हैं, ‘वे हमारी संस्कृति और जीवन के उस मर्म के प्रतीक हैं, जिसने हमें इतिहास की उन आफतों और मुसीबतों के बीच जिंदा रखा है.
निराशा और मुसीबत के अंधेरे कुएं से उन्होंने हमें खींचकर बाहर निकाला और हममें एक ऐसी जिंदगी फूंकी जिससे हमारे भीतर अपने जन्मसिद्ध अधिकार ‘स्वराज’ के लिए दावा पेश करने की हिम्मत और ताकत आयी. उन्होंने हमारे हाथों में सत्य और अहिंसा का अचूक अस्त्र दिया, जिसके जरिये बिना हथियार उठाये ही हमने स्वराज का अनमोल रत्न हासिल किया.’
Posted By: Utpal Kant